Christ/hi: Difference between revisions
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
JaspalSoni (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 25: | Line 25: | ||
== व्यक्तिगत आत्मा == | == व्यक्तिगत आत्मा == | ||
प्रत्येक जीवात्मा का व्यक्तिगत '''[[Special:MyLanguage/Christ Self|उच्च चेतना]]''' से पुनर्मिलन का यह पहला कदम है। जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चल कर उच्च चेतना की दीक्षाओं में सफल हो जाता है, जिसमें "[[Special:MyLanguage/dweller-on-the-threshold|मानसिक दहलीज़ पर नकरात्मक रूप]]" पर विजय पाना भी शामिल है, तो वह चैतन्य कहलाने का अधिकार अर्जित करता है और [[Special:MyLanguage/sons and daughters of God|ईश्वर का पुत्र या पुत्री]] की उपाधि प्राप्त करता है। पिछले युगों में जिन लोगों ने यह उपाधि अर्जित की, उन्होंने या तो उस उपलब्धि को पूरी तरह से घटा दिया या आगामी जन्मों में इसे प्रकट करने में विफल रहे। इस युग में इन लोगो से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी आंतरिक ईश्वर-निपुणता को सामने लाएँ और भौतिक अवतार में रहते हुए इसे भौतिक स्तर पर पूर्ण करें। | प्रत्येक जीवात्मा का व्यक्तिगत '''[[Special:MyLanguage/Christ Self|उच्च चेतना]]''' से पुनर्मिलन का यह पहला कदम है। जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चल कर उच्च चेतना की दीक्षाओं में सफल हो जाता है, जिसमें "[[Special:MyLanguage/dweller-on-the-threshold|मानसिक दहलीज़ पर नकरात्मक रूप]]" पर विजय पाना भी शामिल है, तो वह व्यक्ति चैतन्य (Christed one) कहलाने का अधिकार अर्जित करता है और [[Special:MyLanguage/sons and daughters of God|ईश्वर का पुत्र या पुत्री]] की उपाधि प्राप्त करता है। पिछले युगों में जिन लोगों ने यह उपाधि अर्जित की, उन्होंने या तो उस उपलब्धि को पूरी तरह से घटा दिया या आगामी जन्मों में इसे प्रकट करने में विफल रहे। इस युग में इन लोगो से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी आंतरिक ईश्वर-निपुणता को सामने लाएँ और भौतिक अवतार में रहते हुए इसे भौतिक स्तर पर पूर्ण करें। | ||
इसलिए, भगवान के पुत्रों और पुत्रियों को उनके आंतरिक प्रकाश के अनुरूप दिखने में सहायता करने के लिए [[Special:MyLanguage/Great White Brotherhood|ग्रेट व्हाइट ब्रदरहुड]] के गुरुओं ने [[Special:MyLanguage/ascended master|दिव्यगुरूओं]] और उनके [[Special:MyLanguage/messenger|दिव्यदूतों]] के माध्यम से अपनी शिक्षाएं प्रकाशित की हैं। [[Special:MyLanguage/Saint Germain|संत जर्मेन]] ने इस वर्ग के सदस्यों को क्रमिक मासिक पाठ प्रदान करने वाली [[Special:MyLanguage/Keepers of the Flame|कीपर्स ऑफ द फ्लेम बिरादरी]] की स्थापना की है, जो दुनिया भर में जीवन की लौ को बनाए रखने के लिए समर्पित है। [[Special:MyLanguage/discipleship|शिष्यत्व]] की दीक्षाओं के सफल समापन से पहले, व्यक्ति को "ईश्वर के पुत्र" शब्द के बजाए ईश्वर की संतान के रूप में संदर्भित किया जाता है। ईश्वर का पुत्र पूर्ण ईश्वरत्व को दर्शाता है जिसमें मनुष्य की जीवात्मा ईश्वर का आत्मा में लीन हो जाती है। ईसा मसीह इसका एक उदाहरण हैं। | इसलिए, भगवान के पुत्रों और पुत्रियों को उनके आंतरिक प्रकाश के अनुरूप दिखने में सहायता करने के लिए [[Special:MyLanguage/Great White Brotherhood|ग्रेट व्हाइट ब्रदरहुड]] के गुरुओं ने [[Special:MyLanguage/ascended master|दिव्यगुरूओं]] और उनके [[Special:MyLanguage/messenger|दिव्यदूतों]] के माध्यम से अपनी शिक्षाएं प्रकाशित की हैं। [[Special:MyLanguage/Saint Germain|संत जर्मेन]] ने इस वर्ग के सदस्यों को क्रमिक मासिक पाठ प्रदान करने वाली [[Special:MyLanguage/Keepers of the Flame|कीपर्स ऑफ द फ्लेम बिरादरी]] की स्थापना की है, जो दुनिया भर में जीवन की लौ को बनाए रखने के लिए समर्पित है। [[Special:MyLanguage/discipleship|शिष्यत्व]] की दीक्षाओं के सफल समापन से पहले, व्यक्ति को "ईश्वर के पुत्र" शब्द के बजाए ईश्वर की संतान के रूप में संदर्भित किया जाता है। ईश्वर का पुत्र पूर्ण ईश्वरत्व को दर्शाता है जिसमें मनुष्य की जीवात्मा ईश्वर का आत्मा में लीन हो जाती है। ईसा मसीह इसका एक उदाहरण हैं। |
Revision as of 11:13, 26 February 2024
[ यूनानी शब्द क्रिस्टोस "अभिषिक्त" से लिया गया ] मसीहा [यहूदी, सीरियाई भाषा का शब्द "अभिषिक्त"]; ईसाई धर्म के अनुसार अभिषिक्त मनुष्य, ईश्वर के पुत्र के रूप में प्रकाश से भरा हुआ है। शब्द (Word) और लोगोस (Logos) त्रिमूर्ति (Trinity) की दूसरी मूर्ति का रूप है, "जिसने शब्द के द्वारा देह (body) धारण की और हमारे बीच वास किया (और हमने उनकी महिमा को ऐसे देखा जैसे पुत्र अपने पिता को देखता है), अनुग्रह और सच्चाई से भरपूर.... यह उस अभिषिक्त मनुष्य का प्रकाश है जो दुनिया में आने वाले हर मनुष्य को प्रकाशमान करता है। वह दुनिया में थे, और दुनिया उनके द्वारा रची गई, पर दुनिया वालों ने उन्हें नहीं पहचाना।”[1]
हिन्दू त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, और शिव में विष्णु "आत्मा" का मूर्त रूप और संरक्षक हैं; उन्हें अवतार, ईश्वर-पुरुष, अंधकार को दूर करने वाला गुरु भी कहा जाता है।
सार्वभौमिक आत्मा (The Universal Christ)
सार्वभौमिक आत्मा आत्मा (Spirit) और पदार्थ (Matter) के स्तरों के बीच मध्यस्थ है; उच्च चेतना का यह रूप ईश्वरीय स्वरुप और मनुष्य की जीवात्मा (soul) के बीच स्थित है। सार्वभौमिक चेतना (आठ की आकृति के प्रवाह के द्वारा) गठजोड़ को बनाए रखती है। इसके माध्यम से पिता (Spirit) की ऊर्जा माँ (Matter) के ब्रह्मांडीय गर्भ (साँचें) में प्रयासरत बच्चों को उनकी जीवात्माओं में ईश्वरीय लौ के क्रिस्टलीकरण के द्वारा उच्च चेतना का आभास कराती है। इस प्रक्रिया को भौतिकीकरण (मातृ-प्राप्ति) या "उत्पत्ति" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा के पास एकत्रित हुई माँ की ऊर्जा उच्च चेतना से मिलते हुए पिता के ईश्वरीय स्वरुप तक पहुँचती है उसे आध्यात्मीकरण (ईश्वरीय चेतना का आभास), "उदय" कहा जाता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीवात्मा की ऊर्जा पदार्थ से होते हुए वापिस ईश्वरीय स्वरुप में लौटती है उसे उत्कृष्ट क्रिया या रूपांतरण कहते हैं।
इस प्रक्रिया की परिपूर्ति जीवात्मा द्वारा तब अनुभव होती है, जब वह आध्यात्मिक उत्थान द्वारा अपने ईश्वरीय स्वरुप के साथ मिल जाती है। यह प्रक्रिया उस वचन का स्वर्ग लोक में आध्यात्मिक उत्थान के साथ पूरा होने का प्रमाण है जो ईसा मसीह ने पृथ्वी पर दिया था: "उस दिन तुम जानोगे कि मैं (उच्च चेतना) अपने पिता (ईश्वेरिये स्वरुप) में निहित हूँ, तुम मुझ में हो, और मैं तुम में हूँ। जो मुझ से प्रेम करेगा और मेरे शब्दों को समझेगा, उस पर ईश्वेरिये प्रेम की असीम कृपा होगी। जिससे जीवात्मा, उच्च चेतना और ईश्वेरिये स्वरुप एक हो जाएंगे।"[2]
सृष्टि में ईश्वरत्व की सकारात्मक (positive) और नकारात्मक ध्रुवता (negative polarity) की ऊर्जाओं का मिश्रण सार्वभौमिक आत्मा (Universal Christ) के माध्यम से होता है। ईश्वेरिये रचना लोगोस (Logos) के द्वारा ही हुई है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (Macrocosm) से सूक्ष्म जगत (microcosm) तक, ईश्वरीय स्वरुप और जीवात्मा के बीच प्रकाश का प्रवाह उच्च चेतना (आत्मा) में अंक आठ की आकृति के द्वारा होता है - यही उच्च चेतना अहम् ब्रह्मास्मि का प्रतिरूप है। क्योंकि उच्च चेतना ईश्वर का प्रतिरूप है, हम भी कह सकते हैं, "मुझमें निहित ईश्वरीय प्रकाश एक खुला दरवाजा है जिसे कोई बंद नहीं कर सकता" और "मुझ में निहित ईश्वरीय प्रकाश ने मुझे स्वर्ग और पृथ्वी दोनों स्थानों पर सम्पूर्ण शक्ति दी है" और "मुझ में निहित ईश्वरीय प्रकाश हमेशा जीवित रहता है - यत पिंडे-तत ब्रह्माण्डे (as Above, so below)- मेरे पास स्वर्ग में जाने की चाबियाँ हैं, नर्क और मृत्यु के मार्ग की भी। ईश्वर जिसे भी इस मार्ग के बारे में बताना चाहते हैं और चाबियाँ देना चाहते हैं, मैं उसे ये चाबियाँ दे देता हूँ।
इस बात की पुष्टि न सिर्फ दिव्यगुरु ईसा मसीह ने २००० साल पहले की थी बल्कि आप भी अपनी उच्च चेतना द्वारा कर सकते हैं। इस प्रकार सार्वभौमिक आत्मा वास्तव में आपकी अपनी उच्च चेतना के माध्यम से आपमें ईश्वरीय प्रकाश उपस्थिति का आभास कराता है। यथार्थ में यह ब्रह्मांडीय चेतना को ईश्वरीय स्वरुप में बांटने का सच्चा समागम है - ब्रह्मांडीय चेतना ईश्वर के प्रत्येक बच्चे में वैयक्तिक रूप से उपस्थित है। ईश्वर के पुत्र अपनी उच्च चेतना में ईश्वर के सभी बच्चों (babes in Christ) के लिए मैक्सिम लाइट (Maxim Light) पर भरोसा रखते हैं।
एक चैतन्य व्यक्ति
शब्द "आत्मा" या "चैतन्य व्यक्ति" भी पदानुक्रम (hierarchy) में एक पद को दर्शाता है जो उन लोगों द्वारा प्राप्त किया जाता है जिन्होंने पवित्र आत्मा (Holy Spirit) की सात किरणों (seven rays) और सात चक्रों (chakras) में आत्म-निपुणता प्राप्त कर ली है। आत्मा में निपुणता का अर्थ है अपनी त्रिज्योति लौ (threefold flame) - ईश्वर के प्रेम, शक्ति और विवेक के गुणों - को संतुलित करना। इससे आत्मिक चेतना में सामन्जस्य आता है और चार निचले शरीरों (four lower bodies) में मातृ लौ कुण्डलिनी (Kundalini) द्वारा सातों किरणों और चक्रों में प्रवीणता (mastery) प्राप्त होती है। आध्यात्मिक उत्थान के नियुक्त समय पर अभिषिक्त जीवात्मा अपने अस्तित्व, चेतना और दुनिया के प्रत्येक मनुष्य के परमाणु और कोशिका के रूपांतरण के हेतु पैरों के नीचे से त्रिज्योति लौ को चक्राकार गति से अपनी पूरी काया के साथ आकाश की ओर उठती है। जीवात्मा के चार निचले शरीरों परिपूर्णता और बढ़ोतरी रूप परिवर्तन (transfiguration) के दीक्षा (initiation) के दौरान आंशिक रूप से होती है, जो पुनरुत्थान (resurrection) के माध्यम से बढ़ती है और आध्यात्मिक उत्थान (ascension) के अनुष्ठान में तीव्रता से पूर्णता प्राप्त करती है।
व्यक्तिगत आत्मा
प्रत्येक जीवात्मा का व्यक्तिगत उच्च चेतना से पुनर्मिलन का यह पहला कदम है। जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चल कर उच्च चेतना की दीक्षाओं में सफल हो जाता है, जिसमें "मानसिक दहलीज़ पर नकरात्मक रूप" पर विजय पाना भी शामिल है, तो वह व्यक्ति चैतन्य (Christed one) कहलाने का अधिकार अर्जित करता है और ईश्वर का पुत्र या पुत्री की उपाधि प्राप्त करता है। पिछले युगों में जिन लोगों ने यह उपाधि अर्जित की, उन्होंने या तो उस उपलब्धि को पूरी तरह से घटा दिया या आगामी जन्मों में इसे प्रकट करने में विफल रहे। इस युग में इन लोगो से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी आंतरिक ईश्वर-निपुणता को सामने लाएँ और भौतिक अवतार में रहते हुए इसे भौतिक स्तर पर पूर्ण करें।
इसलिए, भगवान के पुत्रों और पुत्रियों को उनके आंतरिक प्रकाश के अनुरूप दिखने में सहायता करने के लिए ग्रेट व्हाइट ब्रदरहुड के गुरुओं ने दिव्यगुरूओं और उनके दिव्यदूतों के माध्यम से अपनी शिक्षाएं प्रकाशित की हैं। संत जर्मेन ने इस वर्ग के सदस्यों को क्रमिक मासिक पाठ प्रदान करने वाली कीपर्स ऑफ द फ्लेम बिरादरी की स्थापना की है, जो दुनिया भर में जीवन की लौ को बनाए रखने के लिए समर्पित है। शिष्यत्व की दीक्षाओं के सफल समापन से पहले, व्यक्ति को "ईश्वर के पुत्र" शब्द के बजाए ईश्वर की संतान के रूप में संदर्भित किया जाता है। ईश्वर का पुत्र पूर्ण ईश्वरत्व को दर्शाता है जिसमें मनुष्य की जीवात्मा ईश्वर का आत्मा में लीन हो जाती है। ईसा मसीह इसका एक उदाहरण हैं।
आत्मा की चेतना का विस्तार करते हुए, चैतन्य व्यक्ति ग्रह के स्तर पर आत्मिक चेतना को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है और ग्रह के विकास के लिए चैतन्य लौ का संतुलन बनाए रखने में सक्षम होता है। जब यह हासिल हो जाता है, तो वह स्वर्गीय पदक्रम के सदस्यों की सहायता करता है जो विश्व शिक्षक और ग्रह चेतना के कार्यालय के तहत काम करते हैं।
इसे भी देखिये
अधिक जानकारी के लिए
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of the Universal Christ.
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.