ईश्वरीय चेतना

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ईश्वर की अभिव्यक्ति के रूप में अपने सच्चे रूप की पहचान; स्वयं में ईश्वरीय स्वरुप (I AM THAT I AM) या ईश्वरीय उपस्थिति (I AM Presence) के बारे में जागरूकता, स्वयं की सार्वभौमिक उपस्थिति के बारे में जागरूकता; स्वयं में सर्वशक्तिमान (omnipotent), सर्वज्ञ (omniscient) और सर्वव्यापी - ईश्वरीय स्वरुप (omnipresent) को बनाए रखने की क्षमता। ऐसी अवस्था जिसमें मनुष्य ईश्वरीय गुणों में निपुणता प्राप्त कर लेता है जो अपने आध्यात्मिक स्तर में अल्फा-ओमेगा (Alpha-Omega) सिद्धांत की दिव्य पूर्णता में निराकार और आकार के स्पंदन को बनाए रखता है।

ईश्वर की चेतना का स्तर ईश्वर का साम्राज्य है। और जो लोग वहां रहते हैं (पृथ्वी/स्वर्ग क्षेत्र से बाहर) वास्तव में भगवान की अपनी चेतना के विस्तार हैं - वे प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति में केवल ईश्वर के हैं।

“मैंने कहा है, तुम देवता हो; और आप सभी ईश्वर की संतान हैं।”[1]

“ईसा मसीह ने उन्हें उत्तर दिया, क्या यह तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा, कि मैंने कहा कि तुम परमेश्वर हो?[2]

इसे भी देखिये

ब्रह्मांडीय चेतना

(Cosmic consciousness)

आत्मिक चेतना (Christ consciousness)

सामूहिक चेतना (Mass consciousness)

मानवी चेतना (Human consciousness)

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation

  1. Ps. ८२:६.
  2. जॉन १०:३४।