ब्रह्मांडीय चेतना
(१) ईश्वर की स्वयं के बारे में जानकारी कि वह ब्रह्माण्ड का एक हिस्सा भी है तथा संपूर्ण ब्रह्माण्ड भी।
(२) मनुष्य की स्वयं के बारे में जागरूकता, जैसे वह रहता है, व्यवहार करता है, और स्वयं को ब्रह्मांडीय आत्म-जागरूकता और उच्च चेतना के क्षेत्र में चारों ओर से घिरा हुआ पाता है। वह मनुष्यआत्म-जागरूकता में स्वयं को आत्म-साक्षात्कार में सक्षम पाता है। उसमे ब्रह्मांडीय चक्रों (cycles) मे निपुणता, ब्रह्मांडीय आयामों में ईश्वर के एक अंश के रूप में जागरूकता, ब्रह्मांडीय चेतना के माध्यम से दीक्षा की प्राप्ति के गुण उसके साक्षी हैं।
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स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.