Antahkarana/hi: Difference between revisions

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मैं जीवन के ''अंतःकरण'' को घुमाता हूँ, इस सुनहरे जाल की परतों में ब्रह्मांडीय चेतना है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप अपनी जीवात्मा के विकास के लिए अंतःकरण की मदद ले सकते हैं। जैसे आपकी माँ ने आपको शरीर दिया है,वैसे मैं आपको महीन धागों वाले अंतःकरण का सुनहरा जाल देता हूँ। जिस प्रकार से आप में से कुछ, माँ  के रूप में, सुनहरे और सफ़ेद रंगों के धागों से उस अंतःकरण की सुरक्षा अपनी उच्च चेतना के केंद्र से करते हैं और इस केंद्र के द्वारा [[Special:MyLanguage/golden chain mail|सुनहरी ज़ंज़ीर वाला कवच]] (golden chain mail) पहन कर हम स्वयं को सील (seal) करके भौतिक स्तर पर भावुक (astral) नकरात्मकता से बच सकते हैं।
मैं जीवन के ''अंतःकरण'' को घुमाता हूँ, इस सुनहरे जाल की परतों में ब्रह्मांडीय चेतना है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप अपनी जीवात्मा के विकास के लिए अंतःकरण की मदद ले सकते हैं। जैसे आपकी माँ ने आपको शरीर दिया है,वैसे मैं आपको महीन धागों वाले अंतःकरण का सुनहरा जाल देता हूँ। जिस प्रकार से आप में से कुछ, माँ  के रूप में, सुनहरे और सफ़ेद रंगों के धागों से उस अंतःकरण की सुरक्षा अपनी उच्च चेतना के केंद्र से करते हैं और इस केंद्र के द्वारा [[Special:MyLanguage/golden chain mail|सुनहरी ज़ंज़ीर वाला कवच]] (golden chain mail) पहन कर हम स्वयं को सील (seal) करके भौतिक स्तर पर भावुक (astral) नकरात्मकता से बच सकते हैं।


इस पवित्र आवरण को आप पिता का दिया हुआ सुरक्षा कवच जानिये। इसे जीवन का जाल समझिये। जिस प्रकार मकड़ी का जाल मध्य से शुरू होकर सर्वत्र फैल जाता है, उसी प्रकार इंसान के अंतःकरण से उत्पन्न चेतना ब्रह्मांडीय चेतना का रूप ले लेती है। जिस प्रकार एक छोटे बालक को सर्दी से बचाने के लिए शाल से अच्छी तरह लपेटा जाता है उसी ध्यानपूर्वक अंतःकरण की भी सुरक्षा की जानी चाहिए। ऐसा आप गौतम की याद में करिये, वो गौतम जो पृथ्वी पर अहम् की  [[Special:MyLanguage/sword|तलवार]] उठाने आये थे
इस पवित्र वस्त्र को आप पिता का दिया हुआ सुरक्षा कवच जानिये। इसे जीवन का जाल समझिये। जिस प्रकार मकड़ी का जाल मध्य से शुरू होकर सर्वत्र फैल जाता है, उसी प्रकार इंसान के अंतःकरण से उत्पन्न चेतना ब्रह्मांडीय चेतना का रूप ले लेती है। जिस प्रकार एक छोटे बालक को सर्दी से बचाने के लिए शाल से अच्छी तरह लपेटा जाता है उसी ध्यानपूर्वक अंतःकरण की भी सुरक्षा की जानी चाहिए। ऐसा आप गौतम की याद में करिये, वो गौतम जो पृथ्वी पर अहम् की  [[Special:MyLanguage/sword|तलवार]] उठाने आये थे


[[Special:MyLanguage/witchcraft|दुष्टता]] के उस परदे को काटता हूँ जिससे हर एक इंसान ढका हुआ है। दुष्टता का यह पर्दा पूरे ग्रह पर भी छाया हुआ है जिसकी वजह से मानवता त्रस्त है। आप देखेंगे कि जब माँ के पुजारी [[Special:MyLanguage/Lord of the World|ईश्वर]] की चेतना का आह्वान करते हैं तो अँधेरा छंट जाता है और उसका स्थान ईश्वर का प्रकाश ले लेता है....
[[Special:MyLanguage/witchcraft|दुष्टता]] के उस परदे को काटता हूँ जिससे हर एक इंसान ढका हुआ है। दुष्टता का यह पर्दा पूरे ग्रह पर भी छाया हुआ है जिसकी वजह से मानवता त्रस्त है। आप देखेंगे कि जब माँ के पुजारी [[Special:MyLanguage/Lord of the World|ईश्वर]] की चेतना का आह्वान करते हैं तो अँधेरा छंट जाता है और उसका स्थान ईश्वर का प्रकाश ले लेता है....

Revision as of 09:03, 30 October 2023

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अंत:करण संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है भीतरी इंद्रि। आत्मा और पदार्थ में फैला हुआ प्रकाश का जाल जो सम्पूर्ण सृष्टि को एक दूसरे के साथ और ईश्वर के हृदय से जोड़ता और संवेदनशील बनाता है।

अंतःकरण महीन धागों से किया हुआ जाली के काम की तरह है - ऐसे धागे जिसके द्वारा मौन दिव्य गुरु (Silent Watcher) संपूर्ण विश्‍व (Macrocosm) को एक दुसरे से जोड़ते हैं । अंतःकरण महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र (Great Central Sun Magnet) की ऊर्जा का सुचालक है। पवित्र प्रकाश की डोर (crystal cord) जो हर एक मनुष्य को उसकी आत्मिक चेतना और परमत्मा की चेतना (God Self) के द्वारा उसे महान केंद्रीय सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के साथ जोड़ती है, अंतःकरण का ही हिस्सा है।

अन्तःकरण के बारे में गौतम बुद्ध ने कुछ यूँ कहा है:

मैं गौतम, बहुतों का पिता हूँ। मैं ईश्वरीय माँ की ऊर्जा और उसके साक्षात् प्रकाश नमन करता हूँ, जिसकी मैं आराधना करता हूँ। मैं ईश्वरीय पुत्र की आत्मिक चेतना को नमन करता हूँ।

मैं जीवन के अंतःकरण को घुमाता हूँ, इस सुनहरे जाल की परतों में ब्रह्मांडीय चेतना है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप अपनी जीवात्मा के विकास के लिए अंतःकरण की मदद ले सकते हैं। जैसे आपकी माँ ने आपको शरीर दिया है,वैसे मैं आपको महीन धागों वाले अंतःकरण का सुनहरा जाल देता हूँ। जिस प्रकार से आप में से कुछ, माँ के रूप में, सुनहरे और सफ़ेद रंगों के धागों से उस अंतःकरण की सुरक्षा अपनी उच्च चेतना के केंद्र से करते हैं और इस केंद्र के द्वारा सुनहरी ज़ंज़ीर वाला कवच (golden chain mail) पहन कर हम स्वयं को सील (seal) करके भौतिक स्तर पर भावुक (astral) नकरात्मकता से बच सकते हैं।

इस पवित्र वस्त्र को आप पिता का दिया हुआ सुरक्षा कवच जानिये। इसे जीवन का जाल समझिये। जिस प्रकार मकड़ी का जाल मध्य से शुरू होकर सर्वत्र फैल जाता है, उसी प्रकार इंसान के अंतःकरण से उत्पन्न चेतना ब्रह्मांडीय चेतना का रूप ले लेती है। जिस प्रकार एक छोटे बालक को सर्दी से बचाने के लिए शाल से अच्छी तरह लपेटा जाता है उसी ध्यानपूर्वक अंतःकरण की भी सुरक्षा की जानी चाहिए। ऐसा आप गौतम की याद में करिये, वो गौतम जो पृथ्वी पर अहम् की तलवार उठाने आये थे

दुष्टता के उस परदे को काटता हूँ जिससे हर एक इंसान ढका हुआ है। दुष्टता का यह पर्दा पूरे ग्रह पर भी छाया हुआ है जिसकी वजह से मानवता त्रस्त है। आप देखेंगे कि जब माँ के पुजारी ईश्वर की चेतना का आह्वान करते हैं तो अँधेरा छंट जाता है और उसका स्थान ईश्वर का प्रकाश ले लेता है....

पदानुक्रम मानव की चेतना को ऊपर उठाने का एक तरीका है। यह मनुष्य को ईश्वर के नज़दीक ले जाने का तरीका है जिससे जीवन में प्रेम और सत्य के प्रवाह एवं शाश्वत यौवन के जीवंत झरने को खोज सकते हैं। पदानुक्रम सदा रहेगा। आप इस पदानुक्रम का हिस्सा हैं। ईश्वरीय लौ को अपने अंदर रखने की क्षमता वाले आप, ग्रेट वाइट ब्रदरहुड से जुड़ने की संभावना रखते हैं। आप ईश्वर की वाणी के जीवित गवाह हैं। आप ईश्वर का स्वरुप हैं। "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे'। आप ही अंतःकरण हैं। प्रकाश को बहने दीजिये।[1]

रत्नसंभाव ने अंतःकरण के बारे में निम्न बातें कही हैं:

सभी प्रकार के जीव आपस में जुड़े हुए हैं। इसलिए जब कभी अमरत्व को प्राप्त हुए व्यक्ति पृथ्वी पर रहने वाले इंसानों से आत्मिक स्तर पर बात करते हैं, तो ये सब बातें उस व्यक्ति की समान ऊर्जा वाली सभी जीवन धाराओं तक पहुँच जाती हैं। आप तक पहुँचने वाली ज्ञान की बातें आपके जीवन जीने का कारण हैं, और आपका धर्म और कर्म भी।

तो आप इस बात को अच्छी तरह समझ लीजिये कि सन्देशवाहक और श्रुतलेखों का मतलब प्रकाश के विस्तृत जाल और एक पदानुक्रम वाली सभी जीवात्माओं के अंतःकरण का एकीकरण होना है। ऐसा होने पर 'अंतःकरण कम्पन के साथ एक कदम ऊपर उठता है। तब आप कुछ निचले तत्वों को पार करने में सक्षम हो जाते हैं, और स्वयं को जीवन के नए स्तरों की ओर बढ़ते हुए, उच्च ध्वनि के साथ तालमेल बिठाते हुए पाते हैं। यही जीवन का एक गूढ़ रहस्य है - आप सीमाबद्ध समझते है परन्तु सच यह है कि आप सदा हमारे साथ हैं, “हर जगह ईश्वरीय चेतना के साथ हैं”[2]

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path of Brotherhood.

  1. गौतम बुद्ध, “Nourish Love in the Heart of Humanity,” Pearls of Wisdom, vol. 56, no. 1, १ जनवरी, २०१३.
  2. रत्नसंभाव, “Elements of Being,” Pearls of Wisdom, vol. 37, no. 6, ६ फरवरी १९९४ .