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कारण शरीर वह स्थान है जहाँ हम "स्वर्ग में खज़ाना जमा करते हैं"<ref>Matt. 6:19–21.</ref>—यह हमारी सच्ची पहचान की प्रत्येक अच्छी और उत्तम वस्तु का भंडारगृह है। इसके अलावा, कारण शरीर की गोला आकार आकृतियों (spheres) में ईश्वर का निवास-स्थान है जिनके बारे में [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] ने कहा था, "मेरे पिता के घर में बहुत बहुत सारे भवन हैं.... वहाँ मैं आपके लिए एक स्थान तैयार करने जाता हूँ.... मैं आपको लेने दोबारा आऊंगा। वहाँ मैं अपने ईश्वरीय स्वरुप में हूँ, वहां आप भी हो सकते हैं।<ref>John 14:2, 3.</ref> | कारण शरीर वह स्थान है जहाँ हम "स्वर्ग में खज़ाना जमा करते हैं"<ref>Matt. 6:19–21.</ref>—यह हमारी सच्ची पहचान की प्रत्येक अच्छी और उत्तम वस्तु का भंडारगृह है। इसके अलावा, कारण शरीर की गोला आकार आकृतियों (spheres) में ईश्वर का निवास-स्थान है जिनके बारे में [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] ने कहा था, "मेरे पिता के घर में बहुत बहुत सारे भवन हैं.... वहाँ मैं आपके लिए एक स्थान तैयार करने जाता हूँ.... मैं आपको लेने दोबारा आऊंगा। वहाँ मैं अपने ईश्वरीय स्वरुप में हूँ, वहां आप भी हो सकते हैं।<ref>John 14:2, 3.</ref> | ||
कारण शरीर आत्मा के [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरुप]] (I AM THAT I AM) का निवास स्थान है,जहाँ जीवात्मा [[Special:MyLanguage/ascension|आध्यात्मिक उत्थान]] (ascension) होने के बाद अपने इश्वरिये स्वरूप से दुबारा जुड़ जाती है। कारण शरीर मानो एक तारा है जो प्रत्येक मनुष्य में ईश्वरीय लौ का वैयक्तिकरण है जिसके बारे में संत पॉल (Saint Paul) ने कहा था, "एक तारे की महिमा दूसरे से भिन्न है"। | कारण शरीर आत्मा के [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरुप]] (I AM THAT I AM) का निवास स्थान है,जहाँ जीवात्मा [[Special:MyLanguage/ascension|आध्यात्मिक उत्थान]] (ascension) होने के बाद अपने इश्वरिये स्वरूप से दुबारा जुड़ जाती है। कारण शरीर मानो एक तारा है जो प्रत्येक मनुष्य में ईश्वरीय लौ का वैयक्तिकरण है जिसके बारे में संत पॉल (Saint Paul) ने कहा था, "एक तारे की महिमा दूसरे से भिन्न है"। ईश्वरीय लौ के प्रत्येक मनुष्य के वैयक्तिकरण के तारे के रूप में कारण शरीर का उल्लेख [[Special:MyLanguage/Saint Paul|संत पॉल]] (Saint Paul) ने किया था, जब उन्होंने कहा था, "एक तारे की महिमा में दूसरे तारे से भिन्न होती है।<ref>I Cor. 15:41.</ref> | ||
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