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Mater/hi: Difference between revisions

Created page with "परम पिता परमात्मा स्वयं के इस मातृ रूप द्वारा अपने बच्चों में त्रिदेव ज्योत के माध्यम से आत्मिक चेतना को एक विकसित करता है। त्रिदेव ज्योत ही वह दिव्य चिंगारी है जो मा..."
(Created page with "[लैटिन में “माँ” को ''मातृ'' कहते हैं] मातृ का अर्थ है ईश्वर की ज्वाला का मूर्त रूप में प्रकट होना। इसके द्वारा आत्मा ईश्वर की स्त्रियोचित ध्रुवता द्वारा 'शारीरिक रूप से' चौगुना विस्तार...")
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[लैटिन में “माँ” को ''मातृ'' कहते हैं] मातृ का अर्थ है ईश्वर की ज्वाला का मूर्त रूप में प्रकट होना। इसके द्वारा आत्मा ईश्वर की स्त्रियोचित ध्रुवता द्वारा 'शारीरिक रूप से' चौगुना विस्तार और आकृति ग्रहण करती है। इस शब्द का प्रयोग “'''पदार्थ'''” के लिए भी किया जाता है जो उन स्तरों की बारे में बताता है जहां व्यापक पात्रों और सांचों में ईश्वर के मातृ-रुपी प्रकाश का अवतरण होता है।  
[लैटिन में “माँ” को ''मातृ'' कहते हैं] मातृ का अर्थ है ईश्वर की ज्वाला का मूर्त रूप में प्रकट होना। इसके द्वारा आत्मा ईश्वर की स्त्रियोचित ध्रुवता द्वारा 'शारीरिक रूप से' चौगुना विस्तार और आकृति ग्रहण करती है। इस शब्द का प्रयोग “'''पदार्थ'''” के लिए भी किया जाता है जो उन स्तरों की बारे में बताता है जहां व्यापक पात्रों और सांचों में ईश्वर के मातृ-रुपी प्रकाश का अवतरण होता है।  


It is through this Mother aspect of himself that the Spirit of God, the Father, evolves the consciousness of the Christ, the only begotten Son of God, in his children as a developing Christ-Self awareness through the [[threefold flame]]—divine spark and signet of their joint-heirship to be.
परम पिता परमात्मा स्वयं के इस मातृ रूप द्वारा अपने बच्चों में [[Special:MyLanguage/threefold flame|त्रिदेव ज्योत]] के माध्यम से आत्मिक चेतना को एक विकसित करता है। त्रिदेव ज्योत ही वह दिव्य चिंगारी है जो मानव के दिव्य होने पर मोहर लगाती है।


The soul that descends from the plane of Spirit abides in time and space in Mater for the purpose of its spiritual/physical evolution that necessitates self-mastery of the energies of God through the judicious exercise of free will.  
The soul that descends from the plane of Spirit abides in time and space in Mater for the purpose of its spiritual/physical evolution that necessitates self-mastery of the energies of God through the judicious exercise of free will.  
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