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== सार्वभौमिक आत्मा == (The Universal Christ) | == सार्वभौमिक आत्मा == (The Universal Christ) | ||
'''सार्वभौमिक आत्मा''' [[Special:MyLanguage/Spirit|आत्मा]] (Spirit) और [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] (Matter) के स्तरों के बीच मध्यस्थ है; [[Special:MyLanguage/Christ Self|उच्च चेतना]] का यह रूप ईश्वरीय स्वरुप और मनुष्य की [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] (soul) के बीच स्थित है। सार्वभौमिक चेतना (आठ की आकृति के प्रवाह के द्वारा) गठजोड़ को बनाए रखती है। इसके माध्यम से पिता (Spirit) की ऊर्जा [[Special:MyLanguage/Mother|माँ]] (Matter) के ब्रह्मांडीय गर्भ (साँचें) में प्रयासरत बच्चों को उनकी जीवात्माओं में [[Special:MyLanguage/God flame|ईश्वरीय लौ]] के क्रिस्टलीकरण | '''सार्वभौमिक आत्मा''' [[Special:MyLanguage/Spirit|आत्मा]] (Spirit) और [[Special:MyLanguage/Matter|पदार्थ]] (Matter) के स्तरों के बीच मध्यस्थ है; [[Special:MyLanguage/Christ Self|उच्च चेतना]] का यह रूप ईश्वरीय स्वरुप और मनुष्य की [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] (soul) के बीच स्थित है। सार्वभौमिक चेतना (आठ की आकृति के प्रवाह के द्वारा) गठजोड़ को बनाए रखती है। इसके माध्यम से पिता (Spirit) की ऊर्जा [[Special:MyLanguage/Mother|माँ]] (Matter) के ब्रह्मांडीय गर्भ (साँचें) में प्रयासरत बच्चों को उनकी जीवात्माओं में [[Special:MyLanguage/God flame|ईश्वरीय लौ]] के क्रिस्टलीकरण के द्वारा उच्च चेतना का आभास कराती है। इस प्रक्रिया को भौतिकीकरण (मातृ-प्राप्ति), "उत्पत्ति" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा के पास एकत्रित हुई माँ की ऊर्जा [[Special:MyLanguage/Christ consciousness|उच्च चेतना]] से मिलते हुए पिता के ईश्वरीय स्वरुप तक पहुँचती हैं उसे आध्यात्मीकरण (ईश्वरीय चेतना का आभास), "उदय" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा की ऊर्जा पदार्थ से होते हुए वापिस ईश्वरीय स्वरुप में लौटती है उसे उत्कृष्ट क्रिया या [[Special:MyLanguage/transmutation|रूपांतरण]] कहते हैं। | ||
इस प्रक्रिया की समाप्ति जीवात्मा द्वारा तब अनुभव की जाती है, जब वह आध्यात्मिक [[Special:MyLanguage/ascension|उत्थान]] द्वारा अपने [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरुप]] के साथ मिल जाती है। आध्यात्मिक उत्थान उस वचन का पूर्ण होना है जो [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] ने पृथ्वी पर दिया था: "उस दिन तुम जानोगे कि मैं अपने पिता में निहित हूं, तुम मुझ में, और मैं तुम में... यदि कोई मुझ से प्रेम करता है वह मेरी बातें मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम सब उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे।"<ref>John 14:20, 23.</ref> | इस प्रक्रिया की समाप्ति जीवात्मा द्वारा तब अनुभव की जाती है, जब वह आध्यात्मिक [[Special:MyLanguage/ascension|उत्थान]] द्वारा अपने [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरुप]] के साथ मिल जाती है। आध्यात्मिक उत्थान उस वचन का पूर्ण होना है जो [[Special:MyLanguage/Jesus|ईसा मसीह]] ने पृथ्वी पर दिया था: "उस दिन तुम जानोगे कि मैं अपने पिता में निहित हूं, तुम मुझ में, और मैं तुम में... यदि कोई मुझ से प्रेम करता है वह मेरी बातें मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम सब उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे।"<ref>John 14:20, 23.</ref> |
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