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मैं जानता हूँ कि मैं क्या कह रहा हूँ। मुझे याद है कि पिछले एक जन्म में जब युद्ध मेरे चारों ओर जोर पकड़ रहा था। मैं हज़ारों और दस हज़ार लोगों के बीच और अपने हृदय की पवित्र अग्नि से संतुलन बनाए खड़ा था। क्या आप जानते हैं - उन्होंने मुझे नहीं देखा ! मैं भौतिक जगत में दिखाई नहीं दे रहा था, हालाँकि मैं भौतिक शरीर में था। और इस तरह ... प्रकाश के प्रति मेरी अडिग निष्ठा के कारण, जिसका मैं सर्वशक्तिमान और केवल उन्हीं | मैं जानता हूँ कि मैं क्या कह रहा हूँ। मुझे याद है कि पिछले एक जन्म में जब युद्ध मेरे चारों ओर जोर पकड़ रहा था। मैं हज़ारों और दस हज़ार लोगों के बीच और अपने हृदय की पवित्र अग्नि से संतुलन बनाए खड़ा था। क्या आप जानते हैं - उन्होंने मुझे नहीं देखा ! मैं भौतिक जगत में दिखाई नहीं दे रहा था, हालाँकि मैं भौतिक शरीर में था। और इस तरह ... प्रकाश के प्रति मेरी अडिग निष्ठा के कारण, जिसका मैं सर्वशक्तिमान और केवल उन्हीं का ऋणी हूँ - मैं वह स्तंभ था! मैं वह अग्नि था! और इस तरह वे युद्ध जारी नहीं रख सके। और वे दोनों तरफ़ से पीछे हट गए, जिससे मैं युद्ध के मैदान के बीच में अकेला खड़ा रह गया।<ref>चानंदा , “भारत अपने सबसे बुरे समय में,” {{POWref|24|23|, 7 जून, 1981}}</ref> | ||
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Latest revision as of 10:32, 24 December 2024
मैं जानता हूँ कि मैं क्या कह रहा हूँ। मुझे याद है कि पिछले एक जन्म में जब युद्ध मेरे चारों ओर जोर पकड़ रहा था। मैं हज़ारों और दस हज़ार लोगों के बीच और अपने हृदय की पवित्र अग्नि से संतुलन बनाए खड़ा था। क्या आप जानते हैं - उन्होंने मुझे नहीं देखा ! मैं भौतिक जगत में दिखाई नहीं दे रहा था, हालाँकि मैं भौतिक शरीर में था। और इस तरह ... प्रकाश के प्रति मेरी अडिग निष्ठा के कारण, जिसका मैं सर्वशक्तिमान और केवल उन्हीं का ऋणी हूँ - मैं वह स्तंभ था! मैं वह अग्नि था! और इस तरह वे युद्ध जारी नहीं रख सके। और वे दोनों तरफ़ से पीछे हट गए, जिससे मैं युद्ध के मैदान के बीच में अकेला खड़ा रह गया।[1]
- ↑ चानंदा , “भारत अपने सबसे बुरे समय में,” Pearls of Wisdom, vol. 24, no. 23, 7 जून, 1981.