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Chart of Your Divine Self/hi: Difference between revisions

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== जीवात्मा का विकास ==
== जीवात्मा का विकास ==


जब जीवात्मा पृथ्वी पर अपना जीवनकाल समाप्त कर लेती है, तो ईश्वरीय स्वरूप चांदी की क्रिस्टल डोर को वापस ले लेती है, जिसके बाद त्रिज्योति लौ आपके उच्च चेतना के हृदय में लौट आती है। इसके बाद आकाशीय परिधान (etheric garment) में लिपटी हुई जीव-आत्मा चेतना के उच्चतम स्तर की ओर बढ़ती है, जिसे उसने अपने पिछले सभी जन्मों में प्राप्त किया है। उन जन्मों के बीच उसे [[Special:MyLanguage/etheric retreat|आकाशीय आश्रय स्थलों]] में शिक्षा दी जाती है। अपने अंतिम जन्म के बाद वह ईश्वर में मिल जाती है और फिर कभी जन्म नहीं लेती।
जब जीवात्मा पृथ्वी पर अपना जीवनकाल समाप्त कर लेती है, तो ईश्वरीय स्वरूप चांदी की क्रिस्टल डोर को वापस ले लेती है, जिसके बाद त्रिज्योति लौ आपके उच्च चेतना के हृदय में लौट आती है। इसके बाद आकाशीय परिधान (etheric garment) में लिपटी हुई जीव-आत्मा चेतना के उच्चतम स्तर की ओर बढ़ती है, जिसे उसने अपने पिछले सभी जन्मों में प्राप्त किया है। उन जन्मों के बीच उसे [[Special:MyLanguage/etheric retreat|आकाशीय आश्रय स्थलों]] में शिक्षा दी जाती है। अपने अंतिम जन्म के बाद वह ईश्वर से  मिल जाती है और फिर कभी जन्म नहीं लेती।


जीवात्मा अस्तित्व का गैर-स्थायी पहलू है, जिसे [[Special:MyLanguage/ascension|आध्यात्मिक उत्थान]] की प्रक्रिया के माध्यम से स्थायी बनाते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा आत्मा अपने कर्म को संतुलित करती है, अपने पवित्र आत्मिक स्व के साथ जुड़ती है, अपनी दिव्य योजना को पूरा करती है और अंत में अहम् ब्रह्मास्मि की जीवित उपस्थिति में लौट आती है। इस प्रकार उसके पदार्थ ब्रह्मांड में जाने का चक्र पूरा हो जाता है। ईश्वर के साथ मिलन प्राप्त करके वह ईश्वर के शरीर में एक स्थायी परमाणु बन अविनाशी हो जाती है। इस तरह हम ये कह सकते हैं की आपके दिव्य रूप का नक्शा आपके अतीत, वर्तमान और भविष्य का मानचित्र है।
जीवात्मा अस्तित्व का गैर-स्थायी पहलू है, जिसे [[Special:MyLanguage/ascension|आध्यात्मिक उत्थान]] की प्रक्रिया के माध्यम से स्थायी बनाते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा आत्मा अपने कर्म को संतुलित करती है, अपने पवित्र आत्मिक स्व के साथ जुड़ती है, अपनी दिव्य योजना को पूरा करती है और अंत में अहम् ब्रह्मास्मि की जीवित उपस्थिति में लौट आती है। इस प्रकार उसके पदार्थ ब्रह्मांड में जाने का चक्र पूरा हो जाता है। ईश्वर के साथ मिलन प्राप्त करके वह ईश्वर के शरीर में एक स्थायी परमाणु बन अविनाशी हो जाती है। इस तरह हम ये कह सकते हैं की आपके दिव्य रूप का नक्शा आपके अतीत, वर्तमान और भविष्य का मानचित्र है।
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