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पूर्वी और पश्चिमी देशो में कई जन्म लेने व् विभिन्न दीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद यीशु ने अपने अंतिम अवतार में जन्म लिया। इन सब जन्मों के समय उन्होंने अपने कर्म का एक छोटा भाग अपने भविष्य के मिशन के लिए बचाये रखा था - इसे उन्होंने तैंतीस साल की उम्र में फिलिस्तीन (Palestine) छोड़ने के समय संतुलित किया। यीशु ने यह जान लिया था कि उनके पुराने गुरु अलाइजा (Elijah) ने इस जन्म में जॉन द बैपटिस्ट (John the Baptist) के रूप में जन्म लिया है और ऐसा उन्होंने अपने चेले (यीशु) के लिए रास्ता तैयार करने के लिए किया था। | पूर्वी और पश्चिमी देशो में कई जन्म लेने व् विभिन्न दीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद यीशु ने अपने अंतिम अवतार में जन्म लिया। इन सब जन्मों के समय उन्होंने अपने कर्म का एक छोटा भाग अपने भविष्य के मिशन के लिए बचाये रखा था - इसे उन्होंने तैंतीस साल की उम्र में फिलिस्तीन (Palestine) छोड़ने के समय संतुलित किया। यीशु ने यह जान लिया था कि उनके पुराने गुरु अलाइजा (Elijah) ने इस जन्म में जॉन द बैपटिस्ट (John the Baptist) के रूप में जन्म लिया है और ऐसा उन्होंने अपने चेले (यीशु) के लिए रास्ता तैयार करने के लिए किया था। | ||
जॉन द बैपटिस्ट ने यीशु के बारे में कहा, "उसे बढ़ना चाहिए और मुझे कम होना चाहिए।"<ref>जॉन ३:३०।</ref> इसके बाद गुरु पीछे हट गए ताकि यीशु उस युग (मीन युग) में प्रभु का प्रभावशाली अवतार बन पाएं। | जॉन द बैपटिस्ट (John the Baptist) ने यीशु के बारे में कहा, "उसे आत्मिक ज्ञान में अवश्य | ||
बढ़ना चाहिए और मुझे कम होना चाहिए।"<ref>जॉन ३:३०।</ref> इसके बाद गुरु पीछे हट गए ताकि यीशु उस युग (मीन युग) में प्रभु का प्रभावशाली अवतार बन पाएं। | |||
बारह से तीस वर्ष की आयु के बीच, यीशु ने [[Special:MyLanguage/Ascension Temple|असेंशन टेम्पल]] और हिमालय के बाहरी और भीतरी दोनों स्थानों में अध्ययन किया। मिश्र में स्थित लक्सर के असेंशन टेम्पल के प्रमुख [[Special:MyLanguage/Serapis Bey|सेरापिस बे]] ने बताया है कि यीशु युवावस्था में लक्सर आये थे। उन्होंने यह भी बताया है कि यीशु ने किसी भी प्रकार का सम्मान लेने से इंकार कर दिया; वे हिरोफ़ैंट के सामने सर झुका कर खड़े हो गए और उन्होंने आध्यात्मिक कानून एवं रहस्य विद्या में दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की। यद्यपि वे सर्वोच्च सम्मान के हकदार थे परन्तु उनके चेहरे पर अहम् का कोई भाव नहीं था, और न ही कोई गर्व का भावना या झूठी उम्मीद।<ref>{{DOA}}, पृष्ठ ३३.</ref> | बारह से तीस वर्ष की आयु के बीच, यीशु ने [[Special:MyLanguage/Ascension Temple|असेंशन टेम्पल]] और हिमालय के बाहरी और भीतरी दोनों स्थानों में अध्ययन किया। मिश्र में स्थित लक्सर के असेंशन टेम्पल के प्रमुख [[Special:MyLanguage/Serapis Bey|सेरापिस बे]] ने बताया है कि यीशु युवावस्था में लक्सर आये थे। उन्होंने यह भी बताया है कि यीशु ने किसी भी प्रकार का सम्मान लेने से इंकार कर दिया; वे हिरोफ़ैंट के सामने सर झुका कर खड़े हो गए और उन्होंने आध्यात्मिक कानून एवं रहस्य विद्या में दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की। यद्यपि वे सर्वोच्च सम्मान के हकदार थे परन्तु उनके चेहरे पर अहम् का कोई भाव नहीं था, और न ही कोई गर्व का भावना या झूठी उम्मीद।<ref>{{DOA}}, पृष्ठ ३३.</ref> |
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