दिव्य योजना

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जीवात्मा में स्थित ईश्वरीय लौ के वैयक्तिकरण के लिए ईश्वर की एक योजना है जो शुरुआत में - जब ईश्वरीय स्वरुप पर जीवन की रूपरेखा अंकित की गई थी - तब बनायी गयी थी। यह सभी जन्मों को एक धागे में पिरोती है। यह दिव्य योजना मानव की स्वतंत्र इच्छा की अभिव्यक्ति की सीमा निर्धारित करती है।

जैसे ओक के फल का वृक्ष बनना तय है, वैसे ही प्रत्येक जीवात्मा को उसकी पूर्णता का एहसास होना पूर्वनिश्चित है - ये कार्य जीवात्मा अपनी स्वतंत्र इच्छा के सामर्थ्य से जीवन के वृक्ष - ईश्वरीय स्वरुप और कारक शरीर - द्वारा हासिल करती है। वह सामर्थ्य क्या है और इस जीवन में इसकी प्राप्ति कैसे की जा सकती है, यह ईश्वर को मालूम है। इसे आत्मिक चेतना, ईश्वरीय स्वरुप, और महान दिव्य निर्देशक (गणेश जी) के माध्यम से बाहरी चेतना में जारी किया जा सकता है।

२६ फ़रवरी १९७६ को, लैनेलो ने कहा था:

Let us trust in the Lord and in his plan.... With joy, then, look to each today and each tomorrow for the unveiling of a facet of the divine plan. But do not demand to see more than you ought to see; for in that seeing, you might conceive that God is a God of predestination and that you do not have to earn the light, the grace. And thereby you might find yourself lacking in that ultimate determination, that striving for perfection, that preparation for the last quarter mile of the race when all of your strength and your wind and your love and your heart must be put into the final thrust for the victory ... of your ascension.

Sources

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

Pearls of Wisdom, vol. 35, no. 17.

Pearls of Wisdom, vol. 45, no. 47.