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लोगों की ऐसी हालत से देखकर, उनका उद्धार करने के उद्देश्य से,आफरा ने मनुष्यों को बचाने के लिए उनके बीच अवतार लिया। सबसे पहले उन्होंने मनुष्यों के सबसे कमज़ोर पक्ष पता लगाया - भाईचारे की भावना में कमी आना उनका एक कमजोर पक्ष था। बाईबल की कहानी अनुसार लोग एबल (Abel) के बजाय [[Special:MyLanguage/Cain|केन]] (Cain) के अनुयायी बन गए थे। जब भगवान ने लोगों से पूछा कि क्या वे अपने दोस्तों और अपने समाज के लिए अपने जीवन का त्याग कर सकते हैं, तो उनका उत्तर वही था जो केन का था: "क्या में अपने भाई का रखवाला हूँ? ”<ref>Gen. 4:9.</ref> जो भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से देता है अपने अहम् का शिकार है। ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने भाई का रखवाला नहीं हो सकता, ऐसे व्यक्ति के अंदर दिव्य ज्योति बुझ जाती है। | लोगों की ऐसी हालत से देखकर, उनका उद्धार करने के उद्देश्य से,आफरा ने मनुष्यों को बचाने के लिए उनके बीच अवतार लिया। सबसे पहले उन्होंने मनुष्यों के सबसे कमज़ोर पक्ष पता लगाया - भाईचारे की भावना में कमी आना उनका एक कमजोर पक्ष था। बाईबल की कहानी अनुसार लोग एबल (Abel) के बजाय [[Special:MyLanguage/Cain|केन]] (Cain) के अनुयायी बन गए थे। जब भगवान ने लोगों से पूछा कि क्या वे अपने दोस्तों और अपने समाज के लिए अपने जीवन का त्याग कर सकते हैं, तो उनका उत्तर वही था जो केन का था: "क्या में अपने भाई का रखवाला हूँ? ”<ref>Gen. 4:9.</ref> जो भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से देता है अपने अहम् का शिकार है। ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने भाई का रखवाला नहीं हो सकता, ऐसे व्यक्ति के अंदर दिव्य ज्योति बुझ जाती है। | ||
आफरा जानते थे कि अधिकाँश लोगों ने अपने अंदर की [[Special:MyLanguage/threefold flame|दिव्य ज्योति]] (Threefold Flame) को खो दिया है। उसी | आफरा जानते थे कि अधिकाँश लोगों ने अपने अंदर की [[Special:MyLanguage/threefold flame|दिव्य ज्योति]] (Threefold Flame) को खो दिया है। उसी तरह आज भी श्याम और श्वेत वर्गों के बहुत सारे लोग क्रोध करने की वजह से अपनी इस दिव्य ज्योति को खो रहे हैं। आफरा जानते थे की इस दिव्य ज्योति को वापिस पाने के लिए मनुष्यों को भाईचारे के रास्ते पर चलना होगा, उन्हें एक दूसरे का ख्याल रखना होगा और देखभाल करनी होगी। ये बात स्वयं सबका भाई बनकर ही सिखाई जा सकती है। इस बात के लिए उन्हें उनके अपने लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया। आफरा उन लोगों के बीच ईसा मसीह के तरह थे, पर वो लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। लोग सत्ता के लालच में अंधे हो गए थे। | ||
<span id="His_service_today"></span> | <span id="His_service_today"></span> | ||
== उनकी आज की सेवा == | == उनकी आज की सेवा == | ||
१९७६ में | १९७६ में दिव्य गुरु आफरा ने अक्रा (Accra), घाना (Ghana) में “The Powers and Perils of Nationhood” पर एक दिव्य आदेश दिया था जिसमे उन्होंने एकता की शक्ति पर ज़ोर दिया और कहा की हमें अपने सभी आपसी मतभेद समाप्त कर देने चाहिए, इसी में सबकी भलाई है। उन्होंने कहा था: | ||
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हम सभी आपस में भाई हैं क्योंकि हम सब एक ही माता पिता (ईश्वर) की संतान हैं। मैं आपका भाई हूँ, आपका स्वामी या मालिक नहीं। मैं भी आपके रास्ते पर | हम सभी आपस में भाई-भाई हैं क्योंकि हम सब एक ही माता पिता (ईश्वर) की संतान हैं। मैं आपका भाई हूँ, आपका स्वामी या मालिक नहीं। मैं भी आप ही की तरह आपके साथ इसी रास्ते पर चल रहा हूँ। आपकी तरह मैं भी मोक्ष पाने की इच्छा रखता हूँ। जब भी आप किसी मुसीबत में होते हैं, मैं आपके साथ होता हूँ। जब आपने ईश्वर से न्याय के लिए प्रार्थना की तब ईश्वर ने आपको अपने राष्ट्र और महाद्वीप के लिए दिव्य योजना दी। | ||
सैंकड़ों सालों से मैं आपके दिल में हूँ, मैं तब भी आपके साथ था जब आप बाहरी और अंदरूनी ताकतों द्वारा उत्पीड़ित हो रहे थे। | सैंकड़ों सालों से मैं आपके दिल में हूँ, मैं तब भी आपके साथ था जब आप बाहरी और अंदरूनी ताकतों द्वारा उत्पीड़ित हो रहे थे। | ||
आफरा के लोगों के पास इतिहास और अन्य सभ्यताओं से सीखने का एक बहुमूल्य मौका है। जब समाज अत्यधिक भौतिकवादी हो जाता है, मनुष्यों के पास केवल दो रास्तें बचते हैं: या तो वे भौतिकीकरण में लुप्त होकर खत्म हो जाएँ या फिर आध्यात्मिक रास्ता अपनाएँ और अपनी जीव-आत्मा को जगाएं।<ref>{{ABL}}, pp. 25–26.</ref> | |||
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एक | एक दिव्य आदेश में [[Special:MyLanguage/Saint Germain|संत जरमेन]] ने आफरा को अमरीका में रहने वाले आफरा के वंशजों को निम्लिखित सन्देश देने के लिए कहा: | ||
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अमरीका में रहने वाले सभी श्याम | अमरीका में रहने वाले सभी श्याम वर्ग के लोग अपनी मौजूदा स्तिथि से ऊपर उठ सकते हैं, मुक्ति और स्वत्व से जी सकते हैं। मगर यह तभी हो सकता हैं जब वे ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलें, स्वयं को ईश्वर के हवाले कर दें, समाज में सब के प्रति प्रेम और सहनशीलता का भाव रखें और साथ ही ईश्वर से प्रार्थना भी करें कि आपके अंदर और बाहर की सारी नकारात्मकता एवं अंधकार रोशनी में परिवर्तित हो जाए। | ||
हालांकि नागरिक | हालांकि नागरिक अधिकार आंदोलन के माध्यम से सफलताएं मिली लेकिन असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। सफलता मिलने के कई कारण बाहरी थे। लोगों को उन से प्रेरणा लेनी चाहिए थी तथा मनन करना चाहिए था की किस तरह वे सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ सकते है। हमें सभी मनुष्यों को एक सामान समझना चाहिए, त्वचा के रंग के आधार पर भेद भाव करना उचित नहीं। हम आपको आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने का तरीका बता सकते हैं। | ||
हालाँकि श्याम वर्ग के अमेरिकन यह नहीं जानते कि वे आज एक दोराहे पर खड़े है। अब उनको ये तय करना है की उनका आगे का रास्ता क्या होगा - क्या वे सिर्फ भौतिक जीवन जीना चाहते हैं, अधिक पैसा कमाना चाहते हैं, दुनिया भर के सुख पाना चाहते हैं या फिर शांति और सुकून का जीवन जीना चाहते हैं। यह स्वाभाविक है कि आप खुशहाल और प्रचुरता का जीवन जीना चाहते हैं। और यह सही भी है। मुश्किल तब होती है जब आप भौतिक जीवन जीने में इतने मगन हो जाते हैं कि भूल जाते हैं आप एक आध्यात्मिक जीव हैं। मैं आप से कहना चाहता हूँ कि ईश्वर ने आप लोगों को चुना है क्योंकि आप आध्यात्मिकता स्तर पर समृद्ध हैं। <ref>Ibid., pp. 29–30.</ref> | |||
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रंगभेद की समस्याओं को सुलझाने के लिए, और भाईचारे की भावना को समझने के लिए आप | रंगभेद की समस्याओं को सुलझाने के लिए, और भाईचारे की भावना को समझने के लिए आप आफरा का आह्वाहन कर सकते हैं। | ||
दिव्य गुरु आफरा अन्य दिव्य गुरुओं की तरह अत्यंत विनम्र है। आफरा की विनम्रता की बात करते हुए, दिव्य गुरु [[Special:MyLanguage/Kuthumi|कुथुमी]] ने कहा: | |||
<blockquote>बहुत समय तक हम इस अद्भुत भक्ति वाली विशाल आत्मा से अनजान रहे। जब तक लोग अपनी खुद की उपलब्धियों में डूबे रहेंगे, | <blockquote>बहुत समय तक हम इस अद्भुत भक्ति वाली विशाल आत्मा के भाईचारे से अनजान रहे। जब तक लोग अपनी खुद की उपलब्धियों में डूबे रहेंगे, तब तक वह हम तक पहुंचने में असमर्थ रहेंगे। <ref>Ibid., p. 35.</ref></blockquote> | ||
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Latest revision as of 13:34, 20 October 2023
श्याम वर्ग के लोगों में से सर्व प्रथम जिस महापुरुष ने मोक्ष प्राप्त किया था, उनका नाम आफरा था। सदियों पहले आफरा ने ईश्वर से कहा था की वे अपना नाम और प्रसिद्धि ईश्वर को समर्पित कर किसी एक महाद्वीप और वहां रहने वाले लोगों का संरक्षण करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा था की वे सिर्फ भाई के नाम से जाने जाना चाहते हैं। इसके बाद ही उनका नाम आफरा पड़ा। लैटिन में फ्रेटर का अर्थ भाई होता है। अफ्रीका महाद्वीप का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा है, और ये इस महाद्वीप के संरक्षक भी हैं।
अफ्रीका का प्राचीन इतिहास
प्राचीन समय में जब अफ्रीका लेमूरिआ (Lemuria) नामक महाद्वीप का हिस्सा था तब वहां पर सतयुग था। उस समय लोग ग्रेट डिवाइन डायरेक्टर (Great Divine Director) के महान कारण शरीर (Causal Body) के प्रकाश से उत्पन्न हुए थे। ग्रेट डिवाइन डायरेक्टर आज भी अफ्रीका महाद्वीप की दिव्य योजना के संरक्षक हैं यंहा तक कि वह अमेरिका में आफरा के वंशजो की दिव्य योजना का भी संरक्षक करते हैं।
श्याम वर्ग के बहुत सारे लोगों ने मोक्ष प्राप्त किया है, पर अगर हम आध्यात्मिक द्रष्टिकोण से देखें तो पाएंगे की वर्गों में कोई भेद नहीं होता - चाहे श्वेत हो या श्याम। स्वर्ग लोक में जो गुरु हैं वे इस बात से नहीं जाने जाते की पृथ्वी लोक पर उनका क्या वर्ग या धर्म था। पृथ्वी लोक पर सभी वर्गों के प्राणी ईश्वर की ही उत्पत्ति हैं और प्रत्येक प्राणी सात किरणों में से किसी एक किरण के मार्ग पर चलता है। सातों किरणें दीक्षा के मार्ग की तरफ ही जाती हैं।
श्वेत वर्ग के लोग तीन रंगों की ज्योति पर निपुणता प्राप्त करने पृथ्वी पर आते हैं, पीला रंग जो समझदारी, गुलाबी रंग जो प्रेम और सफ़ेद रंग जो निर्मलता को दर्शाते हैं। इसी वजह से इनकी त्वचा का रंग इन तीनो रंगो का मिश्रण होता है। इन लोगों का उदेश्य इन गुणों द्वारा आत्म-निपुणता हासिल करना है। पीली वर्ग के लोग - चीन के निवासी - ज्ञान लोगों में बांटते हैं, जिनकी त्वचा लाल रंग की होती है उनका उद्देश्य ईश्वरीय प्रेम की गुलाबी लौ को बढ़ाना है।
श्याम वर्ग के लोग नीले रंग और वायलेट रंग की किरणों को दर्शाते हैं। अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताओं में लोगों की त्वचा के रंग में नीला और वायलेट रंग झलकता था। ये रंग परमात्मा के पिता और माता स्वरुप अल्फा और ओमेगा (Alpha and Omega) से आते है। नीला रंग प्रथम किरण का होता है तथा वायलेट सातवीं किरण का।
जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को एक विशेष किरण पर कार्य करना होता है, उसी प्रकार अलग-अलग राष्ट्रों की भी अपनी एक विशेष किरण होती है। प्रत्येक राष्ट्र को ईश्वर द्वारा निश्चित नियति को पूरा करने के लिए विशिष्ट गुण दिए गए हैं। ईश्वरीय शक्ति, इच्छा और विश्वास जो नीली किरण के गुण हैं और ईश्वरीय एकता, न्याय और करुणा जो वायलेट किरण के गुण हैं, इन दोनों किरणों पर निपुणता हासिल करने के लिए श्याम वर्ग के लोगों को ईश्वर ने पृथ्वी लोक पर भेजा है।
युगों-युगों तक मनुष्य उच्च आध्यात्मिक अवस्था में गार्डन ऑफ़ ईडन, में ईश्वर के साथ जुड़ा हुआ था। गार्डन ऑफ़ ईडन से बाहर निकलने के बाद जैसे, जैसे समय बदलता गया, मनुष्य धीरे, धीरे अपने ईश्वरीय गुण खोता चला गया और इसके साथ ही उसके त्वचा के रंग में भी बदलाव आना शुरू हो गय। इंद्रधनुष की किरणों के शुद्ध रंग अब न ही मनुष्य की त्वचा में दिखते हैं, न ही उसके आभामंडल में। नकारात्मक शक्तियों ने मनुष्यों को आपस में लड़ना सीखा दिया है। विभिन्न वर्गों के लोग अक्सर आपस में झगड़ते रहते हैं, एक दुसरे पर हुक्म चलाने की कोशिश में रहते हैं, एक दुसरे को अपना गुलाम बनाने का प्रयतन करते रहते हैं। जिसके फलस्वरूप मनुष्यों की आपसी एकता टूट गयी है और उनके बीच बहने वाली प्रेम की धारा भी बाधित हो गई है।
आफरा के अफ़्रीकी अवतार
आफरा पांच लाख साल पहले अफ्रीका में रहते थे - ये वह समय था जब अफ़्रीकी सभ्यता एक दोराहे पर पहुंच गई थी, और नकारात्मक शक्तियों ने लोगों को विभाजित कर दिया था। बुरी आत्माओं ने नीले और वायलेट वर्ग के मनुष्यों को नष्ट करना शुरू कर दिया था। इन लोगों ने सभी पवित्र कलाओं और संस्कारों का रूप बिगाड़ दिया था और बड़ी संख्या में लोग जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और काले जादू पर निर्भर हो गए थे। फलस्वरूप लोग एक दुसरे से घृणा करने लगे, अंधविश्वास ने उनके मन में घर कर लिया और चारों तरफ सत्ता पाने के लिए होड़ मच गई।
जैसे जैसे लोगों ने अपने अंदर के ईश्वर (God Presence) पर से अपना ध्यान हटाना शुरू किया, वे और अधिक मात्रा में बुरी शक्तियों के प्रभाव में आ गए। विभिन्न जनजातियों के लोग लड़-झगड़ कर एक दूसरे से अलग हो गए। नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से मनुष्य अपनी आध्यात्मिक शक्ति भी खोने लगा तथा उसका मन अंधेरों में घिर गया। इस तरह सभी मनुष्य बुरी ताकतों के गुलाम बनकर रह गए।
लोगों की ऐसी हालत से देखकर, उनका उद्धार करने के उद्देश्य से,आफरा ने मनुष्यों को बचाने के लिए उनके बीच अवतार लिया। सबसे पहले उन्होंने मनुष्यों के सबसे कमज़ोर पक्ष पता लगाया - भाईचारे की भावना में कमी आना उनका एक कमजोर पक्ष था। बाईबल की कहानी अनुसार लोग एबल (Abel) के बजाय केन (Cain) के अनुयायी बन गए थे। जब भगवान ने लोगों से पूछा कि क्या वे अपने दोस्तों और अपने समाज के लिए अपने जीवन का त्याग कर सकते हैं, तो उनका उत्तर वही था जो केन का था: "क्या में अपने भाई का रखवाला हूँ? ”[1] जो भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से देता है अपने अहम् का शिकार है। ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने भाई का रखवाला नहीं हो सकता, ऐसे व्यक्ति के अंदर दिव्य ज्योति बुझ जाती है।
आफरा जानते थे कि अधिकाँश लोगों ने अपने अंदर की दिव्य ज्योति (Threefold Flame) को खो दिया है। उसी तरह आज भी श्याम और श्वेत वर्गों के बहुत सारे लोग क्रोध करने की वजह से अपनी इस दिव्य ज्योति को खो रहे हैं। आफरा जानते थे की इस दिव्य ज्योति को वापिस पाने के लिए मनुष्यों को भाईचारे के रास्ते पर चलना होगा, उन्हें एक दूसरे का ख्याल रखना होगा और देखभाल करनी होगी। ये बात स्वयं सबका भाई बनकर ही सिखाई जा सकती है। इस बात के लिए उन्हें उनके अपने लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया। आफरा उन लोगों के बीच ईसा मसीह के तरह थे, पर वो लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। लोग सत्ता के लालच में अंधे हो गए थे।
उनकी आज की सेवा
१९७६ में दिव्य गुरु आफरा ने अक्रा (Accra), घाना (Ghana) में “The Powers and Perils of Nationhood” पर एक दिव्य आदेश दिया था जिसमे उन्होंने एकता की शक्ति पर ज़ोर दिया और कहा की हमें अपने सभी आपसी मतभेद समाप्त कर देने चाहिए, इसी में सबकी भलाई है। उन्होंने कहा था:
हम सभी आपस में भाई-भाई हैं क्योंकि हम सब एक ही माता पिता (ईश्वर) की संतान हैं। मैं आपका भाई हूँ, आपका स्वामी या मालिक नहीं। मैं भी आप ही की तरह आपके साथ इसी रास्ते पर चल रहा हूँ। आपकी तरह मैं भी मोक्ष पाने की इच्छा रखता हूँ। जब भी आप किसी मुसीबत में होते हैं, मैं आपके साथ होता हूँ। जब आपने ईश्वर से न्याय के लिए प्रार्थना की तब ईश्वर ने आपको अपने राष्ट्र और महाद्वीप के लिए दिव्य योजना दी।
सैंकड़ों सालों से मैं आपके दिल में हूँ, मैं तब भी आपके साथ था जब आप बाहरी और अंदरूनी ताकतों द्वारा उत्पीड़ित हो रहे थे।
आफरा के लोगों के पास इतिहास और अन्य सभ्यताओं से सीखने का एक बहुमूल्य मौका है। जब समाज अत्यधिक भौतिकवादी हो जाता है, मनुष्यों के पास केवल दो रास्तें बचते हैं: या तो वे भौतिकीकरण में लुप्त होकर खत्म हो जाएँ या फिर आध्यात्मिक रास्ता अपनाएँ और अपनी जीव-आत्मा को जगाएं।[2]
एक दिव्य आदेश में संत जरमेन ने आफरा को अमरीका में रहने वाले आफरा के वंशजों को निम्लिखित सन्देश देने के लिए कहा:
अमरीका में रहने वाले सभी श्याम वर्ग के लोग अपनी मौजूदा स्तिथि से ऊपर उठ सकते हैं, मुक्ति और स्वत्व से जी सकते हैं। मगर यह तभी हो सकता हैं जब वे ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलें, स्वयं को ईश्वर के हवाले कर दें, समाज में सब के प्रति प्रेम और सहनशीलता का भाव रखें और साथ ही ईश्वर से प्रार्थना भी करें कि आपके अंदर और बाहर की सारी नकारात्मकता एवं अंधकार रोशनी में परिवर्तित हो जाए।
हालांकि नागरिक अधिकार आंदोलन के माध्यम से सफलताएं मिली लेकिन असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। सफलता मिलने के कई कारण बाहरी थे। लोगों को उन से प्रेरणा लेनी चाहिए थी तथा मनन करना चाहिए था की किस तरह वे सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ सकते है। हमें सभी मनुष्यों को एक सामान समझना चाहिए, त्वचा के रंग के आधार पर भेद भाव करना उचित नहीं। हम आपको आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने का तरीका बता सकते हैं।
हालाँकि श्याम वर्ग के अमेरिकन यह नहीं जानते कि वे आज एक दोराहे पर खड़े है। अब उनको ये तय करना है की उनका आगे का रास्ता क्या होगा - क्या वे सिर्फ भौतिक जीवन जीना चाहते हैं, अधिक पैसा कमाना चाहते हैं, दुनिया भर के सुख पाना चाहते हैं या फिर शांति और सुकून का जीवन जीना चाहते हैं। यह स्वाभाविक है कि आप खुशहाल और प्रचुरता का जीवन जीना चाहते हैं। और यह सही भी है। मुश्किल तब होती है जब आप भौतिक जीवन जीने में इतने मगन हो जाते हैं कि भूल जाते हैं आप एक आध्यात्मिक जीव हैं। मैं आप से कहना चाहता हूँ कि ईश्वर ने आप लोगों को चुना है क्योंकि आप आध्यात्मिकता स्तर पर समृद्ध हैं। [3]
रंगभेद की समस्याओं को सुलझाने के लिए, और भाईचारे की भावना को समझने के लिए आप आफरा का आह्वाहन कर सकते हैं।
दिव्य गुरु आफरा अन्य दिव्य गुरुओं की तरह अत्यंत विनम्र है। आफरा की विनम्रता की बात करते हुए, दिव्य गुरु कुथुमी ने कहा:
बहुत समय तक हम इस अद्भुत भक्ति वाली विशाल आत्मा के भाईचारे से अनजान रहे। जब तक लोग अपनी खुद की उपलब्धियों में डूबे रहेंगे, तब तक वह हम तक पहुंचने में असमर्थ रहेंगे। [4]
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “अफरा”
- ↑ Gen. 4:9.
- ↑ Elizabeth Clare Prophet, Afra: Brother of Light, pp. 25–26.
- ↑ Ibid., pp. 29–30.
- ↑ Ibid., p. 35.