Ascension/hi: Difference between revisions
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 28: | Line 28: | ||
ईश्वर के कानून में पवित्र होने का मतलब है अपने पूरे तन-मन से प्रभु से प्रेम करना, सभी मनुष्यों में ईश्वर का वास समझकर उनके प्रति भी प्रेम का भाव रखना, सभी दिव्यगुरूओं के प्रति पर्याप्त भक्ति भाव रखना और सान्सारिक घटनाओं के प्रति समभाव महसूस करते हुए अपने में ये द्रढ़ विश्वास पैदा करना कि "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ईश्वर का अनुसरण करूँगा"।<ref>Matt. 22:37–39; John 21:22.</ref> | ईश्वर के कानून में पवित्र होने का मतलब है अपने पूरे तन-मन से प्रभु से प्रेम करना, सभी मनुष्यों में ईश्वर का वास समझकर उनके प्रति भी प्रेम का भाव रखना, सभी दिव्यगुरूओं के प्रति पर्याप्त भक्ति भाव रखना और सान्सारिक घटनाओं के प्रति समभाव महसूस करते हुए अपने में ये द्रढ़ विश्वास पैदा करना कि "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ईश्वर का अनुसरण करूँगा"।<ref>Matt. 22:37–39; John 21:22.</ref> | ||
हर वो व्यक्ति जो अपने जीवन का अर्थ समझता है ये जानता है की | हर वो व्यक्ति जो अपने जीवन का अर्थ समझता है ये जानता है की आध्यात्मिक उत्थान ही जीवन का लक्ष्य है। इस बात का एहसास देर-सवेर हर एक व्यक्ति को होता है - कभी कभी बहुत छोटी उम्र में ही यह चेतना मिल जाती है। यह [[Special:MyLanguage/initiation|बीजारोपण]] व्यक्ति में तब होता है जब: | ||
* जब वह अपनी ह्रदय ज्योत को संतुलित कर लेता है। | * जब वह अपनी ह्रदय ज्योत को संतुलित कर लेता है। |
Revision as of 15:39, 27 October 2023
आध्यात्मिक उत्थान वह प्रक्रिया है जिससे जीवात्मा का मिलन आत्मा से होता है। आध्यात्मिक उत्थान तब होता है जब जीवात्मा एक समय और स्थान पर रहते हुए स्वयं को ईश्वरीय चेतना में परिष्कृत कर लेती है। यह नेक लोगों को ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार है जो उन्हें पृथ्वी लोक पर उनके निवास के अंत में जीवन का सम्पूर्ण लेखा जोखा देख कर दिया जाता है।[1]
इनोक का आध्यात्मिक उत्थान हुआ था। उनके बारे में लिखा गया है कि ऐसा नहीं है कि वे ईश्वर के साथ गए बल्कि ईश्वर उन्हें अपने साथ लेके गए।[2]; एलिजाह का आध्यात्मिक उत्थान चक्रवात की तरह हुआ[3]; ईसा मसीह का भी आध्यात्मिक उत्थान हुआ, पर वे बादलों में बैठकर नहीं गए थे जैसा कि धर्मग्रंथ में बताया गया है।[4] दिव्यगुरू एल मोरया ने इस बारे में खुलासा किया है - उन्होंने बताया है ईसा मसीह का आध्यात्मिक उत्थान ८१ साल की उम्र में शम्भाला से हुआ - वे उस समय कश्मीर में रहते थे।
सभी मनुष्य ईश्वर के पुत्र एवं पुत्रियां है।आध्यात्मिक उत्थान का अर्थ ईश्वर से मिलाप है, यह इस बात का सूचक है की व्यक्ति ने जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति पा ली है - यह मुक्ति ही हर मनुष्य के जीवन का ध्येय है। ईसा मसीह ने कहा है, "केवल वही व्यक्ति स्वर्ग जा सकता है जो स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर आया है।”[5] जीवात्मा का मुक्ति प्राप्ति के लिए चैतन्यपूर्वक आत्म-उत्थान करना यूँ है मानो दुल्हन विवाह का जोड़ा पहन रही हो - जीवात्मा दुल्हन है और आत्मा दूल्हा। जीवात्मा स्वयं को इस काबिल बनाती है कि वो ईश्वर से मिल सके। ईसा मसीह के मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवात्मा अपनीं आत्मिक चेतना का उत्थान करते हुए उसी प्रभु से एकीकृत हो जाती है जहाँ से वह नीचे उतरी थी।
भौतिक उत्थान
दिव्य गुरुओं ने हमें यह शिक्षा दी है की आध्यात्मिक उत्थान के लिए भौतिक शरीर का साथ होना ज़रूरी नहीं। नश्वर शरीर से अलग हो जीवात्मा एक ऊंची उड़ान भर के आध्यात्मिक उत्थान के लिए निकल सकती है, जबकि भौतिक अंश पृथ्वी पर ही दाह-संस्कार की पद्यति से पवित्र अग्नि के सपुर्द कर दिए जाते हैं। हालाँकि धर्मग्रंथो में ऐसे उदाहरण हैं जिनका आध्यात्मिक उत्थान भौतिक शरीर के साथ हुआ है (इनोक और एलिजाह), परन्तु भौतिक शरीर के साथ आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए इंसान को अपने ९५-१०० प्रतिशत कर्म संतुलित करने होते हैं। एक्वेरियन एज (Aquarian Age) की व्यवस्था के अनुसार केवल ५१ प्रतिशत कर्म संतुलित करके व्यक्ति आध्यात्मिक उत्थान के योग्य हो जाता है। बाकी का ४९ प्रतिशत वह आध्यात्मिक उत्थान के बाद संतुलित कर सकता है। इस मामले में आध्यात्मिक उत्थान कभी भी भौतिक शरीर के साथ नहीं होता, पर यह पूर्णतया वास्तविक होता है और सूक्ष्मदर्शी सिद्ध व्यक्ति इस आत्मिक प्रक्रिया को देख भी सकते हैं।
जब किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक उत्थान भौतिक शरीर के साथ होता है, तब दिव्यगुरु उसके शरीर को अपने प्रकाश से ढक कर रूपांतरित करते हैं। आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया के दौरान जीवात्मा स्थायी रूप से प्रकाश से ढक जाती है, इसे ही "शादी का परिधान" या फिर मृत्यु से परे सौर शरीर कहते हैं। सिरेपीस बे ने इस प्रक्रिया का वर्णन अपने दस्तावेज़ "डोसियर आन एसेंशन" (Dossier on the Ascension) में किया है।
आत्मा की ज्योत व्यक्ति के ह्रदय में स्थित त्रिदेव ज्योत को आकर्षित करती है और प्रकाशरूपी (शादी का) परिधान उस व्यक्ति को अपने अंदर समेट लेता है जिस से वह ऊपर उठ सकता है। इसके बाद इंसान के शरीर में कुछ आश्चर्यजनक बदलाव होते हैं जिनके फ़लस्वरूप शरीर पूरी तरह से पवित्र हो जाता है। फिर भौतिक शरीर हल्का होना शुरू होता है, और हल्का होते होते पूर्णतः भारहीन होकर आसमान में ऊपर उठने लगता है, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उसपर असर नहीं होता। प्रकाश से आच्छादित ये शरीर ऐसा ही प्रतीत होता है जैसा परमपिता परमेश्वर के शरीर के बारे में हम जानते है। इसके बाद भौतिक शरीर गौरवशाली आध्यात्मिक शरीर में परिवर्तित हो जाता है।[6]
२ अक्टूबर १९८९ को दिए एक श्रुतलेख में दिव्यगुरु Rex ने हमें बताया है कि भौतिक शरीर के साथ आध्यात्मिक उत्थान के पीछे हज़ारों सालों का परिश्रम छिपा रहता है। आजकल ज़्यादातर लोगों का आध्यात्मिक उत्थान तब होता है जब जीवात्मा भौतिक शरीर छोड़ देती है। जीवात्मा आत्मा के साथ मिल जाती है और ईश्वर के शरीर में एक स्थायी अणु के रूप में रहती है - भौतिक शरीर के साथ आध्यात्मिक उत्थान में भी ऐसा ही होता है।
आध्यात्मिक उत्थान के लिए कुछ ज़रूरी बातें
आध्यात्मिक उत्थान की तीन मुख्य आवश्यकताएं हैं शुचिता, अनुशासन और स्नेह। इन तीनों विशेषताओं से ही ईश्वर संतुष्ट होते हैं: हृदय, मन और आत्मा के समर्पण की पवित्रता; मकसद और इच्छा का अनुशासन; विचारों, भावनाओं और कार्यों की स्पष्टता। ये सब जब आत्मिक चेतना से होते हुए ईश्वरीय चेतना में मिल जाते हैं, तब ही ईश्वर के कानून का अनुसरण होता है।
पवित्रता का अर्थ है अपनी सारी ऊर्जा को प्रेमपूर्वक कार्य करने के लिए निर्देशित करना। इसका अर्थ यह भी है की आप हमेशा अपनी चेतना को जागृत रखें, निर्धन और बीमार लोगों की सेवा करें, और निष्क्रिय लोगों को काम करने की प्रेरणा दें। पवित्रता का अर्थ यह भी है कि आप ईश्वर की दी हुई चुन्नौत्तियों के लिए हमेशा तैयार रहें तथा ईश्वर के प्रति सदा समर्पित रहें और लगातार प्रार्थना करते रहें।
ईश्वर के कानून में पवित्र होने का मतलब है अपने पूरे तन-मन से प्रभु से प्रेम करना, सभी मनुष्यों में ईश्वर का वास समझकर उनके प्रति भी प्रेम का भाव रखना, सभी दिव्यगुरूओं के प्रति पर्याप्त भक्ति भाव रखना और सान्सारिक घटनाओं के प्रति समभाव महसूस करते हुए अपने में ये द्रढ़ विश्वास पैदा करना कि "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ईश्वर का अनुसरण करूँगा"।[7]
हर वो व्यक्ति जो अपने जीवन का अर्थ समझता है ये जानता है की आध्यात्मिक उत्थान ही जीवन का लक्ष्य है। इस बात का एहसास देर-सवेर हर एक व्यक्ति को होता है - कभी कभी बहुत छोटी उम्र में ही यह चेतना मिल जाती है। यह बीजारोपण व्यक्ति में तब होता है जब:
- जब वह अपनी ह्रदय ज्योत को संतुलित कर लेता है।
- जब उसके चारों शरीर - भौतिक, भावनात्मक, मानसिक और सूक्ष्म शरीर - ईश्वरीय आत्मा के शुद्ध पात्र बन जाते हैं।
- जब उसने सभी किरणों पर प्रभुत्व हासिल कर उन्हें संतुलित कर लिया हो।
- जब उसने हर एक बाहरी परिस्थति पर काबू पा लिया हो, और सभी पाप कर्मों, बीमारियों और मृत्यु पर विजय पा ली हो।
- जब उसने मनुष्यों और ईश्वर की पर्याप्त सेवा कर अपनी दिव्य योजना को पूरा कर लिया हो।
- जब उसने अपने ५१ प्रतिशत कर्म संतुलित कर लिए हों।
- जब उसका ह्रदय भगवान में लीन हो तथा वह ईश्वर के अनंत रूप से उभरती हुई उपस्थिति की कभी न बुझने वाली रोशनी में ऊपर उठने की आकांक्षा रखता हो।
लक्सर में स्थित आरोहण मंदिर और आश्रय स्थल द्वारा दी गयी दीक्षाओं में पारित होना भी आरोहण की प्रक्रिया का एक भाग है:
- इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट का रूपांतरण
- चक्रों तथा सर्पदंड का सही उपयोग
- (कुण्डलिनी) और बीज परमाणु का उत्थान
- मानव रचना के अंतिम अवशेषों के रूपांतरण के लिए अग्नि के शंकु (cone of fire) का निर्माण
आरंभ में, व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने व्यक्तिगत कर्म के प्रत्येक ज़र्रे को पूर्णतया संतुलन करना आवश्यक था। पृथ्वी पर लिए अपने प्रत्येक जन्म में उसने जितनी भी ऊर्जा का गलत प्रयोग किया उसके प्रत्येक कण को मोक्ष प्राप्त करने से पहले पवित्र करना आवश्यक था। उत्कृष्टता हासिल करना ईश्वर के कानून की मांग थी।
पर कर्म के स्वामी द्वारा की गई ईश्वर की कृपा से अब ऐसा ज़रूरी नहीं है। जिन लोगों ने अपने ५१ प्रतिशत कर्मों को संतुलित कर लिया है वे भी आरोहण के अधिकारी हैं - ऐसा आशीर्वाद ईश्वर ने दिया है। इसका मतलब यह कतई नहीं है की इंसान अपने कर्मों या अपूर्ण ज़िम्मेदारियों से बच सकता है। उसे अपने बाकी कर्मों को ऊपरी स्तरों से पूरा करना होता है।
जब व्यक्ति अपने १०० प्रतिशत कर्म पूरी उत्कृष्टता से संतुलित कर लेता है और वही पवित्र रूप प्राप्त कर लेता है जिस रूप में वह ईश्वर के ह्रदय से निकलकर सबसे पहले पृथ्वी पर आया था तब वह अपनी आगे की यात्रा पर अग्रसर हो सकता है।
अधिक जानकारी के लिए
Serapis Bey, Dossier on the Ascension.
इसे भी देखिये
दिव्यगुरु, ब्रह्मांडीय जीव और देवदूत.
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.
Pearls of Wisdom, vol. 25, no. 54, ३० दिसंबर १९८२.
Pearls of Wisdom, vol. 35, no. 34, २३ अगस्त १९९२.
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and the Spiritual Path, pp. 93–94.