कुथुमी

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Portrait of Kuthumi, wearing a brown robe and a fur hat
कुथुमी

दिव्यगुरु कुथुमी पहले दूसरी किरण के चौहान थे। अब ये विश्व शिक्षक ईसा मसीह के कार्यालय में कार्यरत हैं।

ये ब्रदर्स ऑफ द गोल्डन रोब के प्रधानाध्यापक हैं और ज्ञान की किरण पर मौजूद छात्रों को ध्यान की कला और शब्द के विज्ञान में प्रशिक्षित करते हैं ताकि वे अपने चित्त, जीवात्मा के मनोवैज्ञानिक बन सकें।

अवतार

थुटमोस III

फैरो थुटमोस III (१५६७ सी.बी) को सबसे महान ईश्वरदूत और पुजारी माना जाता है। ये कला के पारखी एवं संरक्षक थे और मिस्र साम्राज्य के निर्माण का श्रेय भी इनको ही जाता है। इन्होनें मध्य पूर्व के अधिकांश हिस्से को मिस्र साम्राज्य में शामिल कर इसका विस्तार किया था। माउंट कार्मेल के पास के मैदान पर हुए युद्ध में इनकी जीत सबसे निर्णायक जीत थी। यहां ये लगभग ३३० विद्रोही एशियाई राजकुमारों के गठबंधन को हराने के लिए ये अपनी पूरी सेना को मेगिद्दो दर्रे के संकीर्ण मार्ग से लेकर गए थे। यह एक साहसिक कदम था जिसका सभी उच्चाधिकारियों ने विरोध किया था। परन्तु अपनी योजना के प्रति पूर्णतया आश्वस्त थुटमोस सूर्य देवता अमोन-रा के चित्र को लिए आगे बढ़ते रहे, और विजयश्री प्राप्त की।

Seated figure wearing a robe, writing in a book
द स्कूल ऑफ एथेंस से लिया गया पाइथागोरस का चित्र, राफेल (१५०९)

पाइथागोरस

छठी शताब्दी बी.सी में ये यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस थे। सेमोस द्वीप के निवासी पाइथागोरस को "गोरे बालों वाला सैमियन" भी कहा जाता था। इन्हें अपोलो का पुत्र माना जाता था। युवावस्था में एक बार जब ये ध्यान में थे तो डेमेटर (यूनान में कृषि की देवी जिन्हें धरती की माँ भी कहते हैं) ने इन्हें आतंरिक न्याय के बारे में ज्ञान दिया। इसके बाद से इस ज्ञान का वैज्ञानिक प्रमाण जानने के लिए ये अक्सर पुजारियों और विद्वानों के साथ निर्भीक रूप से चर्चा करते लगे। सत्य की खोज में ये कई स्थानों, जैसे फिलिस्तीन, अरब, और भारत गए। अंततः ये मिस्र के मंदिरों में पहुंचे जहां उन्होंने मेम्फिस के पुजारियों का विश्वास जीता तथा थेब्स नामक शहर में आइसिस (मिस्र की देवी जिन्हें दिव्य माँ भी कहते हैं) के रहस्यों को जानने शिष्यता प्राप्त की।

लगभग ५२९ बीसी के दौरान जब एशिया के एक विजेता कमबाईसिस ने मिस्र पर आक्रमण किया तो पाइथागोरस को बेबीलोन भेज दिया गया। धर्मदूत डैनियल यहाँ पर राजा के मंत्री के पद पर कार्यरत थे। यहां पर धर्मगुरुओं ने उन्हें ईश्वरीय स्वरूप के बारे में शिक्षा दी - यह शिक्षा पहले मूसा को दी गई थी। पारसी पुजारियों मैगी ने उन्हें संगीत, खगोल विज्ञान और आह्वान करने के विज्ञान के बारे में शिक्षा दी। पाइथागोरस यहाँ पर १२ साल रहे जिसके उपरान्त उन्होंने बेबीलोन छोड़ दिया और क्रोटोना में चेलों के एक ब्रदरहुड की स्थापना की। क्रोटना दक्षिणी इटली में स्थित डोरियन का एक व्यस्त बंदरगाह है। यह स्थान श्वेत महासंघ (ग्रेट वाइट ब्रदरहुड) का एक रहस्यवादी विद्यालय (मिस्ट्री स्कूल) है।

क्रोटोना में कुछ चुने गए पुरुषों और स्त्रियों ने सार्वभौमिक कानून की गणितीय अभिव्यक्ति पर आधारित एक दर्शन का अनुसरण किया। यह उनके अनुशासित तरीके के जीवन की लय और सद्भाव एवं संगीत में चित्रित है। पांच साल की कठिन मौन के बाद, पाइथागोरस के "गणितज्ञों" ने अमर होने के लिए नाना प्रकार की दीक्षाओं के माध्यम से अपने हृदय की अंतर्ज्ञानी क्षमताओं का विकास किया। पाइथागोरस के गो”ल्डन वर्सेज में इन्हें “अमरता प्राप्त किये हुए दिव्य ईश्वर, जो अंनश्वर हैं”, कहा गया है।

पाइथागोरस परोक्ष रूप से गुप्त भाषा में व्याख्यान देते थे - उनके शब्दों का सार केवल उच्च श्रेणी के शिष्य ही समझ सकते थे। उनका मानना था कि संख्या ही सृष्टि का रूप है और सार भी। उन्होंने यूक्लिड ज्यामिति के मुख्य भागों की रचना की और कई खगोलीय सिद्धांतो पर काम किया जिन पर बाद में कोपरनिकस ने भी काम किया और कई अवधारणाएं प्रतिपादित कीं। पाइथागोरस से प्रभावित होकर क्रोटोना के लगधग दो हजार नागरिकों ने अपनी पारंपरिक जीवनशैली छोड़ काउंसिल ऑफ़ थ्रीहंड्रेड (Council of Three Hundred) के तहत पायथागॉरियन समुदाय का निर्माण किया। इस काउंसिल ने एक सरकारी, वैज्ञानिक और धार्मिक संस्थान के तरीके से कार्य किया जिसने बाद में मैग्ना ग्रीसिया को काफी प्रभावित किया।

पाइथागोरस बहुत “परिश्रमी पुरुष” थे। वे नब्बे वर्ष के थे जब साईलोन (जिनका दाख़िला रहस्यवादी विद्यालय ने अस्वीकार किया था) ने लोगों को हिंसक अत्याचार को उकसाया। क्रोटोना के प्रांगण में खड़े होकर पढ़ा साईलोन ने पाइथागोरस की एक गुप्त पुस्तक, हिरोस लोगो (पवित्र शब्द), को जोर से पढ़ा, और उनकी लिखी बातों का मज़ाक उड़ाया। जब पाइथागोरस और काउंसिल के चालीस मुख्य सदस्य वहाँ एकत्रित हुए तो साईलोन ने उस इमारत में आग लगा दी। इस आग में दो को छोड़कर सभी सदस्य मारे गए। परिणामस्वरूप पूरा पायथागॉरियन समुदाय तथा उनकी अधिकांश मूल शिक्षाएँ नष्ट हो गईं। फिर भी, "मास्टर" (पाइथागोरस) ने कई दार्शनिकों जैसे प्लेटो, एरिस्टोटल, ऑगस्टीन, थॉमस एक्विनास और फ्रांसिस बेकन को प्रभावित किया है।

बैल्थाज़ार

मुख्य लेख: तीन बुद्धिमान पुरुष

बल्थाजार तीन ज्योतिषियों (खगोल-विद्या विशारद/विशेषज्ञ) में से एक थे जिन्होनें बालक ईसा मसीह की उपस्थिति के तारे का अनुसरण किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कुथुमी एक समय में इथियोपिया के वही राजा थे जिन्होंने अपने क्षेत्र से खूब सारा खज़ाना लाकर ईसा मसीह को दिया था।

असीसी के फ्रांसिस

मुख्य लेख: असीसी के फ्रांसिस

असीसी के दैवीय संरक्षक फ्रांसिस (सी. ११८१-१२२६) के रूप में उन्होंने अपने परिवार और धन को त्याग गरीबों और कोढ़ियों के बीच रह उनकी सेवा को अपना धर्म माना; ईसा मसीह के दिखाए मार्ग का अनुकरण करना उन्हें ज़्यादा आनंदमय लगा। १२०९ में सेंट मैथियास के पर्व पर पूजा करते करते समय उन्होंने पुजारी द्वारा पढ़ा गया यीशु का वह धर्मसिद्धांत सुना जिसमे उन्होंने अपने अनुयायियों को प्रचार करने को कहा था। इसके बाद फ्रांसिस ने उस छोटे गिरिजाघर से बाहर निकल ईसाई धर्म का प्रचार तथा लोगों का धर्म परिवर्तन कराना शुरू कर दिया। जिन लोगों ने अपना धर्मं परिवर्तन किया उनमें एक सम्भ्रान्त महिला, लेडी क्लेयर, भी थीं, जिन्होंने अपना घर त्याग एक भिक्षुक का जीवन जीने का फैसला किया।

फ्रांसिस और क्लेयर के जीवन से जुड़ी कई किंवदंतियों में से एक सांता मारिया डेगली एंजेली में उनके भोजन के समय ईश्वर के बारे में दिए गए व्याख्यान से समबंधित है। व्याख्यान इतना मधुर था की सभी सुननेवाले अपना आपा खो उसमें मंत्रमुग्ध हो गए। तभी अचानक गांव के लोगों ने देखा की कॉन्वेंट और जंगल दोनों जगह आग लगी हुई है। सभी लोग आग बुझाने के लिए तेजी से आगे दौड़े तब आग की उस तेज रोशनी में उन्हें लोगों का एक छोटा समूह दिखाई दिया; उन्होंने देखा कि समूह के लोगों की भुजाएँ स्वर्ग की ओर उठी हुई थीं।

भगवान ने फ्रांसिस को "सूर्य" और "चंद्रमा" में अपनी दिव्य उपस्थिति का एहसास दिलाया, और सूली पर चढ़ाए गए ईसा मसीह के चिन्ह देकर उनकी भक्ति को पुरस्कृत भी किया। फ्रांसिस यह सम्मान पाने वाले पहले संत थे। सेंट फ्रांसिस की प्रार्थना दुनिया भर में सभी धर्मों के लोग करते हैं: "भगवान, मुझे अपनी शांति का साधन बनाइये!..."

शाहजहाँ
caption
ताज महल

शाहजहाँ

भारत के मुगल सम्राट शाहजहाँ (१५९२-१६६६) के रूप में, कुथुमी ने अपने पिता, जहाँगीर, की भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंका, और अपने दादा अकबर की महान नैतिकता को आंशिक रूप से बहाल किया। उनके प्रबुद्ध शासनकाल के दौरान मुगल दरबार का वैभव अपनी चरम सीमा पर था - तब कला और वास्तुकला काफी उन्नत थी। शाहजहाँ ने संगीत और चित्रकला के प्रचार और प्रसार तथा स्मारकों, मस्जिदों, सार्वजनिक भवनों और सिंहासनों के निर्माण पर अपना शाही खजाना लुटा दिया - इनमें से कुछ चीज़ें आज भी देखी जा सकती हैं।

प्रसिद्ध स्मारक ताज महल, जिसे "चमत्कारों में चमत्कार और दुनिया का अप्रतिम आश्चर्य" कहा जाता है, शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की कब्र के रूप में बनवाया था। मुमताज़ महल ने शाहजहाँ के साथ साथ शासन किया था और १६३१ में अपने चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय उनकी मृत्यु हो गई। शाहजहाँ ने स्मारक को "मुमताज़ जितना ही सुन्दर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ताज महल मातृ तत्व का प्रतीक है और मुमताज के प्रति उनके शाश्वत प्रेम को दर्शाता है।

कूट हूमी लाल सिंह

पृथ्वी पर अपने अंतिम जन्म में, कुथुमी एक कश्मीरी ब्राह्मण थे - कूट हूमी लाल सिंह (जिन्हें कूट हूमी और के.एच. के नाम से भी जाना जाता है)। अत्यंत एकाकी जीवन जीने के बावजूद वे समाज में काफी सम्मानित थे। कुछ खंडित अभिलेखों के अलावा उनके जीवन और कार्यों का लेखा जोखा मौजूद नहीं है। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जन्मे महात्मा कुथुमी एक पंजाबी थे जिनका परिवार कश्मीर में बस गया था। उन्होंने १८५० में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था और माना जाता है कि भारत लौटने से पहले, १८५० के दशक में उन्होंने द डबलिन यूनिवर्सिटी मैगज़ीन में "द ड्रीम ऑफ़ रावन" (रामायण के रावण पर आधारित आध्यात्मिक निबंध) लिखे थे।

कश्मीरी ब्राह्मण ने ड्रेसडेन, वुर्जबर्ग, नूर्नबर्ग और लीपज़िग विश्वविद्यालय में काफी समय बिताया। १८७५ में उन्होंने आधुनिक मनोविज्ञान के संस्थापक डॉ. गुस्ताव फेचनर से मुलाकात की। उनका बाकी का जीवन तिब्बत के शिगात्से में बौद्ध भिक्षुओं के मठ में बीता, जहां बाहरी दुनिया के साथ उनके संपर्क में उनके कुछ समर्पित छात्रों को डाक द्वारा भेजे गए उपदेशात्मक लेख शामिल थे। ये पत्र अब ब्रिटिश संग्रहालय में संग्रहीत हैं।

१८७५ में कुथुमी ने हेलेना पी. ब्लावात्स्की और एल मोर्या, जिन्हें मास्टर एम. के नाम से जाना जाता है, के साथ मिलकर थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की। उन्होंने हेलेना पी. ब्लावात्स्की को आइसिस अनवील्ड और द सीक्रेट डॉक्ट्रिन लिखने का काम सौंपा। इन किताबों के माध्यम से कुथुमी मानव जाति को प्राचीन युग के उस ज्ञान से पुनः परिचित करवाना चाहते थे जो दुनिया के सभी धर्मों का आधार है - यह ज्ञान लेमुरिया और अटलांटिस के रहस्यवादी विद्यालयों में संरक्षित है। इसमें बताया गया है कि ईश्वर को पाना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है, वह लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए जाने-अनजाने ईश्वर का प्रत्येक पुत्र और पुत्री काम कर रहा है। इनमें पुनर्जन्म का सिद्धांत भी शामिल है, जिसका प्रचार संत फ्रांसिस ने गाँव-गाँव जाकर किया था।

थियोसोफिकल सोसाइटी ने अपने छात्रों के लिए कुथुमी और एल मोर्या के पत्रों को द महात्मा लेटर्स और अन्य कार्यों में प्रकाशित किया है। उन्नीसवीं सदी के अंत में कुथुमी ने अपना शरीर छोड़ दिया था।

उनका आज का लक्ष्य

विश्व गुरु

मुख्य लेख: विश्व गुरु

ईसा मसीह ने दिव्यगुरु कुथुमी को विश्व शिक्षक का पद प्रदान किया - यह पद ईसा मसीह और कुथुमी दोनों संयुक्त रूप से संभालते हैं। ये दोनों ईश्वर के साथ पुनर्मिलन की चाह रखने वाली प्रत्येक जीवात्मा को प्रायोजित करते हैं - ये उन्हें कर्म के कारण/ प्रभाव अनुक्रमों को नियंत्रित करने वाले मौलिक कानूनों की शिक्षा देते हैं और दैनिक चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सिखाते हैं। धर्म एवं पवित्र श्रम के माध्यम से अपने ईश्वरीय स्वरुप की क्षमता को पूरा करना हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है।

निपुण मनोवैज्ञानिक

कुथुमी एक निपुण मनोवैज्ञानिक माने जाते हैं, और उनका काम सभी शिष्यों को उनके मनोवैज्ञानिक मसलों को सुलझाने में सहायता करना है। २७ जनवरी १९८५ को उन्होंने मैत्रेय द्वारा दिए गए प्रकाश रुपी उपहार की घोषणा की:

यह उपहार मेरा एक काम है जो मुझे आप में से प्रत्येक व्यक्ति के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उपचार के लिए करना है ताकि हम शीघ्रातिशीघ्र शारीरिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्थितियों के मूल कारण तक पहुंच सकें। ताकि ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में अब कोई बाधाएं ना आएं। अब आप लोग अपने कदमों को डगमगाने ना दें।[1]

अपनी शिक्षाओं में कुथुमी ने हमें अपनी दहलीज पर रहनेवाले दुष्ट और इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट को समझने का मार्ग दिखाया है। मनुष्य के सारे नकारात्मक कर्म उसके कृत्रिम स्व या दैहिक मन में नाभि के निचले हिस्से में एकत्रित हो एक पेटी के सामान उससे लिपटे रहते हैं। इसे ही इलेक्ट्रॉनिक बेल्ट कहते हैं।

मणिपुर चक्र के बिंदु पर आरेखित, शरीर के निचले भाग की ओर सर्पिल गति से जाते हुए मनुष्य के सब नकारात्मक कर्म पैरों के नीचे जाकर इकट्ठे होते हैं, जहाँ यह एक केतली का आकार ले लेते हैं। अवचेतन और अचेतन मन का यह क्षेत्र सभी पूर्व जन्मों के सभी अपरिवर्तित कर्मों का अभिलेख रखता है। इस अपरिवर्तित ऊर्जा के भंवर के मध्य में मनुष्य की स्वयं-विरोधी चेतना स्थित होती है, जिसका समाप्त होना ईश्वरत्व प्राप्त करने के लिए ज़रूरी है।

अगर हम दिव्यगुरु का मंत्र "आई ऍम लाइट" बोलते हैं तो वे अच्छी तरह से हमारी सहायता कर सकते हैं। यह मंत्र ईश्वर के ज्ञान के विकास तथा उनके श्वेत प्रकाश की बढ़ोतरी के लिए है। ये हमें यह बताने के लिए है कि ईश्वर हमारे अंदर ही बसता है। जब हम ईश्वर के करीब जाते हैं तो ईश्वर भी हमारे पास आते हैं, और फिर देवदूत भी एकत्र होकर हमारे आभा को और प्रभावी बनाते हैं। कुथुमी ने अपनी पुस्तक "स्टडीज ऑफ़ ह्यूमन ऑरा" में "आई एम लाइट" मंत्र का उपयोग करते हुए एक त्रिगुणी अभ्यास के बारे में बताते हैं, जिसे छात्र अपनी आभा के आवरण को मजबूत करने के उद्देश्य से कर सकते हैं ताकि वे ईश्वरत्व की चेतना को बनाए रख सकें।

आई ऍम लाइट
कुथुमी का मंत्र

आई ऍम लाइट, ग्लोइंग लाइट,
रेडिएटिंग लाइट, इन्टैंसिफ़िएड लाइट।
गॉड कंस्यूमस माय डार्कनेस,
ट्रांसम्यूटिंग ईट ईंटू लाइट।

दिस डे आई ऍम ए फोकस ऑफ़ द सेंट्रल सन।
फ्लोइंग थरु मी इस ए क्रिस्टल रिवर,
ए लिविंग फाउंटेन ऑफ़ लाइफ
देट कैन नेवर बे बी क्वालिफाइड
बाय ह्यूमन थॉट और फीलिंग।
आई ऍम ऍन आउटपोस्ट ऑफ़ द डीवाइन।
सच डार्कनेस एस हैस युसड मी इस स्वालोवड उप
बाय द माइटी रिवर ऑफ़ लाइट विच आई ऍम।

आई ऍम, आई ऍम, आई ऍम light;
आई लिव, आई लिव, आई लिव इन लाइट।
आई ऍम लाइटस फुल्लेस्ट डायमेंशन;
आई ऍम लाइटस प्यूरेस्ट इंटेंशन।
आई ऍम लाइट, लाइट, लाइट
फ्लडिंग द वर्ल्ड एवरीवेयर आई मूव,
ब्लेसिंग, स्ट्रेंग्थेनिंग एंड कन्वेयिंग
द पर्पस ऑफ़ द किंगडम ऑफ़ हेवन।

कुथुमी आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका भी बताते हैं

... आपके जीवन के किसी भी प्रसंग का महत्वपूर्ण हिस्सा वह नहीं है जो आपने अनुभव किया है बल्कि उस प्रसंग पर आपकी प्रतिक्रिया है। आपकी प्रतिक्रिया ही आपके आगे का स्थान का निर्णय करती है। आपकी प्रतिक्रिया ही हमें यह बताती है कि आप कितने परिपक्व हैं, आपने कितना ज्ञान और विवेक अर्जित किया है, और इसी बात पर हमारे आगे के निर्णय भी निर्भर होते हैं...

अगर आप तत्क्षण ये संकल्प करते हैं कि आप स्वयं में सुधार लाकर श्रेष्ठता को ओर बढ़ेंगे तो न सिर्फ मैं आपकी मदद करूँगा वरन आपकी सहायतार्थ अपने दूत भी भेजूंगा। इसलिए अपने आस पास की ध्वनियों तथा सूक्ष्म और भौतिक दोनों तलों पर होने वाली घटनाओं पर ध्यान दीजिये - मैं किसी भी रूप में आपसे मिल सकता हूँ।[2]

आश्रय स्थल

कैथेड्रल ऑफ़ नेचर

Main article: Cathedral of Nature

Kuthumi is hierarch of the Temple of Illumination in Kashmir, which is also known as the Cathedral of Nature.

Kuthumi’s Retreat at Shigatse, Tibet

From the focus of his etheric retreat at Shigatse, Tibet, Kuthumi plays celestial music on his organ to those who are making the transition called “death” from the physical plane to higher octaves. So tremendous is the cosmic radiation that pours through that organ—because it is keyed to the music of the spheres and an organ-focus in the City Foursquare—that souls are drawn out of the astral plane as if following a pied piper.

In this way, thousands are drawn to the retreats of the masters by the great love of this Brother of the Golden Robe. Those who are able to see Kuthumi at the moment of their passing often find peace in the certain knowing that they have seen the master Jesus, so closely do Jesus and Kuthumi resemble one another in their adoration and manifestation of the Christ.

See also

For more information

Jesus and Kuthumi, Prayer and Meditation

Sources

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “Kuthumi.”

Jesus and Kuthumi, Prayer and Meditation.

  1. कुथुमी, "रेमेम्बेर द एंशिएंट एनकाउंटर (Remember the Ancient Encounter)," Pearls of Wisdom, vol. २८, no. ९, ३ मार्च, १९८५.
  2. Ibid.