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सुंदरता, पूर्णता और प्रचुरता के पिछले युगों में, न्याय का अधिकतम प्रभाव था। इस से पहले पृथ्वी पर कलह का आरम्भं हो, पोर्शिया प्रकाश में विलीन हो गयीं। जब मानव जाति की न्याय की भावना विकृत हो गई, और पोर्शिया द्वारा किए गए सभी कार्यों में असंतुलन पैदा हो गया, तो यहाँ से जाने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था, इसीलिए वे शान्ति से स्वयं को समेट कर उच्च आध्यात्मिक स्तर पर चलीं गयीं।ईश्वर के नियमों के अनुसार दिव्यगुरू कभी भी मानवजाति के कार्यों में स्वतः हस्तक्षेप नहीं करते। जब मनुष्य दिव्य आदेश कर के उनका आह्वान करते हैं, तभी वे आते हैं।
सुंदरता, पूर्णता और प्रचुरता के पिछले युगों में, न्याय का अधिकतम प्रभाव था। इस से पहले पृथ्वी पर कलह का आरम्भं हो, पोर्शिया प्रकाश में आध्यात्मिक उत्थान के द्वारा विलीन हो गयीं। जब मानव जाति की न्याय की भावना विकृत हो गई, और पोर्शिया द्वारा किए गए सभी कार्यों में असंतुलन पैदा हो गया, तो यहाँ से जाने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था, इसीलिए वे शान्ति से स्वयं को समेट कर उच्च आध्यात्मिक स्तर पर चलीं गयीं।ईश्वर के नियमों के अनुसार दिव्यगुरू कभी भी मानवजाति के कार्यों में स्वतः हस्तक्षेप नहीं करते। जब मनुष्य दिव्य आदेश कर के उनका आह्वान करते हैं, तभी वे आते हैं।

Revision as of 19:57, 11 September 2024

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Message definition (Portia)
In past ages of beauty, perfection and abundance, justice reigned supreme. Before discord began to manifest upon the earth, Portia made her ascension in the light. When mankind’s sense of justice became warped, thus causing an imbalance in all she undertook, she could but fold her mantle about her and remain in the Great Silence (in higher realms of consciousness), for the ascended masters never interfere with the doings of men unless invoked by their decree as it manifests as thought, word and deed.

सुंदरता, पूर्णता और प्रचुरता के पिछले युगों में, न्याय का अधिकतम प्रभाव था। इस से पहले पृथ्वी पर कलह का आरम्भं हो, पोर्शिया प्रकाश में आध्यात्मिक उत्थान के द्वारा विलीन हो गयीं। जब मानव जाति की न्याय की भावना विकृत हो गई, और पोर्शिया द्वारा किए गए सभी कार्यों में असंतुलन पैदा हो गया, तो यहाँ से जाने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था, इसीलिए वे शान्ति से स्वयं को समेट कर उच्च आध्यात्मिक स्तर पर चलीं गयीं।ईश्वर के नियमों के अनुसार दिव्यगुरू कभी भी मानवजाति के कार्यों में स्वतः हस्तक्षेप नहीं करते। जब मनुष्य दिव्य आदेश कर के उनका आह्वान करते हैं, तभी वे आते हैं।