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अज्ञानतावश मनुष्य डरते हैं, उन्हें न्याय में विश्वास रखना चाहिए और इससे ढाढ़स भी बांधना चाहिए। यद्यपि मैं न्याय की देवी के रूप में जानी जाती हूं, अनुकम्पा मेरे साथ रहती है। अनुकम्पा की देवी [[Special:MyLanguage/Kuan Yin|कुआन यिन]] (Kuan Yin) सदा मेरे साथ चलती है और अपनी चमक भी बिखेरती हैं। | अज्ञानतावश मनुष्य डरते हैं, उन्हें न्याय में विश्वास रखना चाहिए और इससे ढाढ़स भी बांधना चाहिए। यद्यपि मैं न्याय की देवी के रूप में जानी जाती हूं, अनुकम्पा मेरे साथ रहती है। अनुकम्पा की देवी [[Special:MyLanguage/Kuan Yin|कुआन यिन]] (Kuan Yin) सदा मेरे साथ चलती है और अपनी चमक भी बिखेरती हैं। | ||
मनुष्य कांपते हैं, क्योंकि वे अज्ञानता में कांपते हैं। तो फिर, उन्हें अब न्याय से सांत्वना मिले और जानें कि यद्यपि मैं न्याय की देवी के रूप में जानी जाती हूं, दया हां के लिए मेरा हाथ पकड़ती है और हां के लिए ऐसा करेगी, [[विशेष: मेरी भाषा/कुआन यिन|कुआन यिन]] मैं जहाँ भी चलता हूँ मेरे साथ चलती है और अपनी चमक भी बिखेरती है। | |||
न्याय पर दया की मुहर लगी होती है। और यदि आप भी वैसा ही करते हैं जैसा मैं करती हूं तो जब भी आप अपने अधीन लोगों को न्याय देने का प्रयास करेंगे आप उनके प्रति दया भी रखेंगे। न्याय और कृपा का असंतुलन मानव जाति के नष्ट होने का कारण बनेगा। जब आप आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार कार्य करते हैं तो आप न्याय और अनुकम्पा का सही संतुलन बना पाते हैं जो की लोगों के लिए उचित है।<ref>पोरशिया, १० अक्टूबर, १९६४।</ref> | न्याय पर दया की मुहर लगी होती है। और यदि आप भी वैसा ही करते हैं जैसा मैं करती हूं तो जब भी आप अपने अधीन लोगों को न्याय देने का प्रयास करेंगे आप उनके प्रति दया भी रखेंगे। न्याय और कृपा का असंतुलन मानव जाति के नष्ट होने का कारण बनेगा। जब आप आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार कार्य करते हैं तो आप न्याय और अनुकम्पा का सही संतुलन बना पाते हैं जो की लोगों के लिए उचित है।<ref>पोरशिया, १० अक्टूबर, १९६४।</ref> |
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