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ऐसा व्यक्ति जिसकी चेतना समय और स्थान के आयामों से परे है, जिसने [[Special:MyLanguage/Jesus|ईश्वरीय चेतना]]<ref>Phil. 2:5.</ref>में निपुणता हासिल कर अपने [[Special:MyLanguage/four lower bodies|चार निचले शरीरों]] (four lower bodies) पर श्रेष्ठता प्राप्त कर ली है, तथा अपने सभी [[Special:MyLanguage/chakra|चक्र]] (chakra) एवं अपने ह्रदय की [[Special:MyLanguage/threefold flame| त्रिज्योति लौ]] (threefold flame) | ऐसा व्यक्ति जिसकी चेतना समय और स्थान के आयामों से परे है, जिसने [[Special:MyLanguage/Jesus|ईश्वरीय चेतना]]<ref>Phil. 2:5.</ref>में निपुणता हासिल कर अपने [[Special:MyLanguage/four lower bodies|चार निचले शरीरों]] (four lower bodies) पर श्रेष्ठता प्राप्त कर ली है, तथा अपने सभी [[Special:MyLanguage/chakra|चक्र]] (chakra) एवं अपने ह्रदय की [[Special:MyLanguage/threefold flame| त्रिज्योति लौ]] (threefold flame) (मनुष्य के ह्रदय में स्थित वह लौ -ब्रह्मा, विष्णु और शिव - के अंश को दर्शाती है) संतुलित कर ली है। दिव्यगुरु वे होते हैं जिन्होंने कम से कम अपने 51 प्रतिशत [[Special:MyLanguage/karma|कर्मों]] (karma) को रूपांतरित कर लिया है, अपनी [[Special:MyLanguage/divine plan|दिव्य योजना]] (divine plan) पूरी कर ली है, तथा [[Special:MyLanguage/Ruby Ray|रूबी किरण]] (Ruby Ray) की दीक्षा ले कर, पवित्र अग्नि की सहायता से भीतरी गतिवर्द्धन द्वारा अपने [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरुप]] (I AM THAT I AM) को धारण कर के [[Special:MyLanguage/ascension|आध्यात्मिक उत्थान]] (ascension) प्राप्त कर लिया है। दिव्य गुरु वह हैं जो ईश्वर की चेतना में रहते हैं और पृथ्वीवासियों की जीवात्माओं को आकाशीय स्तर पर [[Special:MyLanguage/etheric retreat|आकाशीय आश्रय स्थल]] (etheric retreat) या [[Special:MyLanguage/etheric cities|आकाशीय शहर]] (etheric cities) से शिक्षित करते हैं। | ||
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