Four lower bodies/hi: Difference between revisions

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'''चार निचले शरीर''' चार अलग-अलग आवृत्तियों से युक्त चार आवरण हैं जो [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] - शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आकाशीय - को घेरते हैं - जो जीवात्मा को समय और स्थान की यात्रा करने में सहायता करते हैं। ये वो वाहन हैं जो ईश्वर ने मानव को उसके शरीर में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण और जीवात्मा की भौतिक रूप में अभिव्यक्ति के लिए प्रदान किए हैं। अंतरभेदी बलक्षेत्रों के रूप में ये शरीर जीवात्मा को आत्मा की ऊर्जा ग्रहण करने में मदद करते हैं।
'''चार निचले शरीर''' अलग-अलग आवृत्तियों से युक्त चार आवरण हैं जो [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] को शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आकाशीय स्तर पर घेरे रहते हैं और उसे समय और स्थान की यात्रा करने में सहायता करते हैं। यह वाहन ईश्वर ने मानव को उसके शरीर में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण और जीवात्मा की भौतिक रूप में अभिव्यक्ति के लिए प्रदान किए हैं। अंतरभेदी बलक्षेत्रों के रूप में ये सब शरीर जीवात्मा को आत्मा की ऊर्जा ग्रहण करने में मदद करते हैं।


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== चार निचले शरीरों की पारस्परिक क्रिया ==
== चार निचले शरीरों की पारस्परिक क्रिया ==


यद्यपि चार शरीरों के अनुरूप चार स्तरों में से प्रत्येक में एक अद्वितीय परमाणु आवृत्ति होती है जो उस शरीर की अनूठी क्षमता की अभिव्यक्ति करती है, चार निचले शरीर एक दूसरे से आकाशीय [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] के माध्यम से जुड़े होते हैं तथा एक दुसरे में आ जा सकते हैं। ये चक्र भौतिक शरीर के साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र () व् अंत: स्रावी तंत्र () के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर एक इकाई के रूप में कार्य करता है - विचार, भावनाएं और स्मृतियाँ भौतिक शरीर से गुजरते हुए मानसिक, भावनात्मक और आकाशीय स्तर पर एक साथ स्पंदन पैदा करतीं हैं।
यद्यपि चार शरीरों के अनुरूप चार स्तरों में से प्रत्येक में एक अद्वितीय परमाणु आवृत्ति होती है जो जीवात्मा और चार शरीरों की अनूठी क्षमता को अभिव्यक्ति करती है। चार निचले शरीर एक दूसरे से आकाशीय [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] के माध्यम से जुड़े होते हैं तथा एक दुसरे में आ जा सकते हैं। ये चक्र भौतिक शरीर के साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) व् अंत: स्रावी तंत्र (endocrine system) के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर एक इकाई के रूप में कार्य करता है - विचार, भावनाएं और स्मृतियाँ भौतिक शरीर से गुजरते हुए मानसिक, भावनात्मक और आकाशीय स्तर पर एक साथ स्पंदन पैदा करतीं हैं।


हम इन चार शरीरों को एक-के-बीच-में-एक रखे हुए चार ड्रमों के रूप में मान सकते हैं। आकाशीय शरीर सबसे बड़ा होता है; उसके भीतर मानसिक शरीर, फिर भावनात्मक शरीर और अंत में भौतिक शरीर स्थित होता है। आत्मा की चेतना का प्रकाश मनुष्य के प्रत्येक शरीर पर छिद्रित बिंदु के एक नक़्शे के माध्यम से बहता है। बिंदु का यह नक्शा प्रत्येक शरीर में अलग होता है। (दैवीय रूपरेखा के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में भी बिंदु का यह नक्शा विभिन्न होता है) बिंदु के नक़्शे के भीतर कुछ आधारभूत स्वरुप इन चार "ड्रमों" की ऊर्जाओं को एक दुसरे से मिलाते हैं, जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों शरीरों के कार्यों और अपने व्यक्तित्व को एकीकृत करने में सहायता होती है। जब प्रत्येक शरीर के सभी छिद्र दुसरे शरीरों के छिद्रों के साथ सीध में होते हैं तब ही प्रकाश शानदार ढंग और दृढ़ता से प्रवाहित हो सकता है। जब ये छेद एक दुसरे के सीध में नहीं होते तो प्रकाश का अनवरत बहना मुश्किल हो जाता है, प्रकाश केवल रिस ही पाता है, फलस्वरूप व्यक्ति सुस्त और अक्षम हो जाता है।
हम इन चार शरीरों को एक के बीच में एक रखे हुए चार ड्रमों (drums) के रूप में मान सकते हैं। आकाशीय शरीर सबसे बड़ा होता है; उसके भीतर मानसिक शरीर, फिर भावनात्मक शरीर और अंत में भौतिक शरीर स्थित होता है। [[Special:MyLanguage/Christ consciousness|आत्मिक चेतना]] का प्रकाश मनुष्य के प्रत्येक शरीर पर छिद्रित बिंदु के एक नक़्शे के माध्यम से बहता है। प्रत्येक शरीर में बिंदु का यह नक्शा अलग होता है। (दैवीय रूपरेखा के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में भी बिंदु का यह नक्शा विभिन्न होता है)बिंदु के नक़्शे के भीतर कुछ आधारभूत स्वरुप इन चार "ड्रमों" की ऊर्जाओं को एक दुसरे से मिलाते हैं, जिस से प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों शरीरों के कार्यों और अपने व्यक्तित्व को एकीकृत करने में सहायता होती है। जब प्रत्येक शरीर के सभी छिद्र दुसरे शरीरों के छिद्रों के साथ सीध में होते हैं तब ही प्रकाश प्रतिभाशाली ढंग और दृढ़ता से प्रवाहित हो सकता है। जब ये छेद एक दुसरे के सीध में नहीं होते तो प्रकाश का अनवरत बहना मुश्किल हो जाता है, प्रकाश केवल रिस (seep) ही पाता है, फलस्वरूप व्यक्ति सुस्त और अक्षम हो जाता है।


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== The etheric body ==
== आकाशीय शरीर ==
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(The etheric body)


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आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार के अनुरूप है। यह अग्नि शरीर है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन क्रिया होती है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन (disintegration) की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद  मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति (righteousness) जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहित जो जाती हैं ताकि कोई भी अमूल्य निधियाँ कभी खो न जाएं।
The etheric or memory body corresponds to the side of the north in the [[City Foursquare]] and at the base of the pyramid. It is the fire body and, as such, has the highest vibration of the four lower bodies. The etheric body, or etheric envelope, is the only one of the four lower vehicles that is permanent. It is carried over from one embodiment to the next, whereas the mental, emotional, and physical bodies go through the process of disintegration. (Nevertheless, all virtue and righteousness that man qualifies through these bodies is stored in the causal body so that nothing of value or enduring worth is ever lost.)
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आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें कभी-कभी ''उच्च आकाशीय शरीर'' और ''निम्न आकाशीय शरीर'' भी कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM Presence) की सम्पूर्णता को रिकॉर्ड (record) करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना (divine blueprint) को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। वह जीव-आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को प्यार के हिंडोले (cradles) में झुलाते हैं  जो [[Special:MyLanguage/spoken Word|उच्चारित शब्द]] (spoken Word) की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, यह एक कंप्यूटर की तरह है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों को संग्रह करता है, उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।
Within the etheric body there are two forcefields. These are sometimes called the '''higher etheric body''' and the '''lower etheric body'''. The higher etheric body is designed to record the perfection of the [[I AM Presence]] and to anchor in man the divine blueprint of his Christed individuality. It cradles the soul and the pure energies of God that flow into man’s being released through the power of the [[spoken Word]]. The lower etheric body is the subconscious mind, that computer which stores the data of man's life—all of his experiences, his thoughts, his feelings, his words, and his actions, which are expressed through the mental, emotional, and physical bodies.
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मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर पृथ्वी के लोगों में चैतन्य क्रिया के द्वारा विचार (thought), शब्द (word) और कर्म (deed) की त्रिमूर्ति के पात्र बनते हैं। मानसिक शरीर के पात्र में ईश्वर अपनी बुद्धि डालते हैं; भावनात्मक शरीर का पात्र ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के पात्र के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब  मनुष्य इन तीनों शरीरों की त्रिएकता की समानता और विविधता को सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ उचित प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इसी ज्ञान से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य इन शरीरों को पवित्र आत्मा के मंदिरों में समर्पित करता है और सचेत रूप से पवित्र अवस्था में लौटता है।
The mental, emotional, and physical bodies form the chalice for the trinity of Christ-action—thought, word, and deed—in the world of form. The mental body is the cup into which God pours his wisdom; the emotional body is the cup that holds his love; and the physical body is the cup that dispenses his power through service to all. When these three bodies—a triunity in the diversity of man—are respected as delicate instruments and are kept properly attuned with the faculties of the Christ, they have instant awareness and rapport with the laws of God and of his universe and with all phases of human endeavor. The senses of the soul function through the mental, emotional, and physical bodies when man dedicates these vehicles as temples of the Holy Spirit and consciously returns to the Edenic state.
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== The mental body ==
== मानसिक शरीर ==
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मन मंदिर के पूर्व में स्थित मानसिक शरीर जो [[Special:MyLanguage/Christ|आत्मा]] के द्वार से [[Special:MyLanguage/mind of God|ईश्वर के मस्तिष्क]] का पात्र है जो मनुष्य जीवन के केंद्रों को ब्रह्मांड के केंद्रों द्वारा पूर्ण सामंजस्य (attunement) और अभिव्यक्ति में प्रत्येक परमाणु के श्वेत-अग्नि कोष  के साथ भी प्रदान करता है। मानसिक शरीर में स्थापित पूर्णता के ज्यामितीय सांचे (geometric matrices) के माध्यम से, मनुष्य प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करने, अपने ब्रह्मांड को नियंत्रित करने और महान रसायनशास्त्री बनने में सक्षम हो सकता है।
The mental body, at the east of the city, was designed to be the chalice of the [[mind of God]] through his [[Christ]], providing man with perfect attunement with the very Hub of Life in the center of Cosmos and with the white fire core of every atom in manifestation. Through the geometric matrices of perfection established in the mental body, man is able to command the forces of Nature, to control his universe, and to be the Great Alchemist.
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जब मनुष्य का मानसिक (वायु) शरीर व्यर्थ के सांसारिक ज्ञान से भर जाता है तो यह ईश्वर के शब्दों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसी में सर्पीले (serpent) तर्क (logic) उसके दिमाग को वश में कर लेते हैं और वह दोहरे मापदंड (double standard) में भाग लेने के लिए अपनी चेतना का स्तर कम कर देता है। इसके बाद दैहिक बुद्धि आत्मा का स्थान ले लेती है और मानसिक शरीर पर पूर्णतया अधिकार करके कृत्रिम चेतना का निर्माण कर उसमें शासन करती है।
When the mental (air) body of man becomes filled with the vanities of worldly wisdom, it is no longer resilient, no longer responsive to the delicate chords of the lost Word. ’Tis then that the logic of the serpent captivates his mind, and he lowers the cup of his consciousness to partake of the double standard. In this manner the carnal mind displaces the image of the Christ; usurping the throne of authority in the mental body, it reigns supreme in the synthetic consciousness.
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== The emotional body ==
== भावनात्मक शरीर ==
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मन मंदिर के दक्षिण में स्थित भावनात्मक शरीर भगवान और आत्मा की भावनाओं का प्रतिबिम्ब है - दया, करुणा, विश्वास, आशा, उत्साहपूर्ण प्रेम, हर्षित दृढ़ संकल्प, उग्र उत्साह, और ब्रह्मांडीय कानून, ब्रह्मांडीय विज्ञान और दिव्य कलाओं की सराहना करने की भावनाओं का प्रतिबिम्ब। यह मनुष्य की अपनी भावनाओं, उसकी इच्छाओं और उसकी भावनाओं का भंडार भी है, जो कई बार शांतिपूर्ण होने की अपेक्षा अशांत होती हैं। जब मनुष्य जल तत्व पर प्रवीणता हासिल कर लेता है तो भावनात्मक शरीर [[Special:MyLanguage/real Image|वास्तविक छवि]] का दर्पण बन जाता है और अपनी ऊर्जा को आत्मा की भावना और वास्तविकता के साथ मिलकर अपने सहज संपर्क को प्रतिबिंबित करने के लिए निर्देशित कर सकता है। परन्तु जब भावनात्मक शरीर दुनिया की भयावह और सम्मोहक भावनाओं जैसे मानवीय करुणा और क्रोध में प्रशिक्षित किया जाता है तो वह मानव की [[Special:MyLanguage/synthetic image|कृत्रिम छवि]] ग्रहण कर लेता है।
The emotional body corresponds to the south side of the City Foursquare as the reflector of the feelings of God and his Christ; of mercy and compassion; of faith and hope; of buoyant love, joyous determination, fiery zeal, and the appreciation of cosmic law, cosmic science, and the divine arts. It is also the repository of man’s own feelings, his desires, and his emotions (his energies-in-motion), which in many are more often turbulent than they are peaceful. When man learns the mastery of the water element, the emotional body can be the mirror of the [[Real Image]] and its energies can be directed to reflect the feelings of the soul and its innate contact with Reality; or, when trained upon the lurid and hypnotic emotions of the world—on human pathos, the angry mob, the melodrama of soap opera trivia—it may make of the [[synthetic image]] a caricature of human folly.
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जिस प्रकार समुद्र की लहरें चंद्रमा से प्रभावित होती हैं (जो हमें ज्वार-भाटा के रूप में दिखती हैं), उसी प्रकार मनुष्य के भीतर का जल तत्त्व भी चंद्रमा से प्रभावित होता है, जिसका प्रमाण पूर्णिमा के समय लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली उत्तेजक भावनाओं में है। भावनात्मक शरीर मनुष्य की चेतना के वश में होता है। जब मनुष्य अपने भावनात्मक शरीर को ईश्वर के नियंत्रण में कर लेता है, तो विश्व में अच्छाई, सत्य, शांति और प्रेम की शक्ति का विस्तार करने के लिए ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्तियां उसके नियंत्रण में होती हैं।
As the tides of the sea are affected by the cycles of the moon, so the water body is pulled by lunar influences, evidenced in the extreme emotions people experience during the full moon. But the waters of the emotional body also respond to the command of the individual Christ Self “Peace, be still!” When man brings his emotional body under God-control, he has at his command one of the greatest powers of the universe to implement Good and to expand throughout Cosmos the freedom of Truth, the peace of Life, and the power of Love.
== The physical body ==
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<span id="The_physical_body"></span>
The physical body, corresponding to the side of the west, provides the opportunity for man to express the ''summum bonum'' of his consciousness in Matter. As the higher etheric body contains the blueprint of individuality in higher planes, so on earth man sculpts the pattern of his identity upon the substance of his physical body. Formed “of the dust of the ground,” which no longer sparkles with the radiance of the white fire core, this tabernacle of the soul, this temple of the living God, is not transparent as it used to be, emitting the radiance of the Universal Christ. Instead of being the focal point for the crystallization of the divine plan, man’s physical (earth) body has become the sepulcher of the imperfect thoughts and feelings recorded upon his lower etheric body.
== भौतिक शरीर ==
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पश्चिम दिशा के अनुरूप भौतिक शरीर, मनुष्य को पदार्थ स्तर पर अपनी चेतना की ''सर्वोच्च कुशलता'' को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। जैसे उच्च आकाशीय शरीर में उच्च स्तरों पर व्यक्तित्व का साँचा होता है, वैसे ही पृथ्वी पर मनुष्य अपने भौतिक शरीर के पदार्थ पर अपनी पहचान का साँचा गढ़ता है। "जमीन की धूल से" बना साँचा, जो अब श्वेत अग्नि सत्व की चमक से चमकता नहीं; आत्मा का यह तम्बू (tabernacle), जीवित भगवान का यह मंदिर, पहले की तरह पारदर्शी नहीं, और न ही यह पहले की तरह सार्वभौमिक आत्मा की चमक बिखेरता है। दैवीय योजना के क्रिस्टलीकरण (crystallization) का केंद्र बिंदु होने के बजाय, मनुष्य का भौतिक (पृथ्वीमय) शरीर उसके निम्न आकाशीय शरीर पर लिखित अपूर्ण विचारों और भावनाओं का कब्रगाह (sepulcher) बन गया है।
== Karma and the four lower bodies ==
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<span id="Karma_and_the_four_lower_bodies"></span>
Man’s karma determines the capacities and limitations of his four lower bodies. Thus, in order to outpicture perfection in his physical form, man must take the leaven of the Christ consciousness—“which a woman [the Divine Mother] took and hid in three measures of meal”—and carefully place it in the etheric, mental, and emotional bodies in order that the leaven might leaven “the whole lump.”<ref>Matt. 13:33; Luke 13:21.</ref>
== कर्म और चार निचले शरीर ==
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मनुष्य का कर्म उसके चार निचले शरीरों की क्षमताओं और सीमाओं को निर्धारित करता है। अपने भौतिक रूप में पूर्णता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को आत्मिक चेतना का खमीर (leaven)  ग्रहण करना चाहिए और इसे बहुत ही ध्यान से  आकाशीय, मानसिक और भावनात्मक शरीरों में रखना चाहिए ताकि चारों निचले शरीर पूरी तरह से शुद्ध हो जाएँ।<ref>मैट। १३:३३; ल्यूक १३:२१.</ref>
== See also ==
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<span id="See_also"></span>
[[Bodies of man]]
== इसे भी देखिये ==
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[[Special:MyLanguage/Bodies of man|मनुष्य के शरीर]]
[[Physical body]]
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[[Special:MyLanguage/Physical body|भौतिक शरीर]]
[[Mental body]]
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[[Special:MyLanguage/Mental body|मानसिक शरीर]]
[[Emotional body]]
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[[Special:MyLanguage/Emotional body|भावनात्मक शरीर]]
[[Etheric body]]
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[[Special:MyLanguage/Etheric body|आकाशीय शरीर]]
== Sources ==
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<span id="Sources"></span>
{{CHM}}, chapter 4, 6.
== स्रोत ==
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{{CHM}}, चौथा एवं छठा अध्याय
<references />
<references />

Latest revision as of 20:09, 22 June 2024

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चार निचले शरीर अलग-अलग आवृत्तियों से युक्त चार आवरण हैं जो जीवात्मा को शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आकाशीय स्तर पर घेरे रहते हैं और उसे समय और स्थान की यात्रा करने में सहायता करते हैं। यह वाहन ईश्वर ने मानव को उसके शरीर में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण और जीवात्मा की भौतिक रूप में अभिव्यक्ति के लिए प्रदान किए हैं। अंतरभेदी बलक्षेत्रों के रूप में ये सब शरीर जीवात्मा को आत्मा की ऊर्जा ग्रहण करने में मदद करते हैं।

चार निचले शरीरों की पारस्परिक क्रिया

यद्यपि चार शरीरों के अनुरूप चार स्तरों में से प्रत्येक में एक अद्वितीय परमाणु आवृत्ति होती है जो जीवात्मा और चार शरीरों की अनूठी क्षमता को अभिव्यक्ति करती है। चार निचले शरीर एक दूसरे से आकाशीय चक्रों के माध्यम से जुड़े होते हैं तथा एक दुसरे में आ जा सकते हैं। ये चक्र भौतिक शरीर के साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) व् अंत: स्रावी तंत्र (endocrine system) के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर एक इकाई के रूप में कार्य करता है - विचार, भावनाएं और स्मृतियाँ भौतिक शरीर से गुजरते हुए मानसिक, भावनात्मक और आकाशीय स्तर पर एक साथ स्पंदन पैदा करतीं हैं।

हम इन चार शरीरों को एक के बीच में एक रखे हुए चार ड्रमों (drums) के रूप में मान सकते हैं। आकाशीय शरीर सबसे बड़ा होता है; उसके भीतर मानसिक शरीर, फिर भावनात्मक शरीर और अंत में भौतिक शरीर स्थित होता है। आत्मिक चेतना का प्रकाश मनुष्य के प्रत्येक शरीर पर छिद्रित बिंदु के एक नक़्शे के माध्यम से बहता है। प्रत्येक शरीर में बिंदु का यह नक्शा अलग होता है। (दैवीय रूपरेखा के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में भी बिंदु का यह नक्शा विभिन्न होता है)। बिंदु के नक़्शे के भीतर कुछ आधारभूत स्वरुप इन चार "ड्रमों" की ऊर्जाओं को एक दुसरे से मिलाते हैं, जिस से प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों शरीरों के कार्यों और अपने व्यक्तित्व को एकीकृत करने में सहायता होती है। जब प्रत्येक शरीर के सभी छिद्र दुसरे शरीरों के छिद्रों के साथ सीध में होते हैं तब ही प्रकाश प्रतिभाशाली ढंग और दृढ़ता से प्रवाहित हो सकता है। जब ये छेद एक दुसरे के सीध में नहीं होते तो प्रकाश का अनवरत बहना मुश्किल हो जाता है, प्रकाश केवल रिस (seep) ही पाता है, फलस्वरूप व्यक्ति सुस्त और अक्षम हो जाता है।

आकाशीय शरीर

(The etheric body)

आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह मन मंदिर के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार के अनुरूप है। यह अग्नि शरीर है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन क्रिया होती है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन (disintegration) की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति (righteousness) जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहित जो जाती हैं ताकि कोई भी अमूल्य निधियाँ कभी खो न जाएं।

आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें कभी-कभी उच्च आकाशीय शरीर और निम्न आकाशीय शरीर भी कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को ईश्वरीय स्वरूप (I AM Presence) की सम्पूर्णता को रिकॉर्ड (record) करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना (divine blueprint) को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। वह जीव-आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को प्यार के हिंडोले (cradles) में झुलाते हैं जो उच्चारित शब्द (spoken Word) की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, यह एक कंप्यूटर की तरह है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों को संग्रह करता है, उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।

मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर पृथ्वी के लोगों में चैतन्य क्रिया के द्वारा विचार (thought), शब्द (word) और कर्म (deed) की त्रिमूर्ति के पात्र बनते हैं। मानसिक शरीर के पात्र में ईश्वर अपनी बुद्धि डालते हैं; भावनात्मक शरीर का पात्र ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के पात्र के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब मनुष्य इन तीनों शरीरों की त्रिएकता की समानता और विविधता को सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ उचित प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इसी ज्ञान से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य इन शरीरों को पवित्र आत्मा के मंदिरों में समर्पित करता है और सचेत रूप से पवित्र अवस्था में लौटता है।

मानसिक शरीर

मन मंदिर के पूर्व में स्थित मानसिक शरीर जो आत्मा के द्वार से ईश्वर के मस्तिष्क का पात्र है जो मनुष्य जीवन के केंद्रों को ब्रह्मांड के केंद्रों द्वारा पूर्ण सामंजस्य (attunement) और अभिव्यक्ति में प्रत्येक परमाणु के श्वेत-अग्नि कोष के साथ भी प्रदान करता है। मानसिक शरीर में स्थापित पूर्णता के ज्यामितीय सांचे (geometric matrices) के माध्यम से, मनुष्य प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करने, अपने ब्रह्मांड को नियंत्रित करने और महान रसायनशास्त्री बनने में सक्षम हो सकता है।

जब मनुष्य का मानसिक (वायु) शरीर व्यर्थ के सांसारिक ज्ञान से भर जाता है तो यह ईश्वर के शब्दों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसी में सर्पीले (serpent) तर्क (logic) उसके दिमाग को वश में कर लेते हैं और वह दोहरे मापदंड (double standard) में भाग लेने के लिए अपनी चेतना का स्तर कम कर देता है। इसके बाद दैहिक बुद्धि आत्मा का स्थान ले लेती है और मानसिक शरीर पर पूर्णतया अधिकार करके कृत्रिम चेतना का निर्माण कर उसमें शासन करती है।

भावनात्मक शरीर

मन मंदिर के दक्षिण में स्थित भावनात्मक शरीर भगवान और आत्मा की भावनाओं का प्रतिबिम्ब है - दया, करुणा, विश्वास, आशा, उत्साहपूर्ण प्रेम, हर्षित दृढ़ संकल्प, उग्र उत्साह, और ब्रह्मांडीय कानून, ब्रह्मांडीय विज्ञान और दिव्य कलाओं की सराहना करने की भावनाओं का प्रतिबिम्ब। यह मनुष्य की अपनी भावनाओं, उसकी इच्छाओं और उसकी भावनाओं का भंडार भी है, जो कई बार शांतिपूर्ण होने की अपेक्षा अशांत होती हैं। जब मनुष्य जल तत्व पर प्रवीणता हासिल कर लेता है तो भावनात्मक शरीर वास्तविक छवि का दर्पण बन जाता है और अपनी ऊर्जा को आत्मा की भावना और वास्तविकता के साथ मिलकर अपने सहज संपर्क को प्रतिबिंबित करने के लिए निर्देशित कर सकता है। परन्तु जब भावनात्मक शरीर दुनिया की भयावह और सम्मोहक भावनाओं जैसे मानवीय करुणा और क्रोध में प्रशिक्षित किया जाता है तो वह मानव की कृत्रिम छवि ग्रहण कर लेता है।

जिस प्रकार समुद्र की लहरें चंद्रमा से प्रभावित होती हैं (जो हमें ज्वार-भाटा के रूप में दिखती हैं), उसी प्रकार मनुष्य के भीतर का जल तत्त्व भी चंद्रमा से प्रभावित होता है, जिसका प्रमाण पूर्णिमा के समय लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली उत्तेजक भावनाओं में है। भावनात्मक शरीर मनुष्य की चेतना के वश में होता है। जब मनुष्य अपने भावनात्मक शरीर को ईश्वर के नियंत्रण में कर लेता है, तो विश्व में अच्छाई, सत्य, शांति और प्रेम की शक्ति का विस्तार करने के लिए ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्तियां उसके नियंत्रण में होती हैं।

भौतिक शरीर

पश्चिम दिशा के अनुरूप भौतिक शरीर, मनुष्य को पदार्थ स्तर पर अपनी चेतना की सर्वोच्च कुशलता को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। जैसे उच्च आकाशीय शरीर में उच्च स्तरों पर व्यक्तित्व का साँचा होता है, वैसे ही पृथ्वी पर मनुष्य अपने भौतिक शरीर के पदार्थ पर अपनी पहचान का साँचा गढ़ता है। "जमीन की धूल से" बना साँचा, जो अब श्वेत अग्नि सत्व की चमक से चमकता नहीं; आत्मा का यह तम्बू (tabernacle), जीवित भगवान का यह मंदिर, पहले की तरह पारदर्शी नहीं, और न ही यह पहले की तरह सार्वभौमिक आत्मा की चमक बिखेरता है। दैवीय योजना के क्रिस्टलीकरण (crystallization) का केंद्र बिंदु होने के बजाय, मनुष्य का भौतिक (पृथ्वीमय) शरीर उसके निम्न आकाशीय शरीर पर लिखित अपूर्ण विचारों और भावनाओं का कब्रगाह (sepulcher) बन गया है।

कर्म और चार निचले शरीर

मनुष्य का कर्म उसके चार निचले शरीरों की क्षमताओं और सीमाओं को निर्धारित करता है। अपने भौतिक रूप में पूर्णता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को आत्मिक चेतना का खमीर (leaven) ग्रहण करना चाहिए और इसे बहुत ही ध्यान से आकाशीय, मानसिक और भावनात्मक शरीरों में रखना चाहिए ताकि चारों निचले शरीर पूरी तरह से शुद्ध हो जाएँ।[1]

इसे भी देखिये

मनुष्य के शरीर

भौतिक शरीर

मानसिक शरीर

भावनात्मक शरीर

आकाशीय शरीर

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of the Higher Self, volume 1 of the Climb the Highest Mountain® series, चौथा एवं छठा अध्याय

  1. मैट। १३:३३; ल्यूक १३:२१.