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== आज का लक्ष्य == | == आज का लक्ष्य == | ||
यीशु हमें दिव्यगुरुओं | यीशु हमें दिव्यगुरुओं की देखरेख में शिष्यता के मार्ग पर चलने के लिए कहते हैं। उन्होंने इस पथ पर चलने के लिए प्रार्थनाओं की एक श्रृंखला जारी की है, जो ''वॉकिंग विद द मास्टर: आंसरिंग द कॉल ऑफ जीसस'' (Walking with the Master: Answering the Call of Jesus) <ref>{{WWM}}</ref> पुस्तक में प्रकाशित की गई है। कुम्भ युग के अपने शिष्यों से यीशु कहते हैं, “मित्र के लिए अपने प्राण त्यागना प्रेम का सर्वोच्च उदाहरण है ।<ref>जॉन १५:१३.</ref> मेरे प्रिय जनों, मैं मृत्यु की नहीं, बल्कि एक जीवंत जीवन की बात कर रहा हूँ - एक ऐसा जीवन जो मेरे दिल तक पहुंचने के लिए जीया गया है। ऐसा व्यक्ति ही एक सच्चा शिष्य है जो धर्मदूत कहलाने का अधिकार रखता है।वह ही प्रकाश का दूत और प्रकाश का संवाहक माना जाता है। {{POWref|३०|२७|, ५ जुलाई, १९८७}}</ref> | ||
<span id="Retreats"></span> | <span id="Retreats"></span> |
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