Translations:Kuthumi/34/hi
मणिपुर चक्र के बिंदु पर आरेखित, शरीर के निचले भाग की ओर सर्पिल गति से जाते हुए मनुष्य के सब नकारात्मक कर्म पैरों के नीचे जाकर इकट्ठे होते हैं, जहाँ यह एक केतली का आकार ले लेते हैं। अवचेतन और अचेतन मन का यह क्षेत्र सभी पूर्व जन्मों के सभी अपरिवर्तित कर्मों का अभिलेख रखता है। इस अपरिवर्तित ऊर्जा के भंवर के मध्य में मनुष्य की स्वयं-विरोधी चेतना स्थित होती है, जिसका समाप्त होना ईश्वरत्व प्राप्त करने के लिए ज़रूरी है।