Translations:Christ/4/hi: Difference between revisions
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'''सार्वभौमिक चेतना''' [[Special:MyLanguage/Spirit|आत्मा]] और [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] के स्तरों के बीच मध्यस्थता करती है; [[Special:MyLanguage/Christ Self|स्व चेतना]] का यह रूप ईश्वर की आत्मा और मनुष्य की [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] के बीच की डोरी है। सार्वभौमिक चेतना (आठ के प्रवाह) के गठजोड़ को बनाए रखती है। इसके माध्यम से पिता (आत्मा) की ऊर्जा [[Special:MyLanguage/Mother|माँ]] (पदार्थ) के ब्रह्मांडीय गर्भ (साँचा) में प्रयासरत बच्चों को उनकी जीवात्माओं द्वारा [[Special:MyLanguage/God Flame|ईश्वरीय लौ]] के क्रिस्टलीकरण (चेतना के बोध) के लिए पारित करती हैं। इस प्रक्रिया को भौतिकीकरण (मातृ-प्राप्ति), "उत्पत्ति" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा के पास एकत्रित हुई माँ की ऊर्जा [[आत्मिक चेतना]] से मिलते हुए पिता तक पहुँचती हैं उसे आध्यात्मीकरण (आत्मा का बोध), "उदय" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा | '''सार्वभौमिक चेतना''' [[Special:MyLanguage/Spirit|आत्मा]] और [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] के स्तरों के बीच मध्यस्थता करती है; [[Special:MyLanguage/Christ Self|स्व चेतना]] का यह रूप ईश्वर की आत्मा और मनुष्य की [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] के बीच की डोरी है। सार्वभौमिक चेतना (आठ के प्रवाह) के गठजोड़ को बनाए रखती है। इसके माध्यम से पिता (आत्मा) की ऊर्जा [[Special:MyLanguage/Mother|माँ]] (पदार्थ) के ब्रह्मांडीय गर्भ (साँचा) में प्रयासरत बच्चों को उनकी जीवात्माओं द्वारा [[Special:MyLanguage/God Flame|ईश्वरीय लौ]] के क्रिस्टलीकरण (चेतना के बोध) के लिए पारित करती हैं। इस प्रक्रिया को भौतिकीकरण (मातृ-प्राप्ति), "उत्पत्ति" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा के पास एकत्रित हुई माँ की ऊर्जा [[आत्मिक चेतना]] से मिलते हुए पिता तक पहुँचती हैं उसे आध्यात्मीकरण (आत्मा का बोध), "उदय" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा की ऊर्जा पदार्थ से होते हुए वापिस आत्मा में लौटती है उसे उत्कृष्ट क्रिया या [[Special:MyLanguage/transmutation|रूपांतरण]] कहते हैं। |
Revision as of 12:11, 5 December 2023
सार्वभौमिक चेतना आत्मा और पदार्थ के स्तरों के बीच मध्यस्थता करती है; स्व चेतना का यह रूप ईश्वर की आत्मा और मनुष्य की जीवात्मा के बीच की डोरी है। सार्वभौमिक चेतना (आठ के प्रवाह) के गठजोड़ को बनाए रखती है। इसके माध्यम से पिता (आत्मा) की ऊर्जा माँ (पदार्थ) के ब्रह्मांडीय गर्भ (साँचा) में प्रयासरत बच्चों को उनकी जीवात्माओं द्वारा ईश्वरीय लौ के क्रिस्टलीकरण (चेतना के बोध) के लिए पारित करती हैं। इस प्रक्रिया को भौतिकीकरण (मातृ-प्राप्ति), "उत्पत्ति" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा के पास एकत्रित हुई माँ की ऊर्जा आत्मिक चेतना से मिलते हुए पिता तक पहुँचती हैं उसे आध्यात्मीकरण (आत्मा का बोध), "उदय" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा की ऊर्जा पदार्थ से होते हुए वापिस आत्मा में लौटती है उसे उत्कृष्ट क्रिया या रूपांतरण कहते हैं।