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किसी भी युग में दो मुख्य आदर्श अवतार होते हैं - एक पुरुष और दूसरा स्त्री - जो अपने जीवन द्वारा [[Special:MyLanguage/initiation|भगवान् की दीक्षा ]] | किसी भी युग में दो मुख्य आदर्श अवतार होते हैं - एक पुरुष और दूसरा स्त्री - जो अपने जीवन द्वारा [[Special:MyLanguage/initiation|भगवान् की दीक्षा ]] जिसमें [[Special:MyLanguage/solar hierarchies|सौर पदक्रम]] (solar hierarchies) द्वारा निर्दिष्ट मार्ग जीवन को [[Special:MyLanguage/Cosmic Christ|ब्रह्मांडीय चेतना]] की ओर ले जाता है। मानव जाति के कर्म और आवश्यकता के अनुसार मनुष्यों के विकास (जीवात्मा उन्नति या अवनति), के लिए [[Special:MyLanguage/angel|मनु]] बहुत सारी पवित्र आत्माओं को निर्दिष्ट कर सकते हैं, तथा इनमें से जो अत्याधिक चेतना से आच्छादित होते हैं वे [[Special:MyLanguage/world teacher|विश्वगुरु]] और पथनिर्देशक बनते हैं। | ||
किसी भी युग में अत्याधिक आध्यात्मिक चेतना से आच्छादित अवतार अपने जीवन द्वारा "लॉ ऑफ लोगोस" (Law of the Logos) को दर्शाते हैं - "लोगोस" एक यूनानी शब्द है और "लॉ ऑफ लोगोस" का अर्थ है ब्रह्माण्ड में निहित परम सत्य। यह परम सत्य विभिन्न मनु और अवतार अपनी वाणी और कर्म द्वारा दिखाते हैं - इन सब का एक ही ध्येय है और वह है प्रत्येक मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति। | किसी भी युग में अत्याधिक आध्यात्मिक चेतना से आच्छादित अवतार अपने जीवन द्वारा "लॉ ऑफ लोगोस" (Law of the Logos) को दर्शाते हैं - "लोगोस" एक यूनानी शब्द है और "लॉ ऑफ लोगोस" का अर्थ है ब्रह्माण्ड में निहित परम सत्य। यह परम सत्य विभिन्न मनु और अवतार अपनी वाणी और कर्म द्वारा दिखाते हैं - इन सब का एक ही ध्येय है और वह है प्रत्येक मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति। |
Revision as of 09:40, 11 December 2023
[अवतार एक संस्कृत शब्द है - इसका मूल शब्द अवतारति है जो दो शब्दों अव और तारति से बना है। अव का अर्थ है "दूर" और तारति का अर्थ है "वह पार करता है"] शब्द का अवतरण करने वाला पुरुष जो आत्मा के स्तर से पदार्थ के स्तर तक सार्वभौमिक चेतना (Universal Christ) का अवतरण या पारगमन करता है।
द इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ ईस्टर्न फिलॉसफी एंड रिलिजन में अवतार की परिभाषा इस प्रकार से दी गई है। (The Encyclopedia of Eastern Philosophy and Religion defines avatar as)
ईश्वर की चेतना का पृथ्वी पर देह धारण। पृथ्वी पर अवतार का जन्म कर्मों का प्रतिफल नहीं है (जैसा की सामान्य मानवों का होता है) बल्कि यह उनकी इच्छा के अनुसार होता है। वह जीव अपने ईश्वरीय लक्ष्य को हमेशा स्मरण रखता है। अवतार [कठिन समय] में धार्मिक अनुभूति के नए रास्ते दिखाने और उन रास्तों को उस युग (जिसमे वो प्रकट हुआ है) के अनुकूल बनाने के लिए प्रकट होता है।
एक युग का अवतार
किसी भी युग का अवतार उच्च चेतना का वाहक होता है; देह धारण किये हुए उसे ईश्वर का पुत्र (विष्णु) या त्रिदेवों का दूसरा स्वरुप भी कहा जाता है। अपनी दिव्य सहायिका शक्ति या समरूप जोड़ी के साथ अवतार अपने चार निचले शरीरों में ईश्वरीय माता-पिता का स्वरुप लेता है ताकि दो हजार साल के युग में मानव जाति आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो पाए।
किसी भी युग में दो मुख्य आदर्श अवतार होते हैं - एक पुरुष और दूसरा स्त्री - जो अपने जीवन द्वारा भगवान् की दीक्षा जिसमें सौर पदक्रम (solar hierarchies) द्वारा निर्दिष्ट मार्ग जीवन को ब्रह्मांडीय चेतना की ओर ले जाता है। मानव जाति के कर्म और आवश्यकता के अनुसार मनुष्यों के विकास (जीवात्मा उन्नति या अवनति), के लिए मनु बहुत सारी पवित्र आत्माओं को निर्दिष्ट कर सकते हैं, तथा इनमें से जो अत्याधिक चेतना से आच्छादित होते हैं वे विश्वगुरु और पथनिर्देशक बनते हैं।
किसी भी युग में अत्याधिक आध्यात्मिक चेतना से आच्छादित अवतार अपने जीवन द्वारा "लॉ ऑफ लोगोस" (Law of the Logos) को दर्शाते हैं - "लोगोस" एक यूनानी शब्द है और "लॉ ऑफ लोगोस" का अर्थ है ब्रह्माण्ड में निहित परम सत्य। यह परम सत्य विभिन्न मनु और अवतार अपनी वाणी और कर्म द्वारा दिखाते हैं - इन सब का एक ही ध्येय है और वह है प्रत्येक मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति।
अवतार का आगमन
हरमेस ट्रिसमेंजिसटस ने कहा है:
पृथ्वी पर हमेशा कोई न कोई अवतार रहा ही है। परन्तु इस समय की एक बहुत बड़ी मांग महत्वपूर्ण परिवर्तन है। यह वह समय है जब आप जैसे लोग - जिन्हे हज़ारों सालों से समय समय पर ईश्वर की शांति, सद्भाव और ज्ञान का प्रकाश मिलता रहा है - एडम कैडमन बनने का बीड़ा उठायें। इसलिए हो सकता है कोई अवतार पृथ्वी पर तब तक ना उतरे जब तक कि कई बार जन्म ले चुकी अनुभवी जीवात्माएं अपने पवित्र कर्मों से पृथ्वी को ऐसा चुम्बकीय क्षेत्र बना दें जो आत्मा को इस ओर खींचे।
यह समय जीवन की रासायनिक प्रक्रिया को पलटने का है। यह समय अनेक जीवात्माओं के अंदर झाँकने का है ताकि हमें ईश्वर की परिपूर्णता का एहसास हो। यह समय हरमेस ट्रिसमेंजिसटस के गीत को पूरी शक्ति के साथ गाने का है। ईश्वर की इच्छानुसार सूर्य के भजन गाइये और उनका सच्चा पुत्र बन जाइये। अज्ञानतापूर्वक या नासमझी के साथ नहीं वरन समझ के साथ, दृढ़तापूर्वक जीव के पुनरुत्पादन का अनुमोदन कीजिये, और इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि जब तक कि पृथ्वी पर पुनरुत्पादन नहीं होता, कहीं और भी नहीं हो सकता।[1]
कुम्भ युग का अवतार
संत जरमेन ने कहा है:
मैं संत जरमेन हूँ, मैं सनत कुमार का दूत हूँ और कुम्भ युग तक रहूँगा। मैं इस युग का अवतार हूँ, और चैतन्य लोगों को रूपांतरण और पवित्र आत्मा की पवित्र अग्नि के मार्ग की दीक्षा देता रहूँगा। यही दीक्षा पृथ्वी पर ऐसे ऐतिहासिक परिवर्तन लाएगी जो इस ग्रह के प्रारंभ होने से लेकर अब तक के सबसे बड़े परिवर्तन कहलायेंगे।[2]
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.
Pearls of Wisdom, vol. 38, no. 6, ५ फरवरी, १९९५, अंतिम लेख.