Translations:Dweller-on-the-threshold/5/hi: Difference between revisions

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अवचेतन मन की दहलीज़ पर स्तिथ कृत्रिम रूप   सोये हुए सर्प के सामान है जो आत्मा की उपस्थिति में मनुष्य के अंदर जाग जाता है। उस समय जीवात्मा को अपने ईश्वरीय स्वरुप को पहचानने में और आत्मिक चेतना की शक्ति से इस कृत्रिम रूप   का हनन (slay) करने का निर्णय और अपने वास्तविक स्वरुप का पक्ष लेना चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक जीवात्मा पूरी तरह से आत्मा में विलीन नहीं हो जाती। आत्मा ही वास्तव में ईश्वरीय स्वरूप है [[Special:MyLanguage/THE LORD OF OUR RIGHTEOUSNESS|अहं ब्रह्माऽस्मि]] - जो [[Special:MyLanguage/initiation|दीक्षा]] के मार्ग पर अग्रसर हर जीव का सच्चा स्वरुप है।
मन की दहलीज़ पर स्थित कृत्रिम रूप सोये हुए सर्प के सामान है जो आत्मा की उपस्थिति में मनुष्य के अंदर जाग जाता है। उस समय जीवात्मा को अपने ईश्वरीय स्वरुप को पहचानने में और आत्मिक चेतना की शक्ति से इस कृत्रिम रूप का हनन (slay) करने का निर्णय और अपने वास्तविक स्वरुप का पक्ष लेना चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक जीवात्मा पूरी तरह से आत्मा में विलीन नहीं हो जाती। आत्मा ही वास्तव में ईश्वर है -- [[Special:MyLanguage/THE LORD OF OUR RIGHTEOUSNESS|अहं ब्रह्माऽस्मि]] -- जो [[Special:MyLanguage/initiation|दीक्षा]] के मार्ग पर अग्रसर हर जीव का सच्चा स्वरुप है।

Latest revision as of 15:37, 17 April 2024

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Message definition (Dweller-on-the-threshold)
When the sleeping serpent of the dweller is awakened by the presence of Christ, the soul must make the freewill decision to slay, by the power of the I AM Presence, this self-willed personal anti-Christ and become the defender of the Real Self until the soul is fully reunited with Him who is the righteous Lord, [[THE LORD OUR RIGHTEOUSNESS]], the true Self of every lifestream on the path of [[initiation]].

मन की दहलीज़ पर स्थित कृत्रिम रूप सोये हुए सर्प के सामान है जो आत्मा की उपस्थिति में मनुष्य के अंदर जाग जाता है। उस समय जीवात्मा को अपने ईश्वरीय स्वरुप को पहचानने में और आत्मिक चेतना की शक्ति से इस कृत्रिम रूप का हनन (slay) करने का निर्णय और अपने वास्तविक स्वरुप का पक्ष लेना चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक जीवात्मा पूरी तरह से आत्मा में विलीन नहीं हो जाती। आत्मा ही वास्तव में ईश्वर है -- अहं ब्रह्माऽस्मि -- जो दीक्षा के मार्ग पर अग्रसर हर जीव का सच्चा स्वरुप है।