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(Created page with "यदि हमने ईश्वर की दिव्य योजना का अनुसरण किया होता तो हम प्रकृति की आत्माओं को देख पाते और उनसे मित्रता भी कर पाते। तब हमें तूफ़ानों से जूझना नहीं पड़ता। धरती हमारी फ़सलों को पानी देन...") |
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यदि हमने ईश्वर की दिव्य योजना का अनुसरण किया होता तो हम प्रकृति की आत्माओं को देख पाते और उनसे मित्रता भी कर पाते। तब हमें तूफ़ानों से जूझना नहीं पड़ता। धरती हमारी फ़सलों को पानी देने के लिए अपनी ओस छोड़ती। बारिश नहीं होती लेकिन हवा में ओस दिखाई देती। पृथ्वी पर हर जगह सही हवा में सही मात्रा में नमी होती और रेगिस्तानी स्थानों पर गुलाब खिलते। कहीं पर भी अतिवृष्टि या अनावृष्टि नहीं होती। | यदि हमने ईश्वर की दिव्य योजना का अनुसरण किया होता तो हम प्रकृति की आत्माओं को देख पाते और उनसे मित्रता भी कर पाते। तब हमें तूफ़ानों से जूझना नहीं पड़ता। धरती हमारी फ़सलों को पानी देने के लिए अपनी ओस छोड़ती। बारिश नहीं होती लेकिन हवा में ओस दिखाई देती। पृथ्वी पर हर जगह सही हवा में सही मात्रा में नमी होती और रेगिस्तानी स्थानों पर गुलाब खिलते। कहीं पर भी अतिवृष्टि या अनावृष्टि नहीं होती। |
Revision as of 17:07, 28 January 2024
यदि हमने ईश्वर की दिव्य योजना का अनुसरण किया होता तो हम प्रकृति की आत्माओं को देख पाते और उनसे मित्रता भी कर पाते। तब हमें तूफ़ानों से जूझना नहीं पड़ता। धरती हमारी फ़सलों को पानी देने के लिए अपनी ओस छोड़ती। बारिश नहीं होती लेकिन हवा में ओस दिखाई देती। पृथ्वी पर हर जगह सही हवा में सही मात्रा में नमी होती और रेगिस्तानी स्थानों पर गुलाब खिलते। कहीं पर भी अतिवृष्टि या अनावृष्टि नहीं होती।