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लेकिन जो लोग जन्म-मृत्यु की चक्र से थक गए हैं और भगवान के साथ मिलना चाहते हैं उनके लिए एक रास्ता है। जैसा कि फ्रांसीसी उपन्यासकार होनोर डी बाल्ज़ाक ने कहा, "हम अपना प्रत्येक जीवन ईश्वर के प्रकाश तक पहुँचने के लिए जीएं। मृत्यु जीवात्मा की यात्रा का एक पड़ाव है।" <ref>होनोरे डी बाल्ज़ाक, ''सेराफिटा'', ३डी संस्करण, रेव। (ब्लौवेल्ट, एन.वाई.: गार्बर कम्युनिकेशंस, फ्रीडीड्स लाइब्रेरी, १९८६), पृष्ठ १५९.</ref>
लेकिन जो लोग जन्म-मृत्यु की चक्र से थक गए हैं और भगवान के साथ मिलना चाहते हैं उनके लिए एक रास्ता है। जैसा कि फ्रांसीसी उपन्यासकार होनोर डी बाल्ज़ाक ने कहा, "हम अपना प्रत्येक जीवन ईश्वर के प्रकाश तक पहुँचने के लिए जीएं। मृत्यु जीवात्मा की यात्रा का एक पड़ाव है।" <ref>होनोरे डी बाल्ज़ाक, ''सेराफिटा'', ३डी संस्करण, रेव। (ब्लौवेल्ट, एन.वाई.: गार्बर कम्युनिकेशंस, फ्रीडीड्स लाइब्रेरी, १९८६), पृष्ठ १५९.</ref>


जब जीवात्मा अपने स्रोत पर (ईश्वर के पास) लौटने का निर्णय कर लेती है तो उसका लक्ष्य खुद को अज्ञानता और अंधकार से मुक्त करना होता है। इस प्रक्रिया में कई जन्म लग सकते हैं। महाभारत में जीवात्मा की शुद्धिकरण की प्रक्रिया की तुलना सोने को परिष्कृत करने की प्रक्रिया से की गई है - जिस प्रकार सुनार धातु को शुद्ध करने के लिए बार-बार आग में डालता है वैसे ही स्वयं को शुद्ध करने के लिए जीवात्मा को बार बार पृथ्वी पर आना पड़ता है। महाभारत हमें यह भी बताती है कि कुछ जीवात्माएं अपने "शक्तिशाली प्रयासों" द्वारा एक ही जीवन में स्वयं को शुद्ध कर लेती है, लेकिन अधिकांशतः को इस कार्य में "सैकड़ों जन्म"  लग जाते हैं। <ref>किसारी मोहन गांगुली द्वारा अनुवादित "द महाभारत औफ कृष्ण-द्वैपायन व्यास'', खंड १२ (नई दिल्ली: मुंशीराम मनोहरलाल, १९७०), ९:२९६।</ref> पूरी तरह से शुद्ध होने पर आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो परब्रह्म के साथ मिल जाती है। आत्मा "अमर हो जाती है।"<ref>श्वेताश्वतर उपनिषद, प्रभावानंद और मैनचेस्टर में, ''द उपनिषद'', पृष्ठ ११८.</ref>
जब जीवात्मा अपने स्रोत पर (ईश्वर के पास) लौटने का निर्णय कर लेती है तो उसका लक्ष्य खुद को अज्ञानता और अंधकार से मुक्त करना होता है। इस प्रक्रिया में कई जन्म लग सकते हैं। महाभारत में जीवात्मा की शुद्धिकरण की प्रक्रिया की तुलना सोने को परिष्कृत करने की प्रक्रिया से की गई है - जिस प्रकार सुनार धातु को शुद्ध करने के लिए बार-बार आग में डालता है वैसे ही स्वयं को शुद्ध करने के लिए जीवात्मा को बार बार पृथ्वी पर आना पड़ता है। महाभारत हमें यह भी बताती है कि कुछ जीवात्माएं अपने "शक्तिशाली प्रयासों" द्वारा एक ही जीवन में स्वयं को शुद्ध कर लेती है, लेकिन अधिकांशतः को इस कार्य में "सैकड़ों जन्म"  लग जाते हैं। <ref>किसारी मोहन गांगुली द्वारा अनुवादित ''द महाभारत औफ कृष्ण-द्वैपायन व्यास'', खंड १२ (नई दिल्ली: मुंशीराम मनोहरलाल, १९७०), ९:२९६।</ref> पूरी तरह से शुद्ध होने पर आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो परब्रह्म के साथ मिल जाती है। आत्मा "अमर हो जाती है।"<ref>श्वेताश्वतर उपनिषद, प्रभावानंद और मैनचेस्टर में, ''द उपनिषद'', पृष्ठ ११८.</ref>


<span id="Buddhist_teaching"></span>
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