Four lower bodies/hi: Difference between revisions

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'''चार निचले शरीर''' चार अलग-अलग आवृत्तियों से युक्त चार आवरण हैं जो [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] - शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आकाशीय - को घेरते हैं - जो जीवात्मा को समय और स्थान की यात्रा करने में सहायता करते हैं। ये वो वाहन हैं जो ईश्वर ने मानव को उसके शरीर में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण और जीवात्मा की भौतिक रूप में अभिव्यक्ति के लिए प्रदान किए हैं। अंतरभेदी बलक्षेत्रों के रूप में ये शरीर जीवात्मा को आत्मा की ऊर्जा ग्रहण करने में मदद करते हैं।
'''चार निचले शरीर''' अलग-अलग आवृत्तियों से युक्त चार आवरण हैं जो [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] को शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आकाशीय स्तर पर घेरे रहते हैं और उसे समय और स्थान की यात्रा करने में सहायता करते हैं। यह वाहन ईश्वर ने मानव को उसके शरीर में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण और जीवात्मा की भौतिक रूप में अभिव्यक्ति के लिए प्रदान किए हैं। अंतरभेदी बलक्षेत्रों के रूप में ये सब शरीर जीवात्मा को आत्मा की ऊर्जा ग्रहण करने में मदद करते हैं।


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== चार निचले शरीरों की पारस्परिक क्रिया ==
== चार निचले शरीरों की पारस्परिक क्रिया ==


यद्यपि चार शरीरों के अनुरूप चार स्तरों में से प्रत्येक में एक अद्वितीय परमाणु आवृत्ति होती है जो उस शरीर की अनूठी क्षमता की अभिव्यक्ति करती है, चार निचले शरीर एक दूसरे से आकाशीय [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] के माध्यम से जुड़े होते हैं तथा एक दुसरे में आ जा सकते हैं। ये चक्र भौतिक शरीर के साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र () व् अंत: स्रावी तंत्र () के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर एक इकाई के रूप में कार्य करता है - विचार, भावनाएं और स्मृतियाँ भौतिक शरीर से गुजरते हुए मानसिक, भावनात्मक और आकाशीय स्तर पर एक साथ स्पंदन पैदा करतीं हैं।
यद्यपि चार शरीरों के अनुरूप चार स्तरों में से प्रत्येक में एक अद्वितीय परमाणु आवृत्ति होती है जो जीवात्मा और चार शरीरों की अनूठी क्षमता को अभिव्यक्ति करती है। चार निचले शरीर एक दूसरे से आकाशीय [[Special:MyLanguage/chakra|चक्रों]] के माध्यम से जुड़े होते हैं तथा एक दुसरे में आ जा सकते हैं। ये चक्र भौतिक शरीर के साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) व् अंत: स्रावी तंत्र (endocrine system) के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर एक इकाई के रूप में कार्य करता है - विचार, भावनाएं और स्मृतियाँ भौतिक शरीर से गुजरते हुए मानसिक, भावनात्मक और आकाशीय स्तर पर एक साथ स्पंदन पैदा करतीं हैं।


हम इन चार शरीरों को एक-के-बीच-में-एक रखे हुए चार ड्रमों के रूप में मान सकते हैं। आकाशीय शरीर सबसे बड़ा होता है; उसके भीतर मानसिक शरीर, फिर भावनात्मक शरीर और अंत में भौतिक शरीर स्थित होता है। आत्मा की चेतना का प्रकाश मनुष्य के प्रत्येक शरीर पर छिद्रित बिंदु के एक नक़्शे के माध्यम से बहता है। बिंदु का यह नक्शा प्रत्येक शरीर में अलग होता है। (दैवीय रूपरेखा के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में भी बिंदु का यह नक्शा विभिन्न होता है) बिंदु के नक़्शे के भीतर कुछ आधारभूत स्वरुप इन चार "ड्रमों" की ऊर्जाओं को एक दुसरे से मिलाते हैं, जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों शरीरों के कार्यों और अपने व्यक्तित्व को एकीकृत करने में सहायता होती है। जब प्रत्येक शरीर के सभी छिद्र दुसरे शरीरों के छिद्रों के साथ सीध में होते हैं तब ही प्रकाश शानदार ढंग और दृढ़ता से प्रवाहित हो सकता है। जब ये छेद एक दुसरे के सीध में नहीं होते तो प्रकाश का अनवरत बहना मुश्किल हो जाता है, प्रकाश केवल रिस ही पाता है, फलस्वरूप व्यक्ति सुस्त और अक्षम हो जाता है।
हम इन चार शरीरों को एक के बीच में एक रखे हुए चार ड्रमों (drums) के रूप में मान सकते हैं। आकाशीय शरीर सबसे बड़ा होता है; उसके भीतर मानसिक शरीर, फिर भावनात्मक शरीर और अंत में भौतिक शरीर स्थित होता है। [[Special:MyLanguage/Christ consciousness|आत्मिक चेतना]] का प्रकाश मनुष्य के प्रत्येक शरीर पर छिद्रित बिंदु के एक नक़्शे के माध्यम से बहता है। प्रत्येक शरीर में बिंदु का यह नक्शा अलग होता है। (दैवीय रूपरेखा के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में भी बिंदु का यह नक्शा विभिन्न होता है)बिंदु के नक़्शे के भीतर कुछ आधारभूत स्वरुप इन चार "ड्रमों" की ऊर्जाओं को एक दुसरे से मिलाते हैं, जिस से प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों शरीरों के कार्यों और अपने व्यक्तित्व को एकीकृत करने में सहायता होती है। जब प्रत्येक शरीर के सभी छिद्र दुसरे शरीरों के छिद्रों के साथ सीध में होते हैं तब ही प्रकाश प्रतिभाशाली ढंग और दृढ़ता से प्रवाहित हो सकता है। जब ये छेद एक दुसरे के सीध में नहीं होते तो प्रकाश का अनवरत बहना मुश्किल हो जाता है, प्रकाश केवल रिस (seep) ही पाता है, फलस्वरूप व्यक्ति सुस्त और अक्षम हो जाता है।


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== आकाशीय शरीर ==
== आकाशीय शरीर ==
(The etheric body)


आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार से मेल खाता है। यह अग्नि पिण्ड है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन होता है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर - मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद  मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहीत जो जाती है ताकि कोई भी अमूल्य वस्तु कभी गुम हो।
आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह [[Special:MyLanguage/City Foursquare|मन मंदिर]] के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार के अनुरूप है। यह अग्नि शरीर है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन क्रिया होती है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन (disintegration) की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद  मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति (righteousness) जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहित जो जाती हैं ताकि कोई भी अमूल्य निधियाँ कभी खो जाएं।


आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें ''उच्च आकाशीय शरीर'' और ''निम्न आकाशीय शरीर'' कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] की पूर्णता को रिकॉर्ड करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। यह आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को आश्रय देता है जो [[Special:MyLanguage/spoken Word|उच्चरित शब्द]] की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, ये वह कंप्यूटर है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों का संग्रह करता है - उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।
आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें कभी-कभी ''उच्च आकाशीय शरीर'' और ''निम्न आकाशीय शरीर'' भी कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM Presence) की सम्पूर्णता को रिकॉर्ड (record) करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना (divine blueprint) को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। वह जीव-आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को प्यार के हिंडोले (cradles) में झुलाते हैं  जो [[Special:MyLanguage/spoken Word|उच्चारित शब्द]] (spoken Word) की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, यह एक कंप्यूटर की तरह है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों को संग्रह करता है, उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।


मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर दुनिया में चैतन्य-क्रिया --- विचार, शब्द और कर्म --- की त्रिमूर्ति के लिए पात्र बनाते हैं। मानसिक शरीर में ईश्वर अपनी बुद्धि डालता है; भावनात्मक शरीर ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब कोई मनुष्य इन तीनों शरीरों को सामान रूप से सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ सही प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इन्हीं के हिसाब से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य अपने इन शरीरों को पवित्र आत्मा का मंदिर समझता है और सचेत रूप से अपनी पवित्र अवस्था में लौटता है, तो उसकी जीवात्मा की इंद्रियाँ मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीरों के माध्यम से कार्य करती हैं।
मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर पृथ्वी के लोगों में चैतन्य क्रिया के द्वारा विचार (thought), शब्द (word) और कर्म (deed) की त्रिमूर्ति के पात्र बनते हैं। मानसिक शरीर के पात्र में ईश्वर अपनी बुद्धि डालते हैं; भावनात्मक शरीर का पात्र ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के पात्र के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब मनुष्य इन तीनों शरीरों की त्रिएकता की समानता और विविधता को सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ उचित प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इसी ज्ञान से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य इन शरीरों को पवित्र आत्मा के मंदिरों में समर्पित करता है और सचेत रूप से पवित्र अवस्था में लौटता है।


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== मानसिक शरीर ==
== मानसिक शरीर ==


मन मंदिर के पूर्व में स्थित मानसिक शरीर [[Special:MyLanguage/mind of God|ईश्वर के मस्तिष्क]] का पात्र है जिसे [[Special:MyLanguage/Christ|आत्मा]] ने बनाया है। यह मनुष्य और ब्रह्मांड के केंद्र के मध्य पूर्ण सामंजस्य बनाता है।  
मन मंदिर के पूर्व में स्थित मानसिक शरीर जो [[Special:MyLanguage/Christ|आत्मा]] के द्वार से [[Special:MyLanguage/mind of God|ईश्वर के मस्तिष्क]] का पात्र है जो मनुष्य जीवन के केंद्रों को ब्रह्मांड के केंद्रों द्वारा पूर्ण सामंजस्य (attunement) और अभिव्यक्ति में प्रत्येक परमाणु के श्वेत-अग्नि कोष  के साथ भी प्रदान करता है। मानसिक शरीर में स्थापित पूर्णता के ज्यामितीय सांचे (geometric matrices) के माध्यम से, मनुष्य प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करने, अपने ब्रह्मांड को नियंत्रित करने और महान रसायनशास्त्री बनने में सक्षम हो सकता है।  
मानसिक शरीर के ज्यामितीय सांचे के माध्यम से मनुष्य प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करने, अपने ब्रह्मांड को नियंत्रित करने और महान रसायनशास्त्री बनने में सक्षम हो सकता है।  


जब मनुष्य का मानसिक (वायु) शरीर व्यर्थ के सांसारिक ज्ञान से भर जाता है तो यह ईश्वर के शब्दों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसी में सर्पीले तर्क उसके दिमाग को मोहित करते हैं, और और उसकी चेतना का स्तर गिर जाता है। इसके बाद दैहिक बुद्धि आत्मा का स्थान ले लेती है और मानसिक शरीर पर पूर्णतया अधिकार करके कृत्रिम चेतना का निर्माण कर उसमें शासन करती है।
जब मनुष्य का मानसिक (वायु) शरीर व्यर्थ के सांसारिक ज्ञान से भर जाता है तो यह ईश्वर के शब्दों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसी में सर्पीले (serpent) तर्क (logic) उसके दिमाग को वश में कर लेते हैं और वह दोहरे मापदंड (double standard) में भाग लेने के लिए अपनी चेतना का स्तर कम कर देता है। इसके बाद दैहिक बुद्धि आत्मा का स्थान ले लेती है और मानसिक शरीर पर पूर्णतया अधिकार करके कृत्रिम चेतना का निर्माण कर उसमें शासन करती है।


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== भावनात्मक शरीर ==
== भावनात्मक शरीर ==


मन मंदिर के दक्षिण में स्थित भावनात्मक शरीर भगवान और आत्मा की भावनाओं का प्रतिबिम्ब है - दया, करुणा, विश्वास, आशा, उत्साहपूर्ण प्रेम, हर्षित दृढ़ संकल्प, उग्र उत्साह, और ब्रह्मांडीय कानून, ब्रह्मांडीय विज्ञान और दिव्य कलाओं की सराहना करने की भावनाओं का प्रतिबिम्ब। यह मनुष्य की अपनी भावनाओं, उसकी इच्छाओं और उसकी भावनाओं का भंडार भी है, जो कई बार शांतिपूर्ण होने की अपेक्षा अशांत होती हैं। जब मनुष्य जल तत्व पर प्रवीणता हासिल कर लेता है तो भावनात्मक शरीर [[Special:MyLanguage/real Image|वास्तविक छवि]] का दर्पण बन जाता है और इसकी ऊर्जाओं को आत्मा की भावनाओं और वास्तविकता के साथ उसके सहज संपर्क को प्रतिबिंबित करने के लिए निर्देशित कर सकता है। परन्तु जब भावनात्मक शरीर दुनिया की भयावह और सम्मोहक भावनाओं जैसे मानवीय करुणा और क्रोध में प्रशिक्षित किया जाता है तो वह मानव की [[Special:MyLanguage/synthetic image|कृत्रिम छवि]] ग्रहण कर लेता है।
मन मंदिर के दक्षिण में स्थित भावनात्मक शरीर भगवान और आत्मा की भावनाओं का प्रतिबिम्ब है - दया, करुणा, विश्वास, आशा, उत्साहपूर्ण प्रेम, हर्षित दृढ़ संकल्प, उग्र उत्साह, और ब्रह्मांडीय कानून, ब्रह्मांडीय विज्ञान और दिव्य कलाओं की सराहना करने की भावनाओं का प्रतिबिम्ब। यह मनुष्य की अपनी भावनाओं, उसकी इच्छाओं और उसकी भावनाओं का भंडार भी है, जो कई बार शांतिपूर्ण होने की अपेक्षा अशांत होती हैं। जब मनुष्य जल तत्व पर प्रवीणता हासिल कर लेता है तो भावनात्मक शरीर [[Special:MyLanguage/real Image|वास्तविक छवि]] का दर्पण बन जाता है और अपनी ऊर्जा को आत्मा की भावना और वास्तविकता के साथ मिलकर अपने सहज संपर्क को प्रतिबिंबित करने के लिए निर्देशित कर सकता है। परन्तु जब भावनात्मक शरीर दुनिया की भयावह और सम्मोहक भावनाओं जैसे मानवीय करुणा और क्रोध में प्रशिक्षित किया जाता है तो वह मानव की [[Special:MyLanguage/synthetic image|कृत्रिम छवि]] ग्रहण कर लेता है।
 
जिस प्रकार समुद्र की लहरें चंद्रमा से प्रभावित होती हैं (जो हमें ज्वार-भाता के रूप में दिखता है), उसी प्रकार मनुष्य के अंदर का जल तत्त्व भी चंद्रमा से प्रभावित होता है, जिसका प्रमाण है पूर्णिमा के दौरान लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली उत्तेजक भावनाएं। भावनात्मक शरीर इंसान की चेतना के अधीन होता है। जब मनुष्य अपने भावनात्मक शरीर को ईश्वर के नियंत्रण में कर लेता है, तो विश्व में अच्छाई, सत्य, शांति और प्रेम की शक्ति का विस्तार करने के लिए ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्तियां उसके अधीन होती हैं।


जिस प्रकार समुद्र की लहरें चंद्रमा से प्रभावित होती हैं (जो हमें ज्वार-भाटा के रूप में दिखती हैं), उसी प्रकार मनुष्य के भीतर का जल तत्त्व भी चंद्रमा से प्रभावित होता है, जिसका प्रमाण पूर्णिमा के समय लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली उत्तेजक भावनाओं में है। भावनात्मक शरीर मनुष्य की चेतना के वश में होता है। जब मनुष्य अपने भावनात्मक शरीर को ईश्वर के नियंत्रण में कर लेता है, तो विश्व में अच्छाई, सत्य, शांति और प्रेम की शक्ति का विस्तार करने के लिए ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्तियां उसके नियंत्रण में होती हैं।


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== भौतिक शरीर ==
== भौतिक शरीर ==


पश्चिम दिशा के अनुरूप भौतिक शरीर, मनुष्य को पदार्थ में अपनी चेतना की ''सर्वोच्च कुशलता'' को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। जैसे उच्च आकाशीय शरीर में उच्च स्तरों पर व्यक्तित्व का साँचा होता है, वैसे ही पृथ्वी पर मनुष्य अपने भौतिक शरीर के पदार्थ पर अपनी पहचान का साँचा गढ़ता है। "जमीन की धूल से" बना साँचा, जो श्वेत अग्नि सत्व की चमक से चमकता नहीं; आत्मा का यह तम्बू, जीवित भगवान का यह मंदिर, पहले की तरह पारदर्शी नहीं, और न ही यह पहले की तरह सार्वभौमिक आत्मा की चमक बिखेरता है। दैवीय योजना के क्रिस्टलीकरण का केंद्र बिंदु होने के बजाय, मनुष्य का भौतिक (पृथ्वीमय) शरीर उसके निम्न आकाशीय शरीर पर दर्ज अपूर्ण विचारों और भावनाओं का कब्रगाह बन गया है।
पश्चिम दिशा के अनुरूप भौतिक शरीर, मनुष्य को पदार्थ स्तर पर अपनी चेतना की ''सर्वोच्च कुशलता'' को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। जैसे उच्च आकाशीय शरीर में उच्च स्तरों पर व्यक्तित्व का साँचा होता है, वैसे ही पृथ्वी पर मनुष्य अपने भौतिक शरीर के पदार्थ पर अपनी पहचान का साँचा गढ़ता है। "जमीन की धूल से" बना साँचा, जो अब श्वेत अग्नि सत्व की चमक से चमकता नहीं; आत्मा का यह तम्बू (tabernacle), जीवित भगवान का यह मंदिर, पहले की तरह पारदर्शी नहीं, और न ही यह पहले की तरह सार्वभौमिक आत्मा की चमक बिखेरता है। दैवीय योजना के क्रिस्टलीकरण (crystallization) का केंद्र बिंदु होने के बजाय, मनुष्य का भौतिक (पृथ्वीमय) शरीर उसके निम्न आकाशीय शरीर पर लिखित अपूर्ण विचारों और भावनाओं का कब्रगाह (sepulcher) बन गया है।


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== कर्म और चार निचले शरीर ==
== कर्म और चार निचले शरीर ==


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मनुष्य का कर्म उसके चार निचले शरीरों की क्षमताओं और सीमाओं को निर्धारित करता है। अपने भौतिक रूप में पूर्णता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को आत्मिक चेतना का खमीर (leaven)  ग्रहण करना चाहिए और इसे बहुत ही ध्यान से  आकाशीय, मानसिक और भावनात्मक शरीरों में रखना चाहिए ताकि चारों निचले शरीर पूरी तरह से शुद्ध हो जाएँ।<ref>मैट। १३:३३; ल्यूक १३:२१.</ref>
Man’s karma determines the capacities and limitations of his four lower bodies. Thus, in order to outpicture perfection in his physical form, man must take the leaven of the Christ consciousness—“which a woman [the Divine Mother] took and hid in three measures of meal”—and carefully place it in the etheric, mental, and emotional bodies in order that the leaven might leaven “the whole lump.”<ref>Matt. 13:33; Luke 13:21.</ref>
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== See also ==
== इसे भी देखिये ==
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[[Special:MyLanguage/Bodies of man|मनुष्य के शरीर]]
[[Bodies of man]]
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[[Special:MyLanguage/Physical body|भौतिक शरीर]]
[[Physical body]]
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[[Special:MyLanguage/Mental body|मानसिक शरीर]]
[[Mental body]]
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[[Special:MyLanguage/Emotional body|भावनात्मक शरीर]]
[[Emotional body]]
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[[Special:MyLanguage/Etheric body|आकाशीय शरीर]]
[[Etheric body]]
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<span id="Sources"></span>
== Sources ==
== स्रोत ==
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<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{CHM}}, चौथा एवं छठा अध्याय
{{CHM}}, chapter 4, 6.
</div>
<references />
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Latest revision as of 20:09, 22 June 2024

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चार निचले शरीर अलग-अलग आवृत्तियों से युक्त चार आवरण हैं जो जीवात्मा को शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आकाशीय स्तर पर घेरे रहते हैं और उसे समय और स्थान की यात्रा करने में सहायता करते हैं। यह वाहन ईश्वर ने मानव को उसके शरीर में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण और जीवात्मा की भौतिक रूप में अभिव्यक्ति के लिए प्रदान किए हैं। अंतरभेदी बलक्षेत्रों के रूप में ये सब शरीर जीवात्मा को आत्मा की ऊर्जा ग्रहण करने में मदद करते हैं।

चार निचले शरीरों की पारस्परिक क्रिया

यद्यपि चार शरीरों के अनुरूप चार स्तरों में से प्रत्येक में एक अद्वितीय परमाणु आवृत्ति होती है जो जीवात्मा और चार शरीरों की अनूठी क्षमता को अभिव्यक्ति करती है। चार निचले शरीर एक दूसरे से आकाशीय चक्रों के माध्यम से जुड़े होते हैं तथा एक दुसरे में आ जा सकते हैं। ये चक्र भौतिक शरीर के साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) व् अंत: स्रावी तंत्र (endocrine system) के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर एक इकाई के रूप में कार्य करता है - विचार, भावनाएं और स्मृतियाँ भौतिक शरीर से गुजरते हुए मानसिक, भावनात्मक और आकाशीय स्तर पर एक साथ स्पंदन पैदा करतीं हैं।

हम इन चार शरीरों को एक के बीच में एक रखे हुए चार ड्रमों (drums) के रूप में मान सकते हैं। आकाशीय शरीर सबसे बड़ा होता है; उसके भीतर मानसिक शरीर, फिर भावनात्मक शरीर और अंत में भौतिक शरीर स्थित होता है। आत्मिक चेतना का प्रकाश मनुष्य के प्रत्येक शरीर पर छिद्रित बिंदु के एक नक़्शे के माध्यम से बहता है। प्रत्येक शरीर में बिंदु का यह नक्शा अलग होता है। (दैवीय रूपरेखा के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में भी बिंदु का यह नक्शा विभिन्न होता है)। बिंदु के नक़्शे के भीतर कुछ आधारभूत स्वरुप इन चार "ड्रमों" की ऊर्जाओं को एक दुसरे से मिलाते हैं, जिस से प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों शरीरों के कार्यों और अपने व्यक्तित्व को एकीकृत करने में सहायता होती है। जब प्रत्येक शरीर के सभी छिद्र दुसरे शरीरों के छिद्रों के साथ सीध में होते हैं तब ही प्रकाश प्रतिभाशाली ढंग और दृढ़ता से प्रवाहित हो सकता है। जब ये छेद एक दुसरे के सीध में नहीं होते तो प्रकाश का अनवरत बहना मुश्किल हो जाता है, प्रकाश केवल रिस (seep) ही पाता है, फलस्वरूप व्यक्ति सुस्त और अक्षम हो जाता है।

आकाशीय शरीर

(The etheric body)

आकाशीय शरीर को स्मृति शरीर भी कहते हैं। यह मन मंदिर के उत्तरी भाग की ओर तथा पिरामिड के आधार के अनुरूप है। यह अग्नि शरीर है और इसमें अन्य तीन शरीरों के अपेक्षा सबसे अधिक स्पंदन क्रिया होती है। केवल यही एक ऐसा शरीर है जो स्थायी है, और पृथ्वी पर प्रत्येक जन्म में जीवात्मा के साथ रहता है। अन्य तीनो शरीर मानसिक, भावनात्मक और भौतिक विघटन (disintegration) की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इसके बावजूद मनुष्य द्वारा एक जन्म में अर्जित किये गए गुण और सुकृति (righteousness) जो मनुष्य इन शरीरों के माध्यम से अर्जित करता है, वह कारण शरीर में संग्रहित जो जाती हैं ताकि कोई भी अमूल्य निधियाँ कभी खो न जाएं।

आकाशीय शरीर के भीतर दो बल क्षेत्र होते हैं। इन्हें कभी-कभी उच्च आकाशीय शरीर और निम्न आकाशीय शरीर भी कहते है। उच्च आकाशीय शरीर को ईश्वरीय स्वरूप (I AM Presence) की सम्पूर्णता को रिकॉर्ड (record) करने और मनुष्य में उसके चैतन्य व्यक्तित्व की दिव्य सरंचना (divine blueprint) को स्थापित करने के लिए बनाया गया है। वह जीव-आत्मा और ईश्वर की शुद्ध ऊर्जाओं को प्यार के हिंडोले (cradles) में झुलाते हैं जो उच्चारित शब्द (spoken Word) की शक्ति के माध्यम से मनुष्य में प्रवाहित होती हैं। निचला आकाशीय शरीर अवचेतन मन है, यह एक कंप्यूटर की तरह है जो मनुष्य के जीवन के आंकड़ों को संग्रह करता है, उसके सभी अनुभव, विचार, भावनाएँ, शब्द और कार्य, जो मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त होते हैं।

मानसिक, भावनात्मक और भौतिक शरीर पृथ्वी के लोगों में चैतन्य क्रिया के द्वारा विचार (thought), शब्द (word) और कर्म (deed) की त्रिमूर्ति के पात्र बनते हैं। मानसिक शरीर के पात्र में ईश्वर अपनी बुद्धि डालते हैं; भावनात्मक शरीर का पात्र ईश्वर के प्रेम को धारण करता है; और भौतिक शरीर के पात्र के द्वारा मनुष्य दूसरों की सेवा करता है। जब मनुष्य इन तीनों शरीरों की त्रिएकता की समानता और विविधता को सम्मान देता है और इन्हें आत्मा के साथ उचित प्रकार से सलंग्न रखता है तो उसे ईश्वर और ब्रह्मांड के नियमों के बारे में ज्ञान मिलता है और वह इसी ज्ञान से अपने मानवीय कार्य करता है। जब मनुष्य इन शरीरों को पवित्र आत्मा के मंदिरों में समर्पित करता है और सचेत रूप से पवित्र अवस्था में लौटता है।

मानसिक शरीर

मन मंदिर के पूर्व में स्थित मानसिक शरीर जो आत्मा के द्वार से ईश्वर के मस्तिष्क का पात्र है जो मनुष्य जीवन के केंद्रों को ब्रह्मांड के केंद्रों द्वारा पूर्ण सामंजस्य (attunement) और अभिव्यक्ति में प्रत्येक परमाणु के श्वेत-अग्नि कोष के साथ भी प्रदान करता है। मानसिक शरीर में स्थापित पूर्णता के ज्यामितीय सांचे (geometric matrices) के माध्यम से, मनुष्य प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करने, अपने ब्रह्मांड को नियंत्रित करने और महान रसायनशास्त्री बनने में सक्षम हो सकता है।

जब मनुष्य का मानसिक (वायु) शरीर व्यर्थ के सांसारिक ज्ञान से भर जाता है तो यह ईश्वर के शब्दों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसी में सर्पीले (serpent) तर्क (logic) उसके दिमाग को वश में कर लेते हैं और वह दोहरे मापदंड (double standard) में भाग लेने के लिए अपनी चेतना का स्तर कम कर देता है। इसके बाद दैहिक बुद्धि आत्मा का स्थान ले लेती है और मानसिक शरीर पर पूर्णतया अधिकार करके कृत्रिम चेतना का निर्माण कर उसमें शासन करती है।

भावनात्मक शरीर

मन मंदिर के दक्षिण में स्थित भावनात्मक शरीर भगवान और आत्मा की भावनाओं का प्रतिबिम्ब है - दया, करुणा, विश्वास, आशा, उत्साहपूर्ण प्रेम, हर्षित दृढ़ संकल्प, उग्र उत्साह, और ब्रह्मांडीय कानून, ब्रह्मांडीय विज्ञान और दिव्य कलाओं की सराहना करने की भावनाओं का प्रतिबिम्ब। यह मनुष्य की अपनी भावनाओं, उसकी इच्छाओं और उसकी भावनाओं का भंडार भी है, जो कई बार शांतिपूर्ण होने की अपेक्षा अशांत होती हैं। जब मनुष्य जल तत्व पर प्रवीणता हासिल कर लेता है तो भावनात्मक शरीर वास्तविक छवि का दर्पण बन जाता है और अपनी ऊर्जा को आत्मा की भावना और वास्तविकता के साथ मिलकर अपने सहज संपर्क को प्रतिबिंबित करने के लिए निर्देशित कर सकता है। परन्तु जब भावनात्मक शरीर दुनिया की भयावह और सम्मोहक भावनाओं जैसे मानवीय करुणा और क्रोध में प्रशिक्षित किया जाता है तो वह मानव की कृत्रिम छवि ग्रहण कर लेता है।

जिस प्रकार समुद्र की लहरें चंद्रमा से प्रभावित होती हैं (जो हमें ज्वार-भाटा के रूप में दिखती हैं), उसी प्रकार मनुष्य के भीतर का जल तत्त्व भी चंद्रमा से प्रभावित होता है, जिसका प्रमाण पूर्णिमा के समय लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली उत्तेजक भावनाओं में है। भावनात्मक शरीर मनुष्य की चेतना के वश में होता है। जब मनुष्य अपने भावनात्मक शरीर को ईश्वर के नियंत्रण में कर लेता है, तो विश्व में अच्छाई, सत्य, शांति और प्रेम की शक्ति का विस्तार करने के लिए ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्तियां उसके नियंत्रण में होती हैं।

भौतिक शरीर

पश्चिम दिशा के अनुरूप भौतिक शरीर, मनुष्य को पदार्थ स्तर पर अपनी चेतना की सर्वोच्च कुशलता को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। जैसे उच्च आकाशीय शरीर में उच्च स्तरों पर व्यक्तित्व का साँचा होता है, वैसे ही पृथ्वी पर मनुष्य अपने भौतिक शरीर के पदार्थ पर अपनी पहचान का साँचा गढ़ता है। "जमीन की धूल से" बना साँचा, जो अब श्वेत अग्नि सत्व की चमक से चमकता नहीं; आत्मा का यह तम्बू (tabernacle), जीवित भगवान का यह मंदिर, पहले की तरह पारदर्शी नहीं, और न ही यह पहले की तरह सार्वभौमिक आत्मा की चमक बिखेरता है। दैवीय योजना के क्रिस्टलीकरण (crystallization) का केंद्र बिंदु होने के बजाय, मनुष्य का भौतिक (पृथ्वीमय) शरीर उसके निम्न आकाशीय शरीर पर लिखित अपूर्ण विचारों और भावनाओं का कब्रगाह (sepulcher) बन गया है।

कर्म और चार निचले शरीर

मनुष्य का कर्म उसके चार निचले शरीरों की क्षमताओं और सीमाओं को निर्धारित करता है। अपने भौतिक रूप में पूर्णता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को आत्मिक चेतना का खमीर (leaven) ग्रहण करना चाहिए और इसे बहुत ही ध्यान से आकाशीय, मानसिक और भावनात्मक शरीरों में रखना चाहिए ताकि चारों निचले शरीर पूरी तरह से शुद्ध हो जाएँ।[1]

इसे भी देखिये

मनुष्य के शरीर

भौतिक शरीर

मानसिक शरीर

भावनात्मक शरीर

आकाशीय शरीर

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of the Higher Self, volume 1 of the Climb the Highest Mountain® series, चौथा एवं छठा अध्याय

  1. मैट। १३:३३; ल्यूक १३:२१.