आत्मिक चेतना का शत्रु
संज्ञा. जब यह बड़े अक्षरों में लिखा जाता है तब इसका अर्थ होता है कि पूर्ण रूप से दुष्टता का अवतार। सांसारिक दहलीज़ पर रहने वाला दुष्ट (dweller-on-the-threshold)। "बच्चो, आपने सुना होगा कि आध्यात्मिक चेतना का शत्रु अंतिम दौर (time) में आएगा, इस दौर में भीं इस प्रकार के अनेक आत्मिक शत्रु पृथ्वी पर हैं, इस से हम यह जान पाते हैं कि यह अंतिम दौर है।”[1]
यह शब्द लूसिफ़र (Lucifer), शैतान (Satan),वॉचर (Watcher), नेफिलिम (Nephilim) और ऐसे ही अन्य पथभ्रष्ट देवदूत (fallen angel) जो[2]अच्छाई के विरुद्ध खड़े हैं इनके लिए भी उपयुक्त है। ईश्वर के विश्वासघाती इन लोगों ने नकारात्मक शक्तियों के प्रति निष्ठावान रहने की शपथ ली है। इन्होंने ये प्रण किया है कि वे ईश्वर के अवतारों, सिद्ध पुरषों और जिज्ञासु का नाश करेंगे।
छोटे अक्षरों में जब यह लिखा जाता है तो ये ईसा मसीह और आत्मिक चेतना के विरोधी व्यक्ति या शक्तियों के बारे में बताता है।
विशेषण आत्मिक चेतना के शत्रुओं में ऐसे लक्षण होते हैं जो ईश्वर के प्रति विरोध को दिखाते हैं, ये मनुष्यों की भगवान् होने की क्षमता को नहीं मानते और विभिन्न विकृतियों द्वारा जीवात्माओं को नष्ट करते हैं।
आत्मिक चेतना का तृतीय शत्रु
नोस्ट्राडेमस (Nostradamus) ने आने वाले समय में चेतना के तीन शत्रुओं का ज़िक्र किया था: अनुवादकों के अनुसार इनमे से पहले का नाम नेपोलीयन (Napoleon) और दूसरे का नाम हिटलर (Hitler) है। ४ अप्रैल १९९७ को एल मोरया (El Morya) ने कहा था:
आप ईश्वर से प्रार्थना कीजिये कि वे आत्मिक चेतना के तीसरे शत्रु का नाश करें। ऐसे लोग और उनके सभी साथियों को रोकना अत्यंत आवश्यक है। गलत मनुष्य और गलत सोच दोनों ही आत्मिक चेतना के शत्रु हैं। ये वहां पनपते हैं जहां नैतिक मूल्यों की कमी होती है, इंसान निर्बल होता है तथा समाज टूटा हुआ होता है।[3]
अधिक जानकारी के लिए
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of Christ or Antichrist
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.
I John 2:18, 22; 4:3; II John 7; Gen. 6:1–7; Jude 6.