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आदर्श समाज के मुखिया, राजा, और वैज्ञानिक होते हैं। वास्तव में सरकार, विज्ञान और [[Special:MyLanguage/religion|धर्म]] के बीच कोई भिन्नता नहीं होती है क्योंकि ये [[Special:MyLanguage/power, wisdom and love|शक्ति, ज्ञान और प्रेम]] (power, wisdom and love) की त्रिज्योति लौ की अभिव्यक्ति हैं। मंदिरों और सरकारी, शिक्षात्मक और वैज्ञानिक संस्थाओं में अधिकार के पद उन दीक्षार्थियों (initiates) को प्रदान किए जाते हैं जिन्होंने कुछ सीमा तक आत्म-निपुणता (self-mastery) प्राप्त कर ली है जिसके कारण वे अन्य लोगों (जो दीक्षा के निचले पायदानों पर हैं) के लिए उचित निर्णय लेने के योग्य हैं। अंततः सभी पृथ्वीवासियों को अपने सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना होगा। | आदर्श समाज के मुखिया, राजा, और वैज्ञानिक होते हैं। वास्तव में सरकार, विज्ञान और [[Special:MyLanguage/religion|धर्म]] के बीच कोई भिन्नता नहीं होती है क्योंकि ये [[Special:MyLanguage/power, wisdom and love|शक्ति, ज्ञान और प्रेम]] (power, wisdom and love) की त्रिज्योति लौ की अभिव्यक्ति हैं। मंदिरों और सरकारी, शिक्षात्मक और वैज्ञानिक संस्थाओं में अधिकार के पद उन दीक्षार्थियों (initiates) को प्रदान किए जाते हैं जिन्होंने कुछ सीमा तक आत्म-निपुणता (self-mastery) प्राप्त कर ली है जिसके कारण वे अन्य लोगों (जो दीक्षा के निचले पायदानों पर हैं) के लिए उचित निर्णय लेने के योग्य हैं। अंततः सभी पृथ्वीवासियों को अपने सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना होगा। | ||
आदर्श समाज के नियम उन ब्रह्मांडीय नियमों पर आधारित हैं जिसे इस विश्व के निर्माता (ईश्वर) ने मनुष्य के "आंतरिक भागों" में डाला है, | आदर्श समाज के नियम उन ब्रह्मांडीय नियमों पर आधारित हैं जिसे इस विश्व के निर्माता (ईश्वर) ने मनुष्य के "आंतरिक भागों" में डाला है, उसके दिल में लिखा है, और अपने देवदूतों द्वारा सार्वभौमिक सत्य के अभिलेखागार में दर्ज करवाया है। इन्हें दिव्यगुरुओं के [[Special:MyLanguage/Etheric retreat|आकाशीय आश्रय स्थलों]] (Etheric retreats) में आज तक सुरक्षित रखा गया है। | ||
जो लोग मनुष्य पर ईश्वर के अधिकार को स्वीकार करते हैं, उन्हें आदर्श समाज में ईश्वर के अधिपति के रूप में शासन करने का अधिकार है। जैसे आत्मा प्रत्येक मनुष्य की मुखिया है और अस्तित्व की आधारशिला है, ठीक वैसे ही ईश्वर आदर्श समाज का मुखिया है। और जिन लोगों में आत्मिक चेतना की अधिकता होती है, वे ही शासन करने के लिए सर्वाधिक योग्य होते हैं। इसलिए सभी मनुष्यों का सर्वोच्च लक्ष्य सार्वभौमिक आत्मा की अभिव्यक्ति है। इस लक्ष्य के अनुपालन के बिना सतयुग की सभ्यता कायम नहीं हो सकती। क्योंकि वर्तमान समय में सभी पृथ्वीवासी इस लक्ष्य के प्रति समर्पित नहीं हैं, यहाँ आदर्श समाज स्थापित नहीं हो पाया है। | जो लोग मनुष्य पर ईश्वर के अधिकार को स्वीकार करते हैं, उन्हें आदर्श समाज में ईश्वर के अधिपति के रूप में शासन करने का अधिकार है। जैसे आत्मा प्रत्येक मनुष्य की मुखिया है और अस्तित्व की आधारशिला है, ठीक वैसे ही ईश्वर आदर्श समाज का मुखिया है। और जिन लोगों में आत्मिक चेतना की अधिकता होती है, वे ही शासन करने के लिए सर्वाधिक योग्य होते हैं। इसलिए सभी मनुष्यों का सर्वोच्च लक्ष्य सार्वभौमिक आत्मा की अभिव्यक्ति है। इस लक्ष्य के अनुपालन के बिना सतयुग की सभ्यता कायम नहीं हो सकती। क्योंकि वर्तमान समय में सभी पृथ्वीवासी इस लक्ष्य के प्रति समर्पित नहीं हैं, यहाँ आदर्श समाज स्थापित नहीं हो पाया है। |
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