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Ascension/hi: Difference between revisions

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पवित्र होने का अर्थ है ईश्वर के अनुशासन में रहना "अपने पूरे तन-मन से प्रभु से प्रेम करना" सभी मनुष्यों में ईश्वर का वास समझकर उनके प्रति भी प्रेम का भाव रखना, सभी दिव्यगुरूओं के प्रति पर्याप्त भक्ति भाव रखना और सान्सारिक घटनाओं के प्रति समभाव महसूस करते हुए अपने में ये द्रढ़ विश्वास पैदा करना कि  "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ईश्वर का अनुसरण करूँगा"।<ref>Matt. 22:37–39; John 21:22.</ref>
पवित्र होने का अर्थ है ईश्वर के अनुशासन में रहना "अपने पूरे तन-मन से प्रभु से प्रेम करना" सभी मनुष्यों में ईश्वर का वास समझकर उनके प्रति भी प्रेम का भाव रखना, सभी दिव्यगुरूओं के प्रति पर्याप्त भक्ति भाव रखना और सान्सारिक घटनाओं के प्रति समभाव महसूस करते हुए अपने में ये द्रढ़ विश्वास पैदा करना कि  "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ईश्वर का अनुसरण करूँगा"।<ref>Matt. 22:37–39; John 21:22.</ref>


आध्यात्मिक उत्थान हर उस व्यक्ति के लिए लक्ष्य है जो अपने होने का कारण समझता है। इस बात का एहसास देर-सवेर हर एक व्यक्ति को होता है - कभी कभी बहुत छोटी उम्र में ही यह चेतना मिल जाती है। यह [[Special:MyLanguage/initiation|बीजारोपण]] व्यक्ति में  तब होता है जब:  
आध्यात्मिक उत्थान हर उस व्यक्ति के लिए लक्ष्य है जो अपने होने का कारण समझता है। यह [[Special:MyLanguage/initiation|दीक्षा]] (initiation) किसी भी व्यक्ति को मिल सकती है चाहे वो छोटा बच्चा ही क्यों न हो, जब वह तैयार हो:  


* जब वह अपनी ह्रदय में स्थित त्रिज्योति लौ (threefold flame) को संतुलित कर लेता है।   
* जब वह अपनी ह्रदय में स्थित त्रिज्योति लौ (threefold flame) को संतुलित कर लेता है।   
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* जब उसका ह्रदय ईश्वर और मनुष्य दोनों को समान समझे तथा वह ईश्वर के अनंत रूप से उभरती हुई उपस्थिति की कभी न बुझने वाले  इश्वरिये प्रकाश द्वारा आध्यात्मिक उत्थान की आकांक्षा रखता हो।   
* जब उसका ह्रदय ईश्वर और मनुष्य दोनों को समान समझे तथा वह ईश्वर के अनंत रूप से उभरती हुई उपस्थिति की कभी न बुझने वाले  इश्वरिये प्रकाश द्वारा आध्यात्मिक उत्थान की आकांक्षा रखता हो।   


[[Special:MyLanguage/Luxor|लक्सर]] में स्थित आध्यात्मिक उत्थान के मंदिर और आश्रय स्थल द्वारा दी गयी दीक्षाओं में पारित होना भी आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया का एक भाग है:  
आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया में [[Special:MyLanguage/Luxor|लक्सर]] (Luxor) में स्थित आश्रय स्थल में दी गयी दीक्षाओं में सफल होना अनिवार्य है:  


* [[Special:MyLanguage/electronic belt|इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट]] का [[Special:MyLanguage/transmutation|रूपांतरण]]  
* [[Special:MyLanguage/electronic belt|इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट]] (electronic belt) का [[Special:MyLanguage/transmutation|रूपांतरण]] (transmutation)
* [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] तथा [[Special:MyLanguage/caduceus|सर्पदंड]] का सही उपयोग  
* [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] (chakra) तथा [[Special:MyLanguage/caduceus|सर्पदंड]] (caduceus) का सही उपयोग  
* ([[Special:MyLanguage/Kundalini|कुण्डलिनी]]) और [[Special:MyLanguage/Seed Atom|बीज परमाणु]] का उत्थान  
* [[Special:MyLanguage/Kundalini|कुण्डलिनी]] (Kundalini) और [[Special:MyLanguage/Seed Atom|बीज परमाणु]] (Seed Atom) का उत्थान  
* मानव रचना के अंतिम अवशेषों के रूपांतरण के लिए अग्नि के शंकु (cone of fire) का निर्माण  
* अंतिम नकरात्मक अवशेषों के रूपांतरण के लिए अग्नि की  कीप (cone of fire) का सृजन  


आरंभ में, व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने व्यक्तिगत कर्म के प्रत्येक ज़र्रे को पूर्णतया संतुलन करना आवश्यक था। पृथ्वी पर लिए अपने प्रत्येक जन्म में उसने जितनी भी ऊर्जा का गलत प्रयोग किया उसके प्रत्येक कण को मोक्ष प्राप्त करने से पहले पवित्र करना आवश्यक था। उत्कृष्टता हासिल करना ईश्वर के कानून की मांग थी।   
आरंभ में, व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने कर्मों का पूर्णतया संतुलन और छोटे से छोटे  कर्मों के अंशों को ईश्वरीय नियमों के अनुसार पूरा करना आवश्यक था। प्रत्येक जन्म में उसने जितनी भी ऊर्जा का गलत प्रयोग किया उसके प्रत्येक कण को मोक्ष प्राप्त करने से पहले पवित्र करना आवश्यक था। निपुणता हासिल करना ईश्वर के नियमों की मांग थी।   


पर [[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्म के स्वामी]] द्वारा की गई ईश्वर की कृपा से अब ऐसा ज़रूरी नहीं है। जिन लोगों ने अपने ५१ प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लिया है वे भी आध्यात्मिक उत्थान के अधिकारी हैं - ऐसा आशीर्वाद ईश्वर ने दिया है। इसका मतलब यह कतई नहीं है की इंसान अपने कर्मों या अपूर्ण ज़िम्मेदारियों से बच सकता है। उसे अपने बाकी कर्मों को ऊपरी स्तरों से पूरा करना होता है।   
अब [[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्मों के स्वामी]] (Lords of Karma) द्वारा की गई ईश्वर की कृपा से ऐसा ज़रूरी नहीं है। ऐसा आशीर्वाद ईश्वर ने दिया है जिसके अनुसार जिन लोगों ने केवल ५१ प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लिया है वे भी आध्यात्मिक उत्थान के अधिकारी हैं। इसका अर्थ यह नहीं है की मनुष्य अपने कर्मों या अपूर्ण ज़िम्मेदारियों से बच सकता है। यह  प्रकाश रुपी उपहार मनुष्य को मोक्ष और निपुणता के द्वारा आध्यात्मिक उत्थान की ओर अधिक शीर्घता से ले जाता है। उस स्तर से मनुष्य जीवन के  शेष ऋणों को संतुलित कर सकता है।   


जब व्यक्ति अपने १०० प्रतिशत कर्म पूरी उत्कृष्टता से संतुलित कर लेता है और वही पवित्र रूप प्राप्त कर लेता है जिस रूप में वह ईश्वर के ह्रदय से निकलकर सबसे पहले पृथ्वी पर आया था तब वह अपनी आगे की यात्रा पर अग्रसर हो सकता है।
जब मनुष्य ईश्वरीय नियमों के अनुसार १०० प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लेता है और ईश्वर से पुनः एकीकरण करके वह ब्रह्मांडीय सेवा की यात्रा पर अग्रसर हो जाता है।


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