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क्षमा के कानून द्वारा ईश्वर हमें अपनी आत्मिक चेतना को विकसित करने का अवसर देते हैं। कुआन यिन कहती हैं, "क्षमा के नियम में प्रशिक्षित होना आवश्यक है क्योंकि वास्तव में यही कुंभ युग (Aquarian age) की नींव है। परन्तु क्षमा से कर्मों का संतुलन नहीं होता। क्षमा को कर्म से अलग रख ईश्वर हमें आगे बढ़ने का एक अवसर देते हैं ताकि हम बिना किसी बोझ के, अपनी रचनात्मकता का प्रयोग कर चीजों को सही कर पाएं। फिर जब आप कुछ उपलब्धियां और दक्षता प्राप्त कर कर आगे बढ़ते हैं, तो क्षमा के नियम के अनुसार, जो कर्म अलग कर दिया गया था वह आपको वापस मिल जाता है क्योंकि अब आप कर्म के फल को सहने में सक्षम होते हैं। अब आप आत्म-निपुणता के उस स्तर हैं जहां आपकी चेतना उन्नत अवस्था में है और कर्म का [[रूपानतरण]] करने में सक्षम हैं।"<ref>कुआन यिन, "अ मदर्स-ऑइ व्यू ऑफ़ द वर्ल्ड (“A Mother’s-Eye View of the World)," ''पर्ल्स ऑफ विज्डम (Pearls of Wisdom)'', १९८२ , पुस्तक २, पृष्ठ ''८७''.</ref> | क्षमा के कानून द्वारा ईश्वर हमें अपनी आत्मिक चेतना को विकसित करने का अवसर देते हैं। कुआन यिन कहती हैं, "क्षमा के नियम में प्रशिक्षित होना आवश्यक है क्योंकि वास्तव में यही कुंभ युग (Aquarian age) की नींव है। परन्तु क्षमा से कर्मों का संतुलन नहीं होता। क्षमा को कर्म से अलग रख ईश्वर हमें आगे बढ़ने का एक अवसर देते हैं ताकि हम बिना किसी बोझ के, अपनी रचनात्मकता का प्रयोग कर चीजों को सही कर पाएं। फिर जब आप कुछ उपलब्धियां और दक्षता प्राप्त कर कर आगे बढ़ते हैं, तो क्षमा के नियम के अनुसार, जो कर्म अलग कर दिया गया था वह आपको वापस मिल जाता है क्योंकि अब आप कर्म के फल को सहने में सक्षम होते हैं। अब आप आत्म-निपुणता के उस स्तर हैं जहां आपकी चेतना उन्नत अवस्था में है और कर्म का [[Special:MyLanguage/transmutation|रूपानतरण]] करने में सक्षम हैं।"<ref>कुआन यिन, "अ मदर्स-ऑइ व्यू ऑफ़ द वर्ल्ड (“A Mother’s-Eye View of the World)," ''पर्ल्स ऑफ विज्डम (Pearls of Wisdom)'', १९८२ , पुस्तक २, पृष्ठ ''८७''.</ref> |
Latest revision as of 12:35, 14 June 2024
क्षमा के कानून द्वारा ईश्वर हमें अपनी आत्मिक चेतना को विकसित करने का अवसर देते हैं। कुआन यिन कहती हैं, "क्षमा के नियम में प्रशिक्षित होना आवश्यक है क्योंकि वास्तव में यही कुंभ युग (Aquarian age) की नींव है। परन्तु क्षमा से कर्मों का संतुलन नहीं होता। क्षमा को कर्म से अलग रख ईश्वर हमें आगे बढ़ने का एक अवसर देते हैं ताकि हम बिना किसी बोझ के, अपनी रचनात्मकता का प्रयोग कर चीजों को सही कर पाएं। फिर जब आप कुछ उपलब्धियां और दक्षता प्राप्त कर कर आगे बढ़ते हैं, तो क्षमा के नियम के अनुसार, जो कर्म अलग कर दिया गया था वह आपको वापस मिल जाता है क्योंकि अब आप कर्म के फल को सहने में सक्षम होते हैं। अब आप आत्म-निपुणता के उस स्तर हैं जहां आपकी चेतना उन्नत अवस्था में है और कर्म का रूपानतरण करने में सक्षम हैं।"[1]
- ↑ कुआन यिन, "अ मदर्स-ऑइ व्यू ऑफ़ द वर्ल्ड (“A Mother’s-Eye View of the World)," पर्ल्स ऑफ विज्डम (Pearls of Wisdom), १९८२ , पुस्तक २, पृष्ठ ८७.