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==हिन्दू शिक्षण== | ==हिन्दू शिक्षण== | ||
हिंदू धर्म में संस्कृत शब्द ''कर्म'' (जिसका अर्थ कार्य, काम या कृत्य है) उन कार्यों के बारे में बताने के लिए किया जाता है जो आत्मा को अस्तित्व की दुनिया से बांधते हैं। महाभारत में कहा गया है, "जैसे एक किसान एक निश्चित प्रकार के बीज से एक निश्चित फसल प्राप्त करता है, वैसे ही यह अच्छे और बुरे कर्मों के साथ होता है," महाभारत १३.६.६, क्रिस्टोफर चैपल, ''कर्मा एंड क्रिएटिविटी" में कहा गया है। (अल्बानी: स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क प्रेस, १९८६), पृष्ठ ९६.</ref> एक हिंदू महाकाव्य। क्योंकि हमने अच्छाई और बुराई दोनों बोई है, हमें फसल काटने के लिए वापस लौटना होगा। | हिंदू धर्म में संस्कृत शब्द ''कर्म'' (जिसका अर्थ कार्य, काम या कृत्य है) उन कार्यों के बारे में बताने के लिए किया जाता है जो आत्मा को अस्तित्व की दुनिया से बांधते हैं। महाभारत में कहा गया है, "जैसे एक किसान एक निश्चित प्रकार के बीज से एक निश्चित फसल प्राप्त करता है, वैसे ही यह अच्छे और बुरे कर्मों के साथ होता है," <ref>महाभारत १३.६.६, क्रिस्टोफर चैपल, ''कर्मा एंड क्रिएटिविटी" में कहा गया है। (अल्बानी: स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क प्रेस, १९८६), पृष्ठ ९६.</ref> एक हिंदू महाकाव्य। क्योंकि हमने अच्छाई और बुराई दोनों बोई है, हमें फसल काटने के लिए वापस लौटना होगा। | ||
हिंदू धर्म के अनुसार है कि कुछ जीवात्माएं पृथ्वी पर अपने जीवन से संतुष्ट रहती हैं। वे सुख-दुख, सफलता-विफलता के मिश्रण के साथ पृथ्वी पर जीवन का आनंद लेती हैं। अपने अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब करते हुए वे इस जीवन-मरण के चक्र में फंसे रहना पसंद करती हैं। | हिंदू धर्म के अनुसार है कि कुछ जीवात्माएं पृथ्वी पर अपने जीवन से संतुष्ट रहती हैं। वे सुख-दुख, सफलता-विफलता के मिश्रण के साथ पृथ्वी पर जीवन का आनंद लेती हैं। अपने अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब करते हुए वे इस जीवन-मरण के चक्र में फंसे रहना पसंद करती हैं। | ||
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लेकिन जो लोग जन्म-मृत्यु की चक्र से थक गए हैं और भगवान के साथ मिलना चाहते हैं उनके लिए एक रास्ता है। जैसा कि फ्रांसीसी उपन्यासकार होनोर डी बाल्ज़ाक ने कहा, "हम अपना प्रत्येक जीवन ईश्वर के प्रकाश तक पहुँचने के लिए जीएं। मृत्यु जीवात्मा की यात्रा का एक पड़ाव है।" <ref>होनोरे डी बाल्ज़ाक, ''सेराफिटा'', ३डी संस्करण, रेव। (ब्लौवेल्ट, एन.वाई.: गार्बर कम्युनिकेशंस, फ्रीडीड्स लाइब्रेरी, १९८६), पृष्ठ १५९.</ref> | लेकिन जो लोग जन्म-मृत्यु की चक्र से थक गए हैं और भगवान के साथ मिलना चाहते हैं उनके लिए एक रास्ता है। जैसा कि फ्रांसीसी उपन्यासकार होनोर डी बाल्ज़ाक ने कहा, "हम अपना प्रत्येक जीवन ईश्वर के प्रकाश तक पहुँचने के लिए जीएं। मृत्यु जीवात्मा की यात्रा का एक पड़ाव है।" <ref>होनोरे डी बाल्ज़ाक, ''सेराफिटा'', ३डी संस्करण, रेव। (ब्लौवेल्ट, एन.वाई.: गार्बर कम्युनिकेशंस, फ्रीडीड्स लाइब्रेरी, १९८६), पृष्ठ १५९.</ref> | ||
जब जीवात्मा अपने स्रोत पर (ईश्वर के पास) लौटने का निर्णय कर लेती है तो उसका लक्ष्य खुद को अज्ञानता और अंधकार से मुक्त करना होता है। इस प्रक्रिया में कई जन्म लग सकते हैं। महाभारत में जीवात्मा की शुद्धिकरण की प्रक्रिया की तुलना सोने को परिष्कृत करने की प्रक्रिया से की गई है - जिस प्रकार सुनार धातु को शुद्ध करने के लिए बार-बार आग में डालता है वैसे ही स्वयं को शुद्ध करने के लिए जीवात्मा को बार बार पृथ्वी पर आना पड़ता है। महाभारत हमें यह भी बताती है कि कुछ जीवात्माएं अपने "शक्तिशाली प्रयासों" द्वारा एक ही जीवन में स्वयं को शुद्ध कर लेती है, लेकिन अधिकांशतः को इस कार्य में "सैकड़ों जन्म" लग जाते हैं। <ref>किसारी मोहन गांगुली द्वारा अनुवादित | जब जीवात्मा अपने स्रोत पर (ईश्वर के पास) लौटने का निर्णय कर लेती है तो उसका लक्ष्य खुद को अज्ञानता और अंधकार से मुक्त करना होता है। इस प्रक्रिया में कई जन्म लग सकते हैं। महाभारत में जीवात्मा की शुद्धिकरण की प्रक्रिया की तुलना सोने को परिष्कृत करने की प्रक्रिया से की गई है - जिस प्रकार सुनार धातु को शुद्ध करने के लिए बार-बार आग में डालता है वैसे ही स्वयं को शुद्ध करने के लिए जीवात्मा को बार बार पृथ्वी पर आना पड़ता है। महाभारत हमें यह भी बताती है कि कुछ जीवात्माएं अपने "शक्तिशाली प्रयासों" द्वारा एक ही जीवन में स्वयं को शुद्ध कर लेती है, लेकिन अधिकांशतः को इस कार्य में "सैकड़ों जन्म" लग जाते हैं। <ref>किसारी मोहन गांगुली द्वारा अनुवादित ''द महाभारत औफ कृष्ण-द्वैपायन व्यास'', खंड १२ (नई दिल्ली: मुंशीराम मनोहरलाल, १९७०), ९:२९६।</ref> पूरी तरह से शुद्ध होने पर आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो परब्रह्म के साथ मिल जाती है। आत्मा "अमर हो जाती है।"<ref>श्वेताश्वतर उपनिषद, प्रभावानंद और मैनचेस्टर में, ''द उपनिषद'', पृष्ठ ११८.</ref> | ||
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बौद्ध धर्म इस बात से सहमत है। गौतम बुद्ध ने हमें बताया है कि कर्म को समझने से हमें अपना भविष्य बदलने का अवसर मिलता है। उन्होंने अपने एक समकालीन शिक्षक मक्खलि गोसाला - जो ये कहते थे कि मनुष्य के कर्म का उसके भाग्य पर कोई असर नहीं होता और जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा एक सहज प्रक्रिया है - को चुन्नोती दी थी। बुद्ध के अनुसार भाग्य या नियति में विश्वास करना खतरनाक है। | बौद्ध धर्म इस बात से सहमत है। गौतम बुद्ध ने हमें बताया है कि कर्म को समझने से हमें अपना भविष्य बदलने का अवसर मिलता है। उन्होंने अपने एक समकालीन शिक्षक मक्खलि गोसाला - जो ये कहते थे कि मनुष्य के कर्म का उसके भाग्य पर कोई असर नहीं होता और जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा एक सहज प्रक्रिया है - को चुन्नोती दी थी। बुद्ध के अनुसार भाग्य या नियति में विश्वास करना खतरनाक है। | ||
उन्होंने बताया कि स्वयं को अपरिवर्तनीय भाग्य के हवाले करने की अपेक्षा पुनर्जन्म हमें अपने भविष्य को बदलने में सहायता करता है। वर्तमान में किये अच्छे कर्म एक खुशहाल भविष्य का निर्माण करते हैं। धम्मपद में कहा गया है, “जब एक आदमी - जो लंबे समय से अपने परिवार से दूर है - वापिस लौटता है तो उसके रिश्तेदार, शुभचिंतक और दोस्त खुशी के साथ उसका स्वागत करते हैं, ठीक उसी प्रकार एक जीवन किये गए अच्छे कर्म दूसरे जीवन में उन कर्मों का शुभ फल देते हैं। ६७.</ref> | उन्होंने बताया कि स्वयं को अपरिवर्तनीय भाग्य के हवाले करने की अपेक्षा पुनर्जन्म हमें अपने भविष्य को बदलने में सहायता करता है। वर्तमान में किये अच्छे कर्म एक खुशहाल भविष्य का निर्माण करते हैं। धम्मपद में कहा गया है, “जब एक आदमी - जो लंबे समय से अपने परिवार से दूर है - वापिस लौटता है तो उसके रिश्तेदार, शुभचिंतक और दोस्त खुशी के साथ उसका स्वागत करते हैं, ठीक उसी प्रकार एक जीवन किये गए अच्छे कर्म दूसरे जीवन में उन कर्मों का शुभ फल देते हैं। <ref>६७.</ref> | ||
हिंदु और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों का विश्वास है कि मनुष्य के कर्म ही उसके पुनर्जन्मों का निर्धारण करते हैं - पृथ्वी पर हम तब तक जन्म लेते रहते हैं जब तक कि हम मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते। जीवित रह्ते हुए जीवात्मा का आत्मा के साथ मिलन चरणों में हो सकता है, पर मृत्यु के बाद यह मिलन स्थायी हो जाता है। | हिंदु और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों का विश्वास है कि मनुष्य के कर्म ही उसके पुनर्जन्मों का निर्धारण करते हैं - पृथ्वी पर हम तब तक जन्म लेते रहते हैं जब तक कि हम मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते। जीवित रह्ते हुए जीवात्मा का आत्मा के साथ मिलन चरणों में हो सकता है, पर मृत्यु के बाद यह मिलन स्थायी हो जाता है। | ||
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कर्म का नियम संपूर्ण बाइबल में वर्णित है। धर्मगुरु पॉल ने यह स्पष्ट रूप से बताया है कि उन्होंने [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] के जीवन और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से क्या क्या सीखा है: | कर्म का नियम संपूर्ण बाइबल में वर्णित है। धर्मगुरु पॉल ने यह स्पष्ट रूप से बताया है कि उन्होंने [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] के जीवन और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से क्या क्या सीखा है: | ||
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हर व्यक्ति को अपने कर्मों का लेखा जोखा स्वयं ही देना होता है | हर व्यक्ति को अपने कर्मों का लेखा जोखा स्वयं ही देना होता है | ||
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मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।<ref>Matt. २५:४०.</ref> ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को [[Special:MyLanguage/Lake of | मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।<ref>Matt. २५:४०.</ref> ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को ईश्वर कहते हैं, "तुम मुझसे दूर हो जाओ, उस आग,<ref>देखिये [[Special:MyLanguage/Lake of fire|अग्नि की झील]].</ref> में झुलसो जो शैतानी ताकतों के लिए तैयार की गई है।"<ref>Matt. २५:४१.</ref> | ||
धर्मदूत पॉल ने भी कर्म | धर्मदूत पॉल ने भी कर्म पर ईसा मसीह की शिक्षा की पुष्टि की है। रोम के लोगों को समझाते हुए वे कहते हैं: | ||
<blockquote>[भगवान] हर एक को उसके कर्मों के अनुसार प्रतिफल देते हैं। जो लोग सदैव भले काम करते हैं उनके लिए जीवन अनंत होता है तथा जो सत्य के रास्ते पर नहीं चलते, गलत कर्म करते हैं उन्हें हमेशा क्रोध और रोष का सामना करना पड़ता है। जो भी व्यक्ति भ्रष्टता का मार्ग अपनाता है उसे असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है और जो सत्य के मार्ग पर चलता है उसे प्रसिद्धि, सम्मान और शांति की प्राप्ति होती है... ईश्वर किसी का का पक्षपात नहीं करते। इंसान को सिर्फ उसके कर्मों का फल मिलता है। <ref>रोम। २:६-११ (जेरूसलम बाइबिल) | <blockquote>[भगवान] हर एक को उसके कर्मों के अनुसार प्रतिफल देते हैं। जो लोग सदैव भले काम करते हैं उनके लिए जीवन अनंत होता है तथा जो सत्य के रास्ते पर नहीं चलते, गलत कर्म करते हैं उन्हें हमेशा क्रोध और रोष का सामना करना पड़ता है। जो भी व्यक्ति भ्रष्टता का मार्ग अपनाता है उसे असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है और जो सत्य के मार्ग पर चलता है उसे प्रसिद्धि, सम्मान और शांति की प्राप्ति होती है... ईश्वर किसी का का पक्षपात नहीं करते। इंसान को सिर्फ उसके कर्मों का फल मिलता है। <ref>रोम। २:६-११ (जेरूसलम बाइबिल)</ref></blockquote> | ||
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'सरमन ऑन द माउंट' में ईसा मसीह कहते हैं कि कर्म का नियम गणितीय नियमों की तरह सटीक और स्पष्ट है: "आप जिस भाव के साथ निर्णय लेते हैं, उसी भाव के साथ आपका भी न्याय किया जाता है।"<ref>Matt ७:२.</ref> मैथ्यू ५-७ में ईसा मसीह ने धार्मिक और अधार्मिक आचरण (विचारों, भावनाओं, शब्दों और हाथों द्वारा किये गए कार्य) के परिणामों के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। संभवतः यह कर्म के सिद्धांत पर सबसे बड़ी शिक्षा है, इसमें उन्होंने बताया है कि अपने कर्मों के प्रति हमारी व्यक्तिगत जवाबदेही होती है। | |||
== | <span id="Lords_of_Karma"></span> | ||
== कर्म के स्वामी == | |||
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कार्मिक बोर्ड आठ दिव्यगुरुओं की एक संस्था है जो पृथ्वी के प्रत्येक जीव की ज़िम्मेदारी उठाती है। इनका कार्य हर एक जीव को उसके कर्म के अनुसार, दया दिखाते हुए, उचित इन्साफ देना है। ये सभी २४ वरिष्ठ दिव्यात्माओं के अधीन रहते हुए, पृथ्वी के जीवों और उनके कर्मों के बीच मध्यस्तता का काम करते हैं। | |||
कर्म के स्वामी इंसान के व्यक्तिगत कर्म, उनके सामूहिक कर्म, राष्ट्रीय कर्म और सम्पूर्ण विश्व के कर्म के चक्रों का निर्णय करते हैं। ये कानून को सदा उस तरीके से लागू करने का प्रयास करते हैं जिससे लोगों को आध्यात्मिक उन्नति करने के अच्छे अवसर मिलें। | |||
== | <span id="Astrology_and_karma"></span> | ||
== ज्योतिष शास्त्र और कर्म == | |||
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यदि ज्योतिष शास्त्र का अच्छे से अध्ययन किया जाए तो हमें पता चलेगा की यह विद्या कर्म की पुनरावृति के बारे में एकदम सही भविष्यवाणी करती है। इसका प्रयोग करके हम ना सिर्फ व्यक्तियों का वरन संस्थानों, राष्ट्रों और ग्रहों के कर्मो का भी पता लगा सकते हैं - कब कौन सी कठिनाई से सामना होनेवाला है और कब कौन सी सीख हमें मिलने वाली है - इन सब बातों का पता चल सकता है। राशि चक्र का प्रत्येक चिन्ह और प्रत्येक ग्रह हमारे जीवन में गुरु की भूमिका निभा सकता है। | |||
अपना जीवन चक्र (अपने पूर्व कर्मों द्वारा) मनुष्य स्वयं लिखता है। मनुष्य के कर्म उसका भाग्य बनाते हैं, और यही सब ज्योतिषी हमें जन्म कुंडली पढ़ कर बताते हैं। व्यक्ति के पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार कर्म के स्वामी उसके वर्तमान जीवन का क्रम लिखते हैं। इसी के अनुसार व्यक्ति के जीवन में परीक्षा की विभिन्न घड़ियाँ भी आती हैं। किसी भी इंसान का व्यक्तित्व और मनोवृति जन्म-जन्मांतर के उसके कर्मों पर आधारित होती है, और इसी के अनुसार वह अपने जीवन में आनेवाली परीक्षाओं का सामना करता है। | |||
अक्सर हम अपनी कुंडली में लिखी किसी विपरीत परिस्थिति को बुरा कहते हैं - यह भाव हमारी कर्म सम्बन्धी कमज़ोरी को दर्शाता है। जन्म कुंडली हमें बताती है कि विपरीत परिस्थितियां हमारे जीवन में कितना समय तक रहेंगी। | |||
== | <span id="Karma_as_opportunity"></span> | ||
== कर्म एक अवसर प्रदान करता है == | |||
लोग अक्सर कर्म को भगवान का क्रोध मानते हैं, वे यह सोचते हैं कि वर्तमान का बुरा समय उनके पूर्व में किये गए किसी बुरे कर्म का फल है। यह अवधारणा लूसिफ़ेर जैसे पथभ्रष्ट देवदूतों द्वारा फैलाई गई है। | |||
कर्म सज़ा नहीं है, बल्कि यह पूर्व में कियते गए कर्म को सुधारने का एक अवसर है। हमें इस मौके को गँवाना नहीं चाहिए वरन आनंद के साथ इसका लाभ उठाना चाहिए क्योंकि यह हमारे जीवन के ऋणों को संतुलित करने का मौका है। | |||
यह हमारे लिए स्वतंत्र होने का मौका है, और हमें सिखाता है कि हमें अनासक्त रहना चाहिए और दूसरों के ऊपर अपना अधिकार नहीं जमाना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि जो हम देंगे वही हमारे पास लौटकर भी आएगा और इसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए। अगर भूतकाल में प्यार देने की भावनाओं को महसूस किया है तो प्यार पाने की भावनाओं का अनुभव भी होना चाहिए। और यदि हमने औरों को घृणा और दुःख दिए हैं तो वह भी हमें अनुभव करने होंगे। हमें कभी भी यह नहीं लगना चाहिए कि हमारे साथ कोई अन्याय हो रहा है। | |||
दुर्भाग्य से कई लोग ईश्वर के कानून को ईश्वर की नाराज़गी समझते हैं, वे समझते हैं ईश्वर ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है। वे ईश्वर को सिर्फ एक कानून निर्माता के रूप में देखते हैं जिसका काम हमें गलतियों की सज़ा देना है। परन्तु यह सत्य नहीं है। ईश्वर कभी भी हमारे कर्मों को दण्ड के रूप में नहीं देते। कर्म एक अवैयक्तिक नियम की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है अर्थात यह कानून सबके लिए बराबर है परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार मिलता है। वास्तव में कर्म ही हमारा गुरु है, यह न हो तो हम कुछ सीख ही ना पाएं। जीवन का कठिन समय हमें यह जानने का अवसर देता है कि अपनी ऊर्जा का दुरुपयोग हमने कब और कैसे किया। | |||
जब तक हम ईश्वर के कानून को उनके प्रेम के रूप में नहीं पहचानते संभवतः तब तक हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन जब हम यह बात मान लेते हैं तब हम कर्म को ईश्वर की दया के रूप में पहचान पाते हैं। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि जो भी हमारे जीवन में घटता है वह ईश्वर के प्रेम के तहत होता है। अगर ईश्वर हमें कोई सज़ा भी देते हैं तो वह भी उनका प्रेम ही है, वह हमें परिष्कृत करने के लिए ऐसा करते हैं। यह प्रेम ही हमारे जीवन में आध्यात्मिक उन्नति लाता है। | |||
== | <span id="Transmutation_of_karma"></span> | ||
== कर्म का रूपांतरण == | |||
[[Saint Germain]] | [[Special:MyLanguage/Saint Germain|संत जर्मेन]] ने मानवता को [[Special:MyLanguage/violet flame|वायलेट लौ]] का प्रयोग करके कर्म को [[Special:MyLanguage/transmutation|रूपांतरण]] करने का मार्ग दिखाया है। ऐसा करके व्यक्ति [[Special:MyLanguage/Christhood|ईश्वरत्व]] को प्राप्त कर, [[Special:MyLanguage/ascension|मोक्ष]] प्राप्त कर पुनर्जन्म के चक्र से बाहर आ सकता है। [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] ने अपने जीवन द्वारा इसी मार्ग को दर्शाया है। | ||
== | <span id="See_also"></span> | ||
== इसे भी देखिये == | |||
[[Reincarnation]] | [[Special:MyLanguage/Reincarnation|पुनर्जन्म]] | ||
[[Group karma]] | [[Special:MyLanguage/Group karma|सामूहिक कर्म]] | ||
[[Token karma]] | [[Special:MyLanguage/Token karma|सांकेतिक कर्म]] | ||
[[Karma dodging]] | [[Special:MyLanguage/Karma dodging|कर्म को चकमा देना]] | ||
[[Karma in the Bible]] | [[Special:MyLanguage/Karma in the Bible|बाइबिल में कर्म]] | ||
[[Lords of Karma]] | [[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्म के देवता]] | ||
== | <span id="For_more_information"></span> | ||
== अधिक जानकारी के लिए == | |||
{{LTJ}}, | {{LTJ}}, पृष्ठ १७३–७७ | ||
{{LTH}}, | {{LTH}}, पृष्ठ २३८–४७ | ||
{{PST}}. | {{PST}}. | ||
== | <span id="Sources"></span> | ||
== स्रोत == | |||
{{SGA}}, | {{SGA}}, शब्दावली, एस.वी. "कर्म" | ||
{{PST}}. | {{PST}}. | ||
{{RML}}, | {{RML}}, चौथा अध्याय | ||
{{MTR}}, | {{MTR}}, एस.वी. “कार्मिक बोर्ड” | ||
{{PTA}}. | {{PTA}}. | ||
एलिज़ाबेथ क्लेयर प्रोफेट, ३१ दिसंबर १९७२; २९ जून १९८८ | |||
एलिज़ाबेथ क्लेयर प्रोफेट, "प्रोफेसीस फॉर द नाइनटीस III," {{POWref|३३|८| २५ फरवरी, १९९०}} | |||
<references /> | <references /> |
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