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Four lower bodies/hi: Difference between revisions

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आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार के अनुरूप है। यह अग्नि शरीर है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन क्रिया होती है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन (disintegration) की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद  मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति (righteousness) जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहित जो जाती हैं ताकि कोई भी अमूल्य निधियाँ कभी खो न जाएं।
आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार के अनुरूप है। यह अग्नि शरीर है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन क्रिया होती है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन (disintegration) की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद  मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति (righteousness) जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहित जो जाती हैं ताकि कोई भी अमूल्य निधियाँ कभी खो न जाएं।


आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें कभी-कभी ''उच्च आकाशीय शरीर'' और ''निम्न आकाशीय शरीर'' भी कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM Presence) की सम्पूर्णता को रिकॉर्ड (record) करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना (divine blueprint) को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। वह जीव-आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को प्यार के हिंडोले (cradles) में झुलाते हैं  जो [[Special:MyLanguage/spoken Word|उच्चारित शब्द]] (spoken Word) की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, यह एक कंप्यूटर की तरह है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों को संग्रह करता है उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।
आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें कभी-कभी ''उच्च आकाशीय शरीर'' और ''निम्न आकाशीय शरीर'' भी कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM Presence) की सम्पूर्णता को रिकॉर्ड (record) करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना (divine blueprint) को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। वह जीव-आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को प्यार के हिंडोले (cradles) में झुलाते हैं  जो [[Special:MyLanguage/spoken Word|उच्चारित शब्द]] (spoken Word) की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, यह एक कंप्यूटर की तरह है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों को संग्रह करता है, उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।


मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर दुनिया में चैतन्य-क्रिया --- विचार, शब्द और कर्म --- की त्रिमूर्ति के लिए पात्र बनाते हैं। मानसिक शरीर में ईश्वर अपनी बुद्धि डालता है; भावनात्मक शरीर ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब कोई मनुष्य इन तीनों शरीरों को सामान रूप से सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ सही प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इन्हीं के हिसाब से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य अपने इन शरीरों को पवित्र आत्मा का मंदिर समझता है और सचेत रूप से अपनी पवित्र अवस्था में लौटता है, तो उसकी जीवात्मा की इंद्रियाँ मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीरों के माध्यम से कार्य करती हैं।
मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर दुनिया में चैतन्य-क्रिया --- विचार, शब्द और कर्म --- की त्रिमूर्ति के लिए पात्र बनाते हैं। मानसिक शरीर में ईश्वर अपनी बुद्धि डालता है; भावनात्मक शरीर ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब कोई मनुष्य इन तीनों शरीरों को सामान रूप से सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ सही प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इन्हीं के हिसाब से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य अपने इन शरीरों को पवित्र आत्मा का मंदिर समझता है और सचेत रूप से अपनी पवित्र अवस्था में लौटता है, तो उसकी जीवात्मा की इंद्रियाँ मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीरों के माध्यम से कार्य करती हैं।
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