7,316
edits
(Created page with "मानवी चेतना") Tags: Mobile edit Mobile web edit |
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<languages /> | <languages /> | ||
[[Special:MyLanguage/Christ|आत्मा]] में और उसके रूप में स्वयं की चेतना या जागरूकता; मनुष्य का चेतना के उस स्तर पर पहुँचना जहाँ [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] पहुँच गए थे। जीवात्मा जिस आत्मिक चेतना की अनुभूति अपने मन में करती है - वही अनुभूति जो ईसा मसीह को हुई थी। <ref>Phil. 2:5.</ref> यह वह उपलब्धि है जो शक्ति, विवेक और प्रेम - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा - इन तीनो के संतुलित होने पर किये गए कार्यों से मिलती है; साथ ही यह हृदय के भीतर संतुलित [[Special:MyLanguage/threefold flame| | [[Special:MyLanguage/Christ|आत्मा]] में और उसके रूप में स्वयं की चेतना या जागरूकता; मनुष्य का चेतना के उस स्तर पर पहुँचना जहाँ [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] पहुँच गए थे। जीवात्मा जिस आत्मिक चेतना की अनुभूति अपने मन में करती है - वही अनुभूति जो ईसा मसीह को हुई थी। <ref>Phil. 2:5.</ref> यह वह उपलब्धि है जो शक्ति, विवेक और प्रेम - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा - इन तीनो के संतुलित होने पर किये गए कार्यों से मिलती है; साथ ही यह हृदय के भीतर संतुलित [[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिज्योति लौ]] (threefold flame) के माध्यम से माता की पवित्रता की प्राप्ति भी है। यह ईश्वर की इच्छा को पूरा करने की आकांक्षा में पूर्ण विश्वास है, यह स्वयं की मुक्ति की आशा भी है जो हम ईश्वर द्वारा दिखाए गए धार्मिक मार्ग पर चलते हुए करते हैं, यह वह उत्कृष्ट दान है जो प्रभुमय होकर हम देते और लेते हैं। | ||
<span id="See_also"></span> | <span id="See_also"></span> |
edits