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Ascension/hi: Difference between revisions

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* [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] (chakra) तथा [[Special:MyLanguage/caduceus|सर्पदंड]] (caduceus) का सही उपयोग  
* [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] (chakra) तथा [[Special:MyLanguage/caduceus|सर्पदंड]] (caduceus) का सही उपयोग  
* [[Special:MyLanguage/Kundalini|कुण्डलिनी]] (Kundalini) और [[Special:MyLanguage/Seed Atom|बीज परमाणु]] (Seed Atom) का उत्थान  
* [[Special:MyLanguage/Kundalini|कुण्डलिनी]] (Kundalini) और [[Special:MyLanguage/Seed Atom|बीज परमाणु]] (Seed Atom) का उत्थान  
* अंतिम अवशेषों के रूपांतरण के लिए अग्नि के शंकु (cone of fire) का निर्माण  
* अंतिम नकरात्मक अवशेषों के रूपांतरण के लिए अग्नि की  कीप (cone of fire) का सृजन  


आरंभ में, व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने कर्मों का पूर्णतया संतुलन और छोटे से छोटे  कर्मों के अंशों को ईश्वरीय नियमों के अनुसार पूरा करना आवश्यक था। प्रत्येक जन्म में उसने जितनी भी ऊर्जा का गलत प्रयोग किया उसके प्रत्येक कण को मोक्ष प्राप्त करने से पहले पवित्र करना आवश्यक था। निपुणता हासिल करना ईश्वर के नियमों की मांग थी।   
आरंभ में, व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने कर्मों का पूर्णतया संतुलन और छोटे से छोटे  कर्मों के अंशों को ईश्वरीय नियमों के अनुसार पूरा करना आवश्यक था। प्रत्येक जन्म में उसने जितनी भी ऊर्जा का गलत प्रयोग किया उसके प्रत्येक कण को मोक्ष प्राप्त करने से पहले पवित्र करना आवश्यक था। निपुणता हासिल करना ईश्वर के नियमों की मांग थी।   


पर [[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्म के स्वामी]] द्वारा की गई ईश्वर की कृपा से अब ऐसा ज़रूरी नहीं है। जिन लोगों ने अपने ५१ प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लिया है वे भी आध्यात्मिक उत्थान के अधिकारी हैं - ऐसा आशीर्वाद ईश्वर ने दिया है। इसका मतलब यह कतई नहीं है की इंसान अपने कर्मों या अपूर्ण ज़िम्मेदारियों से बच सकता है। उसे अपने बाकी कर्मों को ऊपरी स्तरों से पूरा करना होता है।   
अब [[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्मों के स्वामी]] (Lords of Karma) द्वारा की गई ईश्वर की कृपा से ऐसा ज़रूरी नहीं है। ऐसा आशीर्वाद ईश्वर ने दिया है जिसके अनुसार जिन लोगों ने केवल ५१ प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लिया है वे भी आध्यात्मिक उत्थान के अधिकारी हैं। इसका अर्थ यह नहीं है की मनुष्य अपने कर्मों या अपूर्ण ज़िम्मेदारियों से बच सकता है। यह  प्रकाश रुपी उपहार मनुष्य को मोक्ष और निपुणता के द्वारा आध्यात्मिक उत्थान की ओर अधिक शीर्घता से ले जाता है। उस स्तर से मनुष्य जीवन के  शेष ऋणों को संतुलित कर सकता है।   


जब मनुष्य ईश्वरीय नियमों के अनुसार १०० प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लेता है मनुष्य का ईश्वर से पुनः एकीकरण करके वह ब्रह्मांडीय सेवा की यात्रा पर अग्रसर हो जाता है।
जब मनुष्य ईश्वरीय नियमों के अनुसार १०० प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लेता है और ईश्वर से पुनः एकीकरण करके वह ब्रह्मांडीय सेवा की यात्रा पर अग्रसर हो जाता है।


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