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श्याम वर्ग के लोग नीले रंग और वायलेट रंग की किरणों को दर्शाते हैं। अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताओं में लोगों की त्वचा के रंग में नीला और वायलेट रंग झलकता था। ये रंग परमात्मा के पिता और माता स्वरुप [[Special:MyLanguage/Alpha and Omega|अल्फा और ओमेगा]] (Alpha and Omega) से आते है। नीला रंग प्रथम किरण का होता है तथा वायलेट सातवीं किरण का।  
श्याम वर्ग के लोग नीले रंग और वायलेट रंग की किरणों को दर्शाते हैं। अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताओं में लोगों की त्वचा के रंग में नीला और वायलेट रंग झलकता था। ये रंग परमात्मा के पिता और माता स्वरुप [[Special:MyLanguage/Alpha and Omega|अल्फा और ओमेगा]] (Alpha and Omega) से आते है। नीला रंग प्रथम किरण का होता है तथा वायलेट सातवीं किरण का।  


जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष किरण कार्य करता है, उसी प्रकार अलग -अलग राष्ट्रों की भी अपनी एक किरण होती है। प्रत्येक राष्ट्र को ईश्वर द्वारा निश्चित नियति को पूरा करने के लिए विशिष्ट गुण दिए गए हैं। श्याम वर्ण के लोगों को ईश्वर ने पृथ्वी पर इश्वरिय शक्ति पर महारत हासिल करने भेजा था - ईश्वरीय इच्छा और विश्वास (नीली किरण) तथा ईश्वरीय स्वतंत्रता, न्याय और करुणा ([[Special:MyLanguage/violet ray|वायलेट किरण]])।
जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष किरण कार्य करता है, उसी प्रकार अलग -अलग राष्ट्रों की भी अपनी एक किरण होती है। प्रत्येक राष्ट्र को ईश्वर द्वारा निश्चित नियति को पूरा करने के लिए विशिष्ट गुण दिए गए हैं। ईश्वरीय शक्ति, इच्छा और विश्वास जो नीली किरण के गुण हैं और  ईश्वरीय एकता, न्याय और करुणा जो [[Special:MyLanguage/violet ray|वायलेट किरण]] के गुण हैं इन दोनों किरणों पर निपुणता  हासिल करने श्याम वर्ग  के लोगों  ईश्वर ने पृथ्वी लोक पर भेजा है।


[[Special:MyLanguage/Garden of Eden|गार्डन ऑफ़ ईडन]], से बाहर निकलने के बाद जैसे, जैसे समय बदलता गया, मनुष्य धीरे, धीरे अपने ईश्वरीय गुण खोता चला गया और इसके साथ ही उसके त्वचा के रंग में भी बदलाव आना शुरू हो गय।  अब पहले जैसे शुद्ध रंग न ही मनुष्य की त्वचा में दीखते हैं, न ही उसके आभामंडल में। [[Special:MyLanguage/fallen one|नकारात्मक शक्तियों]] (Fallen Ones) ने मनुष्यों को आपस में लड़ना सीखा दिया है। विभिन्न वर्णों के लोग अक्सर आपस में झगड़ते रहते हैं, एक दुसरे पर हुक्म चलाने की कोशिश में रहते हैं, एक दुसरे को अपना गुलाम बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसके फलस्वरूप मनुष्यों की आपसी एकता टूट गयी है और उनके बीच बहने वाली प्रेम की धारा भी बाधित हो गई है।
[[Special:MyLanguage/Garden of Eden|गार्डन ऑफ़ ईडन]], से बाहर निकलने के बाद जैसे, जैसे समय बदलता गया, मनुष्य धीरे, धीरे अपने ईश्वरीय गुण खोता चला गया और इसके साथ ही उसके त्वचा के रंग में भी बदलाव आना शुरू हो गय।  अब पहले जैसे शुद्ध रंग न ही मनुष्य की त्वचा में दीखते हैं, न ही उसके आभामंडल में। [[Special:MyLanguage/fallen one|नकारात्मक शक्तियों]] (Fallen Ones) ने मनुष्यों को आपस में लड़ना सीखा दिया है। विभिन्न वर्णों के लोग अक्सर आपस में झगड़ते रहते हैं, एक दुसरे पर हुक्म चलाने की कोशिश में रहते हैं, एक दुसरे को अपना गुलाम बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसके फलस्वरूप मनुष्यों की आपसी एकता टूट गयी है और उनके बीच बहने वाली प्रेम की धारा भी बाधित हो गई है।

Revision as of 09:28, 16 October 2023

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महादेवदूत आफरा

श्याम वर्ग के लोगों में से सर्व प्रथम जिस महापुरुष ने मोक्ष प्राप्त किया था, उनका नाम आफरा था। सदियों पहले आफरा ने ईश्वर से कहा था की वे अपना नाम और प्रसिद्धि ईश्वर को समर्पित कर किसी एक महाद्वीप और वहां रहने वाले लोगों का संरक्षण करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा था की वे सिर्फ भाई के नाम से जाने जाना चाहते हैं। इसके बाद ही उनका नाम आफरा पड़ा। लैटिन में फ्रेटर का अर्थ भाई होता है। अफ्रीका महाद्वीप का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा है, और ये इस महाद्वीप के संरक्षक भी हैं।

अफ्रीका का प्राचीन इतिहास

प्राचीन समय में जब अफ्रीका लेमूरिआ (Lemuria) नामक महाद्वीप का हिस्सा था तब वहां पर सतयुग था। उस समय लोग ग्रेट डिवाइन डायरेक्टर (Great Divine Director) के महान कारण शरीर (Causal Body) के प्रकाश से उत्पन्न हुए थे। ग्रेट डिवाइन डायरेक्टर आज भी अफ्रीका महाद्वीप की दिव्य योजना के संरक्षक हैं यंहा तक कि वह अमेरिका में आफरा के वंशजो की दिव्य योजना का भी संरक्षक करते हैं।

श्याम वर्ग के बहुत सारे लोगों ने मोक्ष प्राप्त किया है, पर अगर हम आध्यात्मिक द्रष्टिकोण से देखें तो पाएंगे की वर्गों में कोई भेद नहीं होता - चाहे श्वेत हो या श्याम। स्वर्ग लोक में जो गुरु हैं वे इस बात से नहीं जाने जाते की पृथ्वी लोक पर उनका क्या वर्ग या धर्म था। पृथ्वी लोक पर सभी वर्गों के प्राणी ईश्वर की ही उत्पत्ति हैं और प्रत्येक प्राणी सात किरणों में से किसी एक किरण के मार्ग पर चलता है। सातों किरणें दीक्षा के मार्ग की तरफ ही जाती हैं।

श्वेत वर्ग के लोग तीन रंगों की ज्योति पर निपुणता प्राप्त करने पृथ्वी पर आते हैं, पीला रंग जो समझदारी, गुलाबी रंग जो प्रेम और सफ़ेद रंग जो निर्मलता को दर्शाते हैं। इसी वजह से इनकी त्वचा का रंग इन तीनो रंगो का मिश्रण होता है। इन लोगों का उदेश्य इन गुणों द्वारा आत्म-निपुणता हासिल करना है। पीली वर्ग के लोग - चीन के निवासी - ज्ञान लोगों में बांटते हैं, जिनकी त्वचा लाल रंग की होती है उनका उद्देश्य ईश्वरीय प्रेम की गुलाबी लौ को बढ़ाना है।

श्याम वर्ग के लोग नीले रंग और वायलेट रंग की किरणों को दर्शाते हैं। अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताओं में लोगों की त्वचा के रंग में नीला और वायलेट रंग झलकता था। ये रंग परमात्मा के पिता और माता स्वरुप अल्फा और ओमेगा (Alpha and Omega) से आते है। नीला रंग प्रथम किरण का होता है तथा वायलेट सातवीं किरण का।

जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष किरण कार्य करता है, उसी प्रकार अलग -अलग राष्ट्रों की भी अपनी एक किरण होती है। प्रत्येक राष्ट्र को ईश्वर द्वारा निश्चित नियति को पूरा करने के लिए विशिष्ट गुण दिए गए हैं। ईश्वरीय शक्ति, इच्छा और विश्वास जो नीली किरण के गुण हैं और ईश्वरीय एकता, न्याय और करुणा जो वायलेट किरण के गुण हैं इन दोनों किरणों पर निपुणता हासिल करने श्याम वर्ग के लोगों ईश्वर ने पृथ्वी लोक पर भेजा है।

गार्डन ऑफ़ ईडन, से बाहर निकलने के बाद जैसे, जैसे समय बदलता गया, मनुष्य धीरे, धीरे अपने ईश्वरीय गुण खोता चला गया और इसके साथ ही उसके त्वचा के रंग में भी बदलाव आना शुरू हो गय। अब पहले जैसे शुद्ध रंग न ही मनुष्य की त्वचा में दीखते हैं, न ही उसके आभामंडल में। नकारात्मक शक्तियों (Fallen Ones) ने मनुष्यों को आपस में लड़ना सीखा दिया है। विभिन्न वर्णों के लोग अक्सर आपस में झगड़ते रहते हैं, एक दुसरे पर हुक्म चलाने की कोशिश में रहते हैं, एक दुसरे को अपना गुलाम बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसके फलस्वरूप मनुष्यों की आपसी एकता टूट गयी है और उनके बीच बहने वाली प्रेम की धारा भी बाधित हो गई है।

अफरा के अफ़्रीकी अवतार

अफरा पांच लाख साल पहले अफ्रीका में रहते थे - ये वह समय था जब अफ़्रीकी सभ्यता एक दोराहे पर खड़ी थी, और नकारात्मक शकितयों नकारात्मक शकितयों ने मनुष्यों के बीच वैर भाव उतपन्न कर दिए थे। तमाम बुरी आत्माएं पूरी शक्ति से नीले और वायलेट कुल के मनुष्यों को नष्ट करने में लगीं थीं। इन लोगों ने सभी पवित्र कलाओं और संस्कारों का रूप बिगाड़ दिया था और बड़ी संख्या में लोग जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और काला जादू पर निर्भर करने लगे थे। फलस्वरूप लोग एक दुसरे से घृणा करने लगे, अंधविश्वास ने उनके मन में घर कर लिया और चारों तरफ सत्ता पाने के लिए होड़ मच गई।

जैसे जैसे लोगों ने अपने अंदर के ईश्वर (God Presence) पर से अपना ध्यान हटाना शुरू किया, वे और अधिक मात्रा में बुरी शक्तियों के प्रभाव में आ गए। विभिन्न जनजातियों के लोग लड़-झगड़ कर एक दुसरे से अलग हो गए। नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से मनुष्य अपनी आध्यात्मिक शक्ति भी खोने लगा तथा उसका मन अंधेरों में घिर गया। इस तरह सभी मनुष्य बुरी ताकतों के गुलाम बनकर रह गए।

लोगों की ऐसी हालत से दुखी होकर, उनका उद्धार करने के उद्देश्य से, अफरा ने मनुष्य के रूप में अवतरित होने का निश्चय किया। सबसे पहले उन्होंने मनुष्यों के सबसे कमज़ोर पक्ष पता लगाया - यह कमज़ोर पक्ष था भाईचारे की भावना का ख़त्म होना। रूपकात्मक ढंग से कहें तो उस वक्त के अधिकतर लोग एबल के बजाय केन के अनुयायी थे। जब भगवान ने लोगों से पूछा कि क्या वे अपने दोस्तों, अपने समाज के लिए अपने जीवन का त्याग कर सकते हैं, तो उनका उत्तर वही था जो केन का था: "क्या में अपने भाई का रखवाला हूँ? ”[1] जो भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर 'ना' में देता है वह अपने अहम् का शिकार है। ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने भाई का रखवाला नहीं हो सकता, ऐसे व्यक्ति के अंदर दिव्य ज्योति बुझ जाती है।

अफरा जानते थे कि अधिकाँश लोगों ने अपने अंदर की दिव्य ज्योति (Threefold Flame) को खो दिया है। उसी तरह जिस तरह आज भी बहुत सारे लोग क्रोध करने की वजह से अपनी इस दिव्य ज्योति को खो रहे हैं। अफरा जानते थे की इस दिव्य ज्योति को वापिस पाने के लिए मनुष्यों को भाईचारे के रास्ते पर चलना होगा, उन्हें एक दुसरे का ख्याल रखना होगा, देखभाल करनी होगी। और ये बात स्वयं सबका भाई बनकर ही सिखाई जा सकती है। दुःख की बात ये है, केवल इसी बात के लिए बाकी सभी लोगों ने उनको सूली पर चढ़ा दिय। अफरा उन लोगों के बीच जीसस क्राइस्ट के समकक्ष थे, पर वो लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। लोग सत्ता के लालच में अंधे हो गए थे।

उनकी आज की सेवा

१९७६ में आरोही गुरु अफरा ने अक्रा, घाना में “The Powers and Perils of Nationhood” पर एक भाषण दिया था जिसमे उन्होंने एकता की शक्ति पर ज़ोर देते हुए कहा था की हमें अपने सभी आपसी मतभेद समाप्त कर देने चाहिए, इसी में सबकी भलाई है। उन्होंने कहा था:

हम सभी आपस में भाई हैं क्योंकि हम सब एक ही माता पिता (ईश्वर) की संतान हैं। मैं आपका भाई हूँ, आपका स्वामी या मालिक नहीं। मैं भी आपके रास्ते पर ही चल रहा हूँ। स्वतंत्रता पाने की आपकी इच्छा मैं भी रखता हूँ। जब भी आप किसी मुसीबत में होते हैं, मैं आपके साथ होता हूँ। जब आप ईश्वर से न्याय की प्रार्थना करते हैं, मैं तब भी आपके साथ होता हूँ।

सैंकड़ों सालों से मैं आपके दिल में हूँ, मैं तब भी आपके साथ था जब आप बाहरी और अंदरूनी ताकतों द्वारा उत्पीड़ित हो रहे थे।

अफरा के लोगों के पास इतिहास और अन्य सभ्यताओं से सीखने का एक बहुमूल्य मौका है। जब समाज अत्यधिक भौतिकवादी हो जाता है, मनुष्यों के पास केवल दो रास्तें बचते हैं: या तो वे भौतिकीकरण में लुप्त होकर खत्म हो जाएँ या फिर आध्यात्मिक रास्ता अपनाएँ और अपनी आत्मा को जगाएं।[2]

एक अन्य सन्देश में संत जर्मैन अफरा से कहते हैं की वो अमरीका में रहने वाले अफरा के वंशजों को निम्लिखित बात कहें:

अमरीका में रहने वाले सभी श्याम वर्ण के लोग अपनी मौजूदा स्तिथी से ऊपर उठ सकते हैं, स्वतंत्रता से जी सकते हैं। मगर यह तभी हो सकता हैं जब वे ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलें, स्वयं को ईश्वर के हवाले कर दें, समाज में सब के प्रति प्रेम और सौहार्द का भाव रखें और साथ ही ईश्वर से प्रार्थना भी करें कि आपके अंदर और बाहर की सारी नकारात्मकता एवं अन्धकार रौशनी में परिवर्तित हो जाए।

हालांकि नागरिक अधिकारों के कुछ आंदोलनो में ब्लैक अमेरिकन लोगों को सफलता मिली, उन्हें बहुत सी असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। सफलता मिलने के कई कारण बाहरी थे। लोगों को उन से प्रेरणा लेनी चाहिए थी तथा मनन करना चाहिए था की किस तरह वे सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ सकते है। हमें सभी मनुष्यों को एक सामान समझना चाहिए, त्वचा के रंग के आधार पर भेद भाव करना उचित नहीं। हम आपको आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने का तरीका बता सकते हैं।

ब्लैक अमेरिकन ये जानते नहीं हैं पर वे आज एक दोराहे पर खड़े है। अब उनको ये तय करना है की उनका आगे का रास्ता क्या होगा - क्या वे सिर्फ भौतिक जीवन जीना चाहते हैं, अधिक पैसा कमाना चाहते हैं, दुनिया भर के ऐशो-आराम पाना चाहते हैं या फिर शांति और सुकून का जीवन जीना चाहते हैं। बहुत स्वाभाविक है की आप खुशहाल और प्रचुरता का जीवन चाहते हैं। और यह सही भी है। मुश्किल तब होती है जब आप भौतिक जीवन में इतने मग्न हो जाते हैं कि भूल जाते हैं आप एक आध्यात्मिक जीव हैं। मैं आपको कहना चाहता हूँ कि ईश्वर ने आप लोगों को चुना है।[3]

रंगभेद की समस्याओं को सुलझाने के लिए, और भाईचारे की भावना को समझने के लिए आप अफरा का आह्वाहन कर सकते हैं।

रौशनी का हमारा भाई अफरा अन्य आरोही गुरुओं की तरह अत्यंत विनम्र है। अफरा की विनम्रता की बात करते हुए, कुथुमी कहते हैं:

बहुत समय तक हम इस अद्भुत भक्ति वाली विशाल आत्मा से अनजान रहे। जब तक लोग अपनी खुद की उपलब्धियों में डूबे रहेंगे, वे हमारा हिस्सा नहीं बन सकते।[4]

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “अफरा”

  1. Gen. 4:9.
  2. Elizabeth Clare Prophet, Afra: Brother of Light, pp. 25–26.
  3. Ibid., pp. 29–30.
  4. Ibid., p. 35.