Christ Self/hi: Difference between revisions

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The individualized focus of “the only begotten of the Father full of grace and truth.”<ref>John 1:14.</ref> The [[Universal Christ]] individualized as the true identity of the soul; the Real Self of every man, woman, and child to which the [[soul]] must rise. The Christ Self is the mediator between a man and his God. He is a man’s own personal Teacher, Master, and Prophet who officiates as High Priest before the altar of the Holy of Holies ([[I AM Presence]]) of every man’s temple made without hands.
"ईश्वरीय स्वरूप मे लुप्त उच्च चेतना (son) ईश्वर (father) की कृपा और सत्य से परिपूर्ण पिता की समरूप" का व्यक्तिगत ध्यान (focus) है।"<ref>John 1:14.</ref> [[Special:MyLanguage/Universal Christ|सार्वभौमिक आत्मा]] (Universal Christ) [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] (soul) का व्यक्तिगत परिचय और उसक
वास्तविक पहचान है जो प्रत्येक पुरुष, महिला और बच्चे का अध्यात्मिक उत्थान बढ़ाने के प्रयास हेतु है। उच्च चेतना मनुष्य और ईश्वरीय स्वरूप के बीच मध्यस्थ है। यह व्यक्ति का अपना निजी शिक्षक, गुरु और सिद्ध पुरुष है जो उसके मन मंदिर की परम पवित्र वेदी ([[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]]) (I AM Presence) के समक्ष उच्च पुजारी के रूप में सेवा करता है।


The advent of the universal awareness of the Christ Self in God’s people on earth is foretold by the prophets as the descent of THE LORD OUR RIGHTEOUSNESS,<ref>Jer. 23:5, 6; 33:15, 16.</ref> also called the BRANCH,<ref>Isa. 11:1; Zech. 3:8; 6:12.</ref> in the Universal Age at hand. When one achieves the fullness of soul-identification with the Christ Self, he is called a Christed, or anointed, one, and the Son of God is seen shining through the [[Son of man]].
पृथ्वी पर मनुष्यों में सार्वजानिक रूप से उच्च चेतना की जागरूकता होने के बारे में सिद्ध  पुरुषों  ने      भविष्यवाणी की थी।  उन्होंने इसे ईश्वर की नैतिकता (RIGHTEOUSNESS)<ref>Jer. 23:5, 6; 33:15, 16.</ref> और शाखा (branch)<ref>Isa. 11:1; Zech. 3:8; 6:12.</ref> कहा था। जब किसी व्यक्ति की जीवात्मा का उच्च चेतना से एकीकरण हो जाता है  तो उसे चैतन्य व्यक्ति कहा जाता है, तब वह [[Special:MyLanguage/Son of man|मनुष्य पुत्र]] ईश्वर के पुत्र के स्वरूप में उसके प्रकाश से  देदीप्यमान हो जाता है।


== See also ==
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== इसे भी देखिये ==


[[Christ]]
[[Special:MyLanguage/Christ|आत्मा]]


== Sources ==
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== स्रोत ==


{{SGA}}.
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<references />
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Latest revision as of 12:17, 28 February 2024

"ईश्वरीय स्वरूप मे लुप्त उच्च चेतना (son) ईश्वर (father) की कृपा और सत्य से परिपूर्ण पिता की समरूप" का व्यक्तिगत ध्यान (focus) है।"[1] सार्वभौमिक आत्मा (Universal Christ) जीवात्मा (soul) का व्यक्तिगत परिचय और उसक वास्तविक पहचान है जो प्रत्येक पुरुष, महिला और बच्चे का अध्यात्मिक उत्थान बढ़ाने के प्रयास हेतु है। उच्च चेतना मनुष्य और ईश्वरीय स्वरूप के बीच मध्यस्थ है। यह व्यक्ति का अपना निजी शिक्षक, गुरु और सिद्ध पुरुष है जो उसके मन मंदिर की परम पवित्र वेदी (ईश्वरीय स्वरूप) (I AM Presence) के समक्ष उच्च पुजारी के रूप में सेवा करता है।

पृथ्वी पर मनुष्यों में सार्वजानिक रूप से उच्च चेतना की जागरूकता होने के बारे में सिद्ध पुरुषों ने भविष्यवाणी की थी। उन्होंने इसे ईश्वर की नैतिकता (RIGHTEOUSNESS)[2] और शाखा (branch)[3] कहा था। जब किसी व्यक्ति की जीवात्मा का उच्च चेतना से एकीकरण हो जाता है तो उसे चैतन्य व्यक्ति कहा जाता है, तब वह मनुष्य पुत्र ईश्वर के पुत्र के स्वरूप में उसके प्रकाश से देदीप्यमान हो जाता है।

इसे भी देखिये

आत्मा

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

  1. John 1:14.
  2. Jer. 23:5, 6; 33:15, 16.
  3. Isa. 11:1; Zech. 3:8; 6:12.