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आप मेरे पुत्र (ईसा मसीह), गौतम बुद्ध और पूर्वी देशों के दिव्य गुरुओं द्वारा दी गयी शिक्षाओं का सरल और विनम्र अध्यन कीजिये। आप सब इनके मार्ग पर चलकर इनसे स्वरूप होने का प्रयास कीजिए। आप सभी के पास निपुणता को प्राप्त करने का अवसर है।  आपको केवल यह तय करना है कि इन गुरुओं के दिखाए मार्ग पर चलना ही आपका लक्ष्य है।
आप मेरे पुत्र (ईसा मसीह), गौतम बुद्ध और पूर्वी देशों के दिव्य गुरुओं द्वारा दी गयी शिक्षाओं का सरल और विनम्र अध्यन कीजिये। आप सब इनके मार्ग पर चलकर इनसे स्वरूप होने का प्रयास कीजिए। आप सभी के पास निपुणता को प्राप्त करने का अवसर है।  आपको केवल यह तय करना है कि इन गुरुओं के दिखाए मार्ग पर चलना ही आपका लक्ष्य है।


निपुण होने का अर्थ है अपने भीतर ईश्वर की लौ और ईश्वरीय गुणों में निपुणता प्राप्त करना। इसका मतलब यह है की आप किसी भी परिस्तिथि में विचलित नहीं होते, स्तिथि कितनी ही विषम क्यों न हो, आप अपने मार्ग पर पर अडिग रहते हैं। विशेषज्ञ सदा स्थिर भाव से रहते हैं, बिलकुल ताई ची के मध्य में। वे यह जान पाते हैं कि उनके अंदर ईश्वर का वास है, ईश्वर ने मानव की जगह ले ली है। यह एकीकरण ही आपका लक्ष्य है...
निपुण होने का अर्थ है ईश्वर के मन में प्रवेश करने के लिए अपने भीतर ईश्वर की लौ और ईश्वरीय गुणों में निपुणता प्राप्त करना। इसका मतलब यह है की आप किसी भी परिस्तिथि में विचलित नहीं होते, स्तिथि कितनी ही विषम क्यों न हो, आप अपने मार्ग पर पर अडिग रहते हैं। निपुण व्यक्ति सदा स्थिर भाव से रहते हैं, बिल्कुल ताई ची
(T’ai Chi) के मध्य में। वे यह जान पाते हैं कि उनके अंदर ईश्वर का वास है, ईश्वर ने मानव की जगह ले ली है। यह एकीकरण ही आपका लक्ष्य है...


इसीलिए मैं आपके ऊपर अपने पुत्र (ईसा मसीह) की उस समय की आणविक उपस्तिथि (electronic presence) रखती हूँ जब वह ३३ वर्ष का था। मेरे प्रियजनो, उसकी उपस्तिथि को पहचानिये, अनुभव कीजिये और वैसा ही बनने की इच्छा रखिये। रास्ते में आने वाली परीक्षाओं की चिंता मत कीजिये, इस बात को समझिये कि अगर आप अपने को उतना निपुण बना लेते हैं तो आपके पवित्र हृदय और निर्मल जीवन से प्ररेणा लेकर बहुत सारे लोग भवसागर के चक्कर से बच सकते हैं।
इसीलिए मैं आपके ऊपर अपने पुत्र (ईसा मसीह) की उस समय की आणविक उपस्तिथि (electronic presence) रखती हूँ जब वह ३३ वर्ष का था। मेरे प्रियजनो, उसकी उपस्तिथि को पहचानिये, अनुभव कीजिये और वैसा ही बनने की इच्छा रखिये। रास्ते में आने वाली परीक्षाओं की चिंता मत कीजिये, इस बात को समझिये कि अगर आप अपने को उतना निपुण बना लेते हैं तो आपके पवित्र हृदय और निर्मल जीवन से प्ररेणा लेकर बहुत सारे लोग भवसागर के चक्कर से बच सकते हैं।
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