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मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के  सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।<ref>Matt. २५:४०.</ref> ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को ईश्वर कहते हैं, "तुम मुझसे दूर हो जाओ, उस आग,<ref>देखिये [[Special:MyLanguage/Lake of fire|अग्नि की झील]]<ref> में झुलसो जो शैतानी ताकतों के लिए तैयार की गई है।"</ref>Matt. २५:४१.</ref>
मैथ्यू २५ में ईसा मसीह बताते हैं कि अंतिम निर्णय व्यक्ति के  सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों पर आधारित होता है। प्रेम से किये गए कार्य (जैसे की बिना कुछ पाने की आशा के किया गया दान) मोक्ष की कुंजी हैं। ईश्वर कहते हैं जो लोग निस्वार्थ भाव से से दूसरों की सेवा करते हैं उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।<ref>Matt. २५:४०.</ref> ईश्वर की इच्छा के विपरीत कार्य करने वालों को ईश्वर कहते हैं, "तुम मुझसे दूर हो जाओ, उस आग,<ref>देखिये [[Special:MyLanguage/Lake of fire|अग्नि की झील]]<ref> में झुलसो जो शैतानी ताकतों के लिए तैयार की गई है।"</ref>Matt. २५:४१.</ref>


धर्मदूत पॉल ने भी कर्म के पारिश्रमिक पर ईसा मसीह की शिक्षा की पुष्टि की है। रोम के लोगों को समझाते हुए वे कहते हैं:
धर्मदूत पॉल ने भी कर्म पर ईसा मसीह की शिक्षा की पुष्टि की है। रोम के लोगों को समझाते हुए वे कहते हैं:


<blockquote>[भगवान] हर एक को उसके कर्मों के अनुसार प्रतिफल देते हैं। जो लोग सदैव भले काम करते हैं उनके लिए जीवन अनंत होता है तथा जो सत्य के रास्ते पर नहीं चलते, गलत कर्म करते हैं उन्हें हमेशा क्रोध और रोष का सामना करना पड़ता है। जो भी व्यक्ति भ्रष्टता का मार्ग अपनाता है उसे असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है और जो सत्य के मार्ग पर चलता है उसे प्रसिद्धि, सम्मान और शांति की प्राप्ति होती है... ईश्वर किसी का का पक्षपात नहीं करते। इंसान को सिर्फ उसके कर्मों का फल मिलता है। <ref>रोम। २:६-११ (जेरूसलम बाइबिल)</ref></blockquote>
<blockquote>[भगवान] हर एक को उसके कर्मों के अनुसार प्रतिफल देते हैं। जो लोग सदैव भले काम करते हैं उनके लिए जीवन अनंत होता है तथा जो सत्य के रास्ते पर नहीं चलते, गलत कर्म करते हैं उन्हें हमेशा क्रोध और रोष का सामना करना पड़ता है। जो भी व्यक्ति भ्रष्टता का मार्ग अपनाता है उसे असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है और जो सत्य के मार्ग पर चलता है उसे प्रसिद्धि, सम्मान और शांति की प्राप्ति होती है... ईश्वर किसी का का पक्षपात नहीं करते। इंसान को सिर्फ उसके कर्मों का फल मिलता है। <ref>रोम। २:६-११ (जेरूसलम बाइबिल)</ref></blockquote>
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