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(१) दिव्य आदेश का अभिवादन वाला हिस्सा आह्वानात्मक है। इस भाग में प्रत्येक पुत्र और पुत्री अपने व्यक्तिगत [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM Presence) से दिव्य गुरुओं और सेवकों को संबोधित करते हैं जो आध्यात्मिक पदक्रम में शामिल हैं। यह अभिवादन (दिव्य आदेश की ''प्रस्तावना''), जब आदरपूर्वक किया जाता है, तो यह दिव्यगुरूओं को उत्तर देने के लिए बाध्य करता है। जिस तरह आपके अग्निशमन अधिकारी (firemen) आपकी पुकार को अनसुना नहीं कर सकते उसी तरह वे भी आपकी पुकार का उत्तर देने से इंकार नहीं कर सकते। जब आप प्रेमपूर्वक, अकेले में या अपने साथियों के साथ, ईश्वर का अभिवादन करते है तो आपकी दिव्य आदेश का उत्तर देने के लिए दिव्यगुरु अपनी ऊर्जा को तुरंत संलग्न (engage) करने में बाध्य हो जाते हैं, यही अभिवादन करने का उद्देश्य है। | (१) दिव्य आदेश का अभिवादन वाला हिस्सा आह्वानात्मक है। इस भाग में प्रत्येक पुत्र और पुत्री अपने व्यक्तिगत [[Special:MyLanguage/I AM Presence|ईश्वरीय स्वरूप]] (I AM Presence) से दिव्य गुरुओं और सेवकों को संबोधित करते हैं जो आध्यात्मिक पदक्रम में शामिल हैं। यह अभिवादन (दिव्य आदेश की ''प्रस्तावना''), जब आदरपूर्वक किया जाता है, तो यह दिव्यगुरूओं को उत्तर देने के लिए बाध्य करता है। जिस तरह आपके अग्निशमन अधिकारी (firemen) आपकी पुकार को अनसुना नहीं कर सकते उसी तरह वे भी आपकी पुकार का उत्तर देने से इंकार नहीं कर सकते। जब आप प्रेमपूर्वक, अकेले में या अपने साथियों के साथ, ईश्वर का अभिवादन करते है तो आपकी दिव्य आदेश का उत्तर देने के लिए दिव्यगुरु अपनी ऊर्जा को तुरंत संलग्न (engage) करने में बाध्य हो जाते हैं, यही अभिवादन करने का उद्देश्य है। | ||
(२) दिव्य आदेश के ''मुख्य भाग'' के शब्द आपकी इच्छाओं, और उन योग्यताओं (qualifications) को व्यक्त करते है जिन्हें आप स्वयं के लिए या अपने प्रियजनों के लिए चाहते हैं - ये प्रार्थनाएँ आपकी सामान्य प्रार्थनाओं में भी शामिल होती हैं। अपनी बाहरी चेतना के माध्यम से | (२) दिव्य आदेश के ''मुख्य भाग'' के शब्द आपकी इच्छाओं, और उन योग्यताओं (qualifications) को व्यक्त करते है जिन्हें आप स्वयं के लिए या अपने प्रियजनों के लिए चाहते हैं - ये प्रार्थनाएँ आपकी सामान्य प्रार्थनाओं में भी शामिल होती हैं। अपनी बाहरी चेतना के माध्यम से कहे गए शब्द अवचेतन मन (subconscious mind) और अतिचेतन (superconscious mind) या उच्च चेतना की शक्ति को जारी करने के बाद, आप निश्चिंत हो सकते हैं कि जिन दिव्यगुरुओं का आवाहन आपने किया है उनकी सर्वोच्च चेतना भी उस मांग की अभिव्यक्ति करने के लिए चिन्ताशील है। | ||
(३) अब आप दिव्य आदेश के अंतिम भाग, उसके समापन पर आ गए हैं, ईश्वर के हृदय में अपने पत्र को '''मोहर''' (sealing) लगाने वाले हैं और जो प्रार्थना आपने आत्मा के दायरे में प्रतिबद्धता की भावना के साथ करी है उसके लिए ईश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने वाले हैं तो ईश्वर के अचूक नियमो के अनुसार आपने जो चाहा है उसे अभिव्यक्ति होना ही होगा। | (३) अब आप दिव्य आदेश के अंतिम भाग, उसके समापन पर आ गए हैं, ईश्वर के हृदय में अपने पत्र को '''मोहर''' (sealing) लगाने वाले हैं और जो प्रार्थना आपने आत्मा के दायरे में प्रतिबद्धता की भावना के साथ करी है उसके लिए ईश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने वाले हैं तो ईश्वर के अचूक नियमो के अनुसार आपने जो चाहा है उसे अभिव्यक्ति होना ही होगा। |
Revision as of 09:43, 26 March 2024
संज्ञा एक पूर्व-निर्धारित इच्छा, एक फरमान या आदेश, आधिकारिक निर्णय, घोषणा, एक कानून, व्यवस्था या धार्मिक नियम, एक आज्ञा या धर्म आदेश।
क्रिया निर्णय लेना, घोषणा करना, निश्चित करना या आज्ञा देना, निश्चय करना, आदेश देना या निषेध करना, ईश्वर की उपस्थिति का आवाहन करना, ईश्वर के प्रकाश/ऊर्जा/चेतना, उसकी शक्ति और संरक्षण, पवित्रता और उत्तमता का आवाहन करना
परिभाषा
जोब की किताब (Book of Job) में लिखा है, "जब तुम किसी विषय या वस्तु के लिए दिव्य आदेश (decree) करोगे तो वह तुम्हारे जीवन में स्थित कर दी जायेगी; और तुम्हारा मार्ग ईश्वर के प्रकाश से भरपूर रहेगा।" [1] ईश्वरत्व की सभी प्रार्थनाओं में दिव्य आदेश (decree) सबसे शक्तिशाली है। इसके बारे में आईज़ेयाह (Isaiah) ने "कमांड ये मी (Command ye me)" (४५:११) में लिखा है, यही प्रकाश का वास्तविक आदेश है जो, "लक्स फिएट" (Lux fiat) (प्रकाश की तीव्रता को मापने की इकाई) के रूप में, भगवान के बेटों और बेटियों (sons and daughters of God) का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह परमेश्वर का आधिकारिक शब्द (Word) है जो मनुष्य के ईश्वरीय स्वरुप (I AM Presence) और आत्मा के नाम से उच्चारा गया है ताकि परमेश्वर की इच्छा और चेतना के माध्यम से पृथ्वी पर रचनात्मक परिवर्तन लाया जा सके और पृथ्वी पर सब कुछ वैसा हो जाए जैसा कि स्वर्ग में है।
गतिशील दिव्य आदेश (dynamic decree)ईश्वर के समक्ष उसकी स्तुति और याचिका के रूप में अर्पण करते हैं। इसके शब्द उच्चारित शब्दों (spoken Word) के विज्ञान पर आधारित हैं जो हमें बहुत कुछ उपलब्ध करा सकते हैं।[2] गतिशील दिव्य आदेश वह साधन है जिसके द्वारा प्रार्थनाकर्ता ईश्वर के वचन को समझता है - तब वह सृष्टिकर्ता की मूल आज्ञा "अब यहाँ प्रकाश हो: और वह जगह प्रकाशित हो गई” (Let there be light: and there was light). [3]
मन में विश्वास और आशा रखकर, प्रेम और आनंद के साथ बोली गई गतिशील दिव्य आदेश (dynamic decree) से प्रार्थनाकर्ता ईश्वर के वचनो को रोपित (engraft) करता है और पवित्र आत्मा की पवित्र अग्नि के द्वारा नकरात्मक कर्मो के रूपांतरण (transmutation) का अनुभव करता है।[4] इससे उसके सारे दुष्कर्म, रोग और मृत्यु पवित्र अग्नि में नष्ट हो जाते हैं और जीवात्मा अपनी आत्मा संरक्षित रहती है।
दिव्य आदेश (decree) व्यक्तिगत रूपांतरण, आत्म-ज्ञान और ग्रहों के रूपांतर के लिए रसायन शास्त्रियों का साधन भी है और तरीक़ा भी।
दिव्य आदेश (decree) के भाग
दिव्य आदेश (decree) छोटा या बड़ा हो सकता है और अकसर प्रत्येक दिव्य आदेश में एक रूपात्मक (formal) आमुख (preamble)और समापन (closing) या स्वीकृति (acceptance) के भाग होते हैं। संत जरमेन (Saint Germain) इन भागों के उद्देश्यों की व्याख्या करते हुए कहते हैं:
साधारणतया दिव्य आदेश के तीन भाग होते हैं, हर एक भाग को ईश्वर को लिखे हुए पत्र के समान समझिये:
(१) दिव्य आदेश का अभिवादन वाला हिस्सा आह्वानात्मक है। इस भाग में प्रत्येक पुत्र और पुत्री अपने व्यक्तिगत ईश्वरीय स्वरूप (I AM Presence) से दिव्य गुरुओं और सेवकों को संबोधित करते हैं जो आध्यात्मिक पदक्रम में शामिल हैं। यह अभिवादन (दिव्य आदेश की प्रस्तावना), जब आदरपूर्वक किया जाता है, तो यह दिव्यगुरूओं को उत्तर देने के लिए बाध्य करता है। जिस तरह आपके अग्निशमन अधिकारी (firemen) आपकी पुकार को अनसुना नहीं कर सकते उसी तरह वे भी आपकी पुकार का उत्तर देने से इंकार नहीं कर सकते। जब आप प्रेमपूर्वक, अकेले में या अपने साथियों के साथ, ईश्वर का अभिवादन करते है तो आपकी दिव्य आदेश का उत्तर देने के लिए दिव्यगुरु अपनी ऊर्जा को तुरंत संलग्न (engage) करने में बाध्य हो जाते हैं, यही अभिवादन करने का उद्देश्य है।
(२) दिव्य आदेश के मुख्य भाग के शब्द आपकी इच्छाओं, और उन योग्यताओं (qualifications) को व्यक्त करते है जिन्हें आप स्वयं के लिए या अपने प्रियजनों के लिए चाहते हैं - ये प्रार्थनाएँ आपकी सामान्य प्रार्थनाओं में भी शामिल होती हैं। अपनी बाहरी चेतना के माध्यम से कहे गए शब्द अवचेतन मन (subconscious mind) और अतिचेतन (superconscious mind) या उच्च चेतना की शक्ति को जारी करने के बाद, आप निश्चिंत हो सकते हैं कि जिन दिव्यगुरुओं का आवाहन आपने किया है उनकी सर्वोच्च चेतना भी उस मांग की अभिव्यक्ति करने के लिए चिन्ताशील है।
(३) अब आप दिव्य आदेश के अंतिम भाग, उसके समापन पर आ गए हैं, ईश्वर के हृदय में अपने पत्र को मोहर (sealing) लगाने वाले हैं और जो प्रार्थना आपने आत्मा के दायरे में प्रतिबद्धता की भावना के साथ करी है उसके लिए ईश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने वाले हैं तो ईश्वर के अचूक नियमो के अनुसार आपने जो चाहा है उसे अभिव्यक्ति होना ही होगा।
जो लोग गणित में वर्ग की शक्ति को समझते हैं, वे जानते होंगे कि जब बहुत सारे व्यक्ति एक साथ ईश्वर की ऊर्जा का आह्वान करते हैं, तो केवल एक+एक+एक करके लोगों की संख्या के आधार पर यह शक्ति नहीं जोड़ी जाती बल्कि एक बहुत पुराने नियम के अनुसार इस संख्या का वर्ग निकाला जाता है। दिव्य आदेश करने वाले व्यक्तियों की संख्या को जितनी बार दिव्य आदेश किए जाते हैं उससे गुणा किया जाता है और फिर उस अंक का वर्ग निकाला जाता है।[5]
इसे भी देखिये
उच्चारित शब्द (Spoken Word)
अधिक जानकारी के लिए
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Science of the Spoken Word
Jesus and Kuthumi, Prayer and Meditation
Prayers, Meditations and Dynamic Decrees for Personal and World Transformation.
मार्क एल. प्रोफेट और एलिजाबेथ क्लेयर प्रोफेट की किताब द साइंस ऑफ द स्पोकन वर्ड: व्हाई एंड हाउ टू डिक्री इफेक्टिवली (The Science of the Spoken Word: Why and How to Decree Effectively) (ऑडियो एल्बम)
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Science of the Spoken Word, पांचवा अध्याय.