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महिला दिव्यदूत पोर्शिया

न्याय, स्वतंत्रता, दया, क्षमा, रसायन विद्या और पवित्र अनुष्ठान की सातवीं किरण पर भगवान की हजारों वर्षों की सेवा करने के बाद पोर्शिया ने दैवीय न्याय के रूप में भगवान की लौ और ईश्वरीय चेतना (God consciousness) की प्राप्ति की। इसलिए उन्हें न्याय या अवसर की देवी (Goddess of Justice or Opportunity) कहा जाता है।

कार्मिक बोर्ड (Karmic Board) पर सेवा और मंत्रालय की छठी किरण का प्रतिनिधित्व करते हुए, पोर्शिया पृथ्वीवासियों की ओर से न्याय और अवसर की लौ हमें देती हैं। तुला राशि के पदक्रम के साथ सेवा करते हुए (देखें बारह सौर पदक्रम) (Twelve solar hierarchies), वह मानव जाति को सिखाती हैं कि किस प्रकार चार निचले शरीरों (four lower bodies) में प्रवीणता अर्जित करके उच्च चेतना को संतुलित किया जाता है। चूँकि न्याय विचार और भावना के बीच का निर्णायक बिंदु है, पोर्शिया ईश्वर के पुरुष और स्त्री रूप की रचनात्मक ध्रुवता का संतुलन हैं।

पोर्शिया संत जर्मेन (Saint Germain) की समरूप जोड़ी (twin flame) और दिव्य सहायिका हैं। संत जर्मेन सातवीं किरण के चौहान (chohan) हैं। १ मई १९५४ को उन्हें आधिकारिक तौर पर सातवीं व्यवस्था के निर्देशक घोषित किया गया। ईश्वर ने दो-हजार साल की इस अवधि को पृथ्वी पर स्वर्ण युग स्थापित करने का समय निर्धारित किया है। दो-हज़ार साल की इस अवधि को कुंभ काल (Aquarian age) का नाम दिया गया है। यह समय पृथ्वी के लिए नया और स्थायी स्वर्ण युग स्थापित करने का समय है।

पिछले युगों में उसकी सेवा

सुंदरता, पूर्णता और प्रचुरता के पिछले युगों में, न्याय का बोलबाला था। इससे पहले कि समय बदल और पृथ्वी पर कलह शुरू हो, पोर्शिया प्रकाश में विलीन हो गयीं। जब मानव जाति की न्याय की भावना विकृत हो गई, और पोर्शिया द्वारा किए गए सभी कार्यों में असंतुलन पैदा हो गया, तो यहाँ से जाने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था, इसीलिए वे शान्ति से स्वयं को समेट कर उच्च आध्यात्मिक स्तर पर चलीं गयीं।ईश्वर के नियमों के अनुसार दिव्यगुरू कभी भी मानवजाति के कार्यों में स्वतः हस्तक्षेप नहीं करते। जब मनुष्य दिव्य आदेश कर के उनका आह्वान करते हैं, तभी वे आते हैं।

इन युगों के दौरान, संत जर्मेन पृथ्वी पर अवतरित होते रहे परन्तु पोर्शिया प्रकाश के सप्तकों में ही रहीं। १६८४ में राकोजी मेंशन (Rakoczy Mansion) से अपने उत्थान के बाद, संत जर्मेन ने भी अपनी समरूप जोड़ी पोर्शिया के तरह प्रकाश के सप्तक में प्रवेश कर लिया। संत जर्मेन ने द मर्चेंट ऑफ वेनिस

(The Merchant of Venice) में पोर्शिया का नाम अंकित किया था। 

इसके कुछ ही समय बाद, कर्मों के स्वामी (Lords of Karma) ने सैंक्टस जर्मनस को पृथ्वी पर रहते हुए आध्यात्मिक रूप से उन्नत प्राणी के रूप में कार्य करने की छूट दे दी। अठारहवीं सदी में यूरोप की सभी अदालतों में उन्हें कॉम्टे डी सेंट जर्मेन (Comte de Saint Germain) के नाम से जाना जाता था। उनकी निपुणता का वर्णन फ्रांस के न्यायालय में कार्यरत गैब्रिएल पॉलीन डी'अधेमर ने अपनी डायरियों में किया है। अधेमर उन्हें करीब पचास वर्षों से जानतीं थीं, संत जर्मेन अक्सर उनके न्यायालय में आते थे। अधेमर ने फ्रांस के न्यायालय, और लुई XV और लुई XVI की अदालतों में संत जर्मेन के दौरों का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है की संत जर्मेन एक दीप्तिमान चेहरे के स्वामी थे - पचास वर्षों की उनकी पहचान के दौरान, संत जर्मेन कभी भी चालीस वर्ष से ज़्यादा की उम्र के नहीं दिखे। दुर्भाग्यवश वे फ्रांस के न्यायालय और यूरोप के अन्य नेताओं का ध्यान आकर्षित करने में असफल रहे।

मैडम डी'अधेमर ने सेंट जर्मेन को आखिरी बार १६ अक्टूबर, १७९३ को फ्रांस के रानी मैरी एंटोनेट के मृत्युदंड के समय प्लेस डे ला रेवोल्यूशन में देखा था। वे पोर्शिया के साथ गॉडेस ऑफ़ लिबर्टी की मूर्ति के नीचे खड़े थे। रानी की फांसी के तुरंत बाद, वे मैरी एंटोनेट की जीवात्मा को भारत में स्थित केव ऑफ़ लाइट (Cave of Light) - जो कि महान दिव्य निर्देशक (Great Divine Director) का आश्रय स्थल है - में ले गए। इस घटना के तीन महीने बाद पोर्शिया प्रकाश के सप्तक में वापस चली गईं, जहां वह १९३९ तक निर्वाण में रहीं। १९३९ में संयुक्त राज्य अमेरिका में संत जर्मेन को उनके कार्यों में सहायता करने के लिए पोर्शिया वापिस आयीं।

अपने निर्वाण के दौरान पोर्शिया ने संत जर्मेन का बाहरी दुनिया की गतिविधियों के लिए संतुलन बनाए रखा और उनके यूरोपीय अनुभव के अभिलेखों और कष्टों को भी दूर किया। पोर्शिया के निर्वाण में प्रवेश करने के कुछ समय बाद संत जर्मेन संयुक्त राज्य यूरोप की स्थापना करने के लिए नेपोलियन को प्रायोजित करने के लिए यूरोप लौट आए। परन्तु कुछ समय बाद जब उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि नेपोलियन ईश्वरीय शक्ति का उपयोग स्वयं की सत्ता को बढ़ाने के लिए करेगा तो वे उससे अलग हो गए - ऐसा १८१० में हुआ। तभी से संत जर्मेन केव ऑफ़ लाइट में रह रहे हैं और वहीँ से अपनी सेनाओं को पुनः संगठित कर रहें हैं। समय-समय पर उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ गतिविधियों को भी प्रायोजित किया और अपना कुछ समय निर्वाण में भी बिताया है।

न्याय की देवी

आज उनकी सेवा

इस समय, पृथ्वीवासियों ने स्वर्ण युग (golden age) की मांग की है; उन्होंने कहा है कि स्वर्ण युग के तैयारी हेतु पृथ्वी पर न्याय को संतुलित कर देविय न्याय स्थापित किया जाए। इन प्रार्थनाओं को सुनकर ९ अप्रैल, १९३९ को पोर्शिया ने अपने उत्थान के बाद पहली बार कुछ कहा। वह कभी-कभार ही बोलती हैं, लेकिन जब भी वह बोलती हैं तो पूर्ण संतुलन बनाने का उनका दिव्य गुण (जो तराजू के द्वारा दिखाया जाता है) उन सभी के बल क्षेत्र में स्थापित हो जाता है जो इन्हें सुनते हैं।

न्याय और अनुग्रह का संतुलन

पोर्शिया सातवीं किरण के दो गुणों, न्याय और अनुग्रह, के संतुलन की बात करती हैं:

मनुष्यों पर अक्सर उनके अपने कर्मों के अनुपात में संकट आते हैं। एक छोटे पक्षी की तरह उन्हें लगता है कि वे बाहरी परिस्थितियों की चपेट में हैं, पर वे यह नहीं जानते कि जीवन का उद्देश्य उन्हें पवित्र न्याय द्वारा ईश्वर के हृदय में पुनर्स्थापित करना है।

अज्ञानतावश मनुष्य डरते हैं, उन्हें न्याय में विश्वास रखना चाहिए और इससे ढाढ़स भी बांधना चाहिए। यद्यपि मैं न्याय की देवी के रूप में जानी जाती हूं, अनुकम्पा मेरे साथ रहती है। अनुकम्पा की देवी कुआन यिन (Kuan Yin) सदा मेरे साथ चलती है और अपनी चमक भी बिखेरती हैं।

न्याय पर दया की मुहर लगी होती है। और यदि आप भी वैसा ही करते हैं जैसा मैं करती हूं तो जब भी आप अपने अधीन लोगों को न्याय देने का प्रयास करेंगे आप उनके प्रति दया भी रखेंगे। न्याय और कृपा का असंतुलन मानव जाति के नष्ट होने का कारण बनेगा। जब आप आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार कार्य करते हैं तो आप न्याय और अनुकम्पा का सही संतुलन बना पाते हैं जो की लोगों के लिए उचित है।[1]

तो अब प्रश्न यह है कि माँ की लौ और संत जर्मेन की शक्ति के रूप में स्वतंत्रता इस युग में कानून की दया और न्याय को कैसे स्थापित करेगी? आप यह बात जान लीजिये कि न्याय और दया सातवें युग और व्यवस्था की स्त्री किरण के सर्पदंड की पारस्परिक क्रियाएं हैं। ईश्वर की बैंगनी लौ की सातवीं किरण एक उग्र सर्पदंड है जो स्वतंत्रता की रोशनी की केंद्रीय वेदी के चारों ओर अल्फा और ओमेगा की माला के रूप में दया और न्याय की बुनाई करता है। [2]

आश्रयस्थल

मुख्य लेख: पोर्शिया का आश्रय स्थल

पोर्शिया का आश्रय स्थल घाना के आकाशीय स्तर पर है। उनका मूल राग फ्रांज़ लिस्ज़्ट (Franz Liszt) के "राकोज़ी मार्च" (Rakoczy March) का संगीत है - इसका उपयोग करने से आप पोर्शिया को आकृष्ट कर सकते हैं।

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “Portia.”

  1. पोर्शिया, १० अक्टूबर, १९६४।
  2. पोर्शिया, "द मर्सी एंड जस्टिस ऑफ द लॉ इन द मदर फ्लेम ऑफ़ फ्रीडम, १ जुलाई १९७८।